सिकंदर नहीं पोरस है
महान...
महान सम्राट पोरस
को हराकर बंधक बनाकर जब सिकंदर के सामने पेश किया
गया तो सिकंदर ने पूछा- 'तुम्हारे साथ क्या किया जाए तो पोरस ने कहा- 'मेरे साथ वो
व्यवहार करो, जो एक राजा दूसरे
राजा के साथ करता है।' सचमुच यह एक अच्छा वाक्य है लेकिन क्या इसमें सचाई है? यह यूनानी
इतिहासकारों ने सिकंदर को महान बनाने के लिए लिखा।
पुरु का नाम यूनानी इतिहासकारों ने 'पोरस' लिखा है। इतिहास को निष्पक्ष लिखने वाले प्लूटार्क ने लिखा- 'सिकंदर सम्राट पुरु की 20,000 की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया। आगे विश्व की महानतम राजधानी मगध के महान सम्राट धनानंद की 3,50,000 की सेना उसका स्वागत करने के लिए तैयार थी जिसमें 80,000 घुड़सवार, 80,000 युद्धक रथ एवं 70,000 विध्वंसक हाथी सेना थी। उसके क्रूर सैनिक दुश्मन के सैनिकों को मुर्गी-तीतर जैसा काट देते हैं।
क्या सिकंदर (अलक्षेन्द्र) एक महान विजेता था? ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में यही बताया जाता है और पश्चिम जो कहता है दुनिया उसे आंख मूंदकर मान लेती है। मगर ईरानी और चीनी इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो यह छवि कुछ अलग ही दिखती है।'
सिकंदर के हमले की कहानी बुनने में पश्चिमी देशों को ग्रीक भाषा और संस्कृति से मदद मिली, जो ये कहती है कि सिकंदर का अभियान उन पश्चिमी अभियानों में पहला था, जो पूरब के बर्बर समाज को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए किए गए।
पुरु का नाम यूनानी इतिहासकारों ने 'पोरस' लिखा है। इतिहास को निष्पक्ष लिखने वाले प्लूटार्क ने लिखा- 'सिकंदर सम्राट पुरु की 20,000 की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया। आगे विश्व की महानतम राजधानी मगध के महान सम्राट धनानंद की 3,50,000 की सेना उसका स्वागत करने के लिए तैयार थी जिसमें 80,000 घुड़सवार, 80,000 युद्धक रथ एवं 70,000 विध्वंसक हाथी सेना थी। उसके क्रूर सैनिक दुश्मन के सैनिकों को मुर्गी-तीतर जैसा काट देते हैं।
क्या सिकंदर (अलक्षेन्द्र) एक महान विजेता था? ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में यही बताया जाता है और पश्चिम जो कहता है दुनिया उसे आंख मूंदकर मान लेती है। मगर ईरानी और चीनी इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो यह छवि कुछ अलग ही दिखती है।'
सिकंदर के हमले की कहानी बुनने में पश्चिमी देशों को ग्रीक भाषा और संस्कृति से मदद मिली, जो ये कहती है कि सिकंदर का अभियान उन पश्चिमी अभियानों में पहला था, जो पूरब के बर्बर समाज को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए किए गए।
अजीब लगता है जबकि
भारत में सिकंदर को महान कहा जाता है और उस पर गीत लिखे जाते हैं। उस पर तो
फिल्में भी बनी हैं जिसमें उसे महान बताया गया और एक कहावत भी निर्मित हो गई है- 'जो जीता वही सिकंदर'। ...यदि सचमुच ही भारतीयों ने पश्चिम नहीं, भारतीय इतिहासकारों को पढ़ा होता तो वे कहते... 'जो जीता वही पोरस'। लेकिन अंग्रेजों की 200 वर्षों की गुलामी ने अंग्रेज भक्त जो बना दिया है।
सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात अपने सौतेले व चचेरे भाइयों का कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिन्हासन पर बैठा था। अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला। यूनान के मकदूनिया का यह राजा सिकंदर कभी भी महान नहीं रहा। यूनानी योद्धा सिकंदर एक क्रूर, अत्याचारी और शराब पीने वाला व्यक्ति था।
इतिहासकारों के अनुसार सिकंदर ने कभी भी उदारता नहीं दिखाई। उसने अपने अनेक सहयोगियों को उनकी छोटी-सी भूल से रुष्ट होकर तड़पा-तड़पाकर मारा था। इसमें उसका एक योद्धा बसूस, अपनी धाय का भाई क्लीटोस और पर्मीनियन आदि का नाम उल्लेखनीय है। क्या एक क्रूर और हत्यारा व्यक्ति महान कहलाने लायक है? गांधार के राजा आम्भी ने सिकंदर का स्वागत किया। आम्भी ने भारत के साथ गद्दारी की।
प्रसिद्ध इतिहासकार एर्रियन लिखते हैं, जब बैक्ट्रिया के राजा बसूस को बंदी बनाकर लाया गया, तब सिकंदर ने उनको कोड़े लगवाए और उनकी नाक-कान कटवा डाले। इतने पर भी उसे संतोष नहीं हुआ। उसने अंत में उनकी हत्या करवा दी। उसने अपने गुरु अरस्तू के भतीजे कलास्थनीज को मारने में संकोच नहीं किया।
एक बार किसी छोटी-सी बात पर उसने अपने सबसे करीबी मित्र क्लीटोस को मार डाला था। अपने पिता के मित्र पर्मीनियन जिनकी गोद में सिकंदर खेला था उसने उनको भी मरवा दिया। सिकंदर की सेना जहां भी जाती, पूरे के पूरे नगर जला दिए जाते, सुन्दर महिलाओं का अपहरण कर लिया जाता और बच्चों को भालों की नोक पर टांगकर शहर में घुमाया जाता था।
ऐसा क्रूर सिकंदर अपने क्या, महान सम्राट पोरस के प्रति उदार हो सकता था? यदि पोरस हार जाते तो क्या वे जिंदा बचते और क्या उनका साम्राज्य यूनानियों का साम्राज्य नहीं हो जाता?
