Friday, May 31, 2019

गदर का दिन : 1857 में आज के ही दिन आजाद हुआ था बरेली



वर्ष 1857 में क्रांति की शुरुआत भले मेरठ से हुई हो, मगर क्रांति को सफलता बरेली की जमीं पर ही मिली थी। 31 मई को बरेली कैंट से शुरू हुई क्रांति की ज्वाला ने कुछ ही देर में पूरे शहर को अपनी जद में ले लिया था। क्रांति के नायक खान बहादुर खान को बरेली ने अपना नवाब चुना था।  
बरेली में विद्रोह की शुरुआत ईद के बाद 31 मई को हुई थी। बरेली कॉलेज में शिक्षक मौलवी महमूद अहसन की इसमें विशेष भूमिका रही। हालांकि, गदर की पूरी योजना नौमहला मस्जिद में तैयार हुई। उन दिनों बरेली के क्रांतिकारी सूबेदार बख्त खान, मास्टर कुतुब शाह, मौलवी महमूद अहसन आदि इस मस्जिद में ही एकत्र होते थे। अंग्रेजों को अंदाजा हो गया था कि ईद के दिन बरेली में क्रांति होगी। इसीलिए कोतवाल बदरुद्दीन को सख्त हिदायत दी गई कि वह मस्जिद में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखें। 
आखिरी जुमा पर हुई थी बगावती तकरीर
बरेली कॉलेज इतिहास के झरोखे से पुस्तक में डॉ. जोगा सिंह होठी लिखते हैं, 22 मई को आखिरी जुमा था और नौमहला मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए छावनी के सैनिक भी आए हुए थे। नमाज के बाद मौलवी अहसन ने उग्र तकरीर करना शुरू कर दिया। उन्होंने लोगों से कहा कि बरतानियां सरकार के खिलाफ बगावत जायज है। बरतानियां सरकार के अत्याचारों से मुक्ति बगावत से ही मिल सकती है। उनकी इस तकरीर से लोगों में जोश भर गया। अगले जुमे से पहले बरेली के कलक्टर ने उन्हें जिला बदर कर दिया। क्रांति के बाद वो दुबारा बरेली लौट आए थे। 1862 में उनका नाम कॉलेज के शिक्षकों में शामिल कर लिया गया। 
सूबेदार बख्त खां ने किया विद्रोह
31 मई को अंग्रेज सिपाही 11 बजे चर्च में प्रार्थना कर रहे थे। तोपखाना लाइन में सूबेदार बख्त सिंह के नेतृत्व में 18वीं और 68वीं देशज रेजीमेंट ने विद्रोह कर दिया। सुबह 11 बजे कप्तान ब्राउन का मकान जला दिया गया। छावनी में विद्रोह सफल होने की सूचना शहर में फैलते ही जगह-जगह अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए। शाम चार बजे तक बरेली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो चुका था। बुरी तरह हारे फिरंगी नैनीताल की तरफ भाग गए। इस दिन 16 अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतार दिया गया। इनमें जिला जज राबर्टसन, कप्तान ब्राउन, सिविल सर्जन डॉ. हे, बरेली कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. सी बक, सेशन जज रेक्स, जेलर हैंस ब्रो आदि शामिल थे। 
नवाब खान बहादुर को कमान
जीत के बाद रुहेला शासक खान बहादुर खान को रुहेलखंड का नवाब घोषित कर दिया गया। 11 माह तक बरेली आजाद रहा। मई 1858 में मजबूत होकर लौटे अंग्रेजों ने एक बार फिर बरेली पर कब्जा कर लिया। उसके बाद 1947 में ही पूरे देश के साथ बरेली भी आजाद हो पाया। 
कैंट के किले में कैद रहे नवाब खान बहादुर
कैंट इलाके में एक छोटा सा किला भी है। वर्ष 1858 में नवाब खान बहादुर खान को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें इस किले की एक छोटी सी कोठरी में ही रखा गया था। अब यह किला पूरी तरह से सेना के कब्जे में है। बीच में इसे जनता के लिए खोला गया।  

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