इतिहास में यह लिखा गया कि सिकंदर ने पोरस को हरा दिया था। यदि ऐसा होता तो सिकंदर मगध तक पहुंच जाता और इतिहास कुछ और होता। लेकिन इतिहास लिखने वाले यूनानियों ने सिकंदर की हार को पोरस की हार में बदल दिया।
हारे हुए सिकंदर का सम्मान और उसकी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए यूनानी लेखकों ने यह सारा झूठा जाल रचा। स्ट्रेबो, श्वानबेक आदि विदेशी विद्वानों ने तो कई स्थानों पर इस बात का उल्लेख किया है कि मेगस्थनीज आदि प्राचीन यूनानी लेखकों के विवरण झूठे हैं। ऐसे विवरणों के कारण ही सिकंदर को महान समझा जाने लगा और पोरस को एक हारा हुआ योद्धा, जबकि सचाई इसके ठीक उलट थी। सिकंदर को हराने के बाद पोरस ने उसे छोड़ दिया था और बाद में चाणक्य के साथ मिलकर उसने मगध पर आक्रमण किया था।
यूनानी इतिहासकारों के झूठ को पकड़ने के लिए ईरानी और चीनी विवरण और भारतीय इतिहास के विवरणों को भी पढ़ा जाना चाहिए। यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में झूठ लिखा था, ऐसा करके उन्होंने अपने महान योद्धा और देश के सम्मान को बचाया।
जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक ‘ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में लिखते हैं- 'सिकंदर अभिमानी, उद्दंड, अत्यंत क्रूर और हिंसक था। वह स्वयं को ईश्वर के समान समझता था। क्रोध में आकर उसने अपने निकटतम मित्रों और सगे-संबंधियों की हत्या की और महान नगरों को उसके निवासियों सहित पूर्णतः ध्वस्त कर दिया।'
ईरान के इतिहास में
क्या लिखा है, जानिए...
सेंट एंड्र्यूज विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड के
प्रोफेसर अली अंसारी के अनुसार प्राचीन ईरानी अकेमेनिड साम्राज्य की राजधानी
पर्सेपोलिस के खंडहरों को देखने जाने वाले हर सैलानी को तीन बातें बताई जाती हैं
कि इसे डेरियस महान ने बनाया था, इसे उसके बेटे जेरक्सस ने और बढ़ाया, लेकिन इसे ‘उस इंसान' ने तबाह कर दिया
जिसका नाम था- सिकंदर। सोचिए तबाह करने वाला कैसे महान हुआ? उस इंसान सिकंदर को, पश्चिमी संस्कृति
में 'सिकंदर महान' कहा जाता है।
ऐसा क्यों किया
सिकंदर ने? शराब पीने के बाद एक ग्रीक नर्तकी को यह दिखाया गया कि
ईरानी शासक जेरक्सस से बदला लेने के लिए उसने एक्रोपोलिस को जला दिया।
ईरानी सिकंदर की यह कहकर भी आलोचना करते हैं कि उसने अपने साम्राज्य में सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने को बढ़ावा दिया। उसके समय में ईरानियों के प्राचीन धर्म, पारसी धर्म के मुख्य उपासना स्थलों पर हमले किए गए।
सिकंदर ने ईरान के राजा दारा को पराजित कर दिया और विश्व विजेता कहलाने लगा। विजय के उपरांत उसने बहुत भव्य जुलूस निकाला। महज 32 साल की उम्र में मौत के मुंह में चले जाने वाले सिकंदर को ईरानी कृति 'शाहनामा' ने महज एक विदेशी राजकुमार माना है।
ईरानी सिकंदर की यह कहकर भी आलोचना करते हैं कि उसने अपने साम्राज्य में सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने को बढ़ावा दिया। उसके समय में ईरानियों के प्राचीन धर्म, पारसी धर्म के मुख्य उपासना स्थलों पर हमले किए गए।
सिकंदर ने ईरान के राजा दारा को पराजित कर दिया और विश्व विजेता कहलाने लगा। विजय के उपरांत उसने बहुत भव्य जुलूस निकाला। महज 32 साल की उम्र में मौत के मुंह में चले जाने वाले सिकंदर को ईरानी कृति 'शाहनामा' ने महज एक विदेशी राजकुमार माना है।
सिकंदर का भारत पर
आक्रमण...
भारत की सीमा में पहुंचते ही पहाड़ी सीमाओं
पर भारत के अपेक्षाकृत छोटे राज्यों अश्वायन एवं अश्वकायन की वीर सेनाओं ने कुनात, स्वात, बुनेर, पेशावर (आजका) में सिकंदर की सेनाओं को भयानक टक्कर दी। मस्सागा (मत्स्यराज)
राज्य में तो महिलाएं तक उसके सामने खड़ी हो गईं, पर धूर्त और धोखे
से वार करने वाले यवनी (यूनानियों) ने मत्स्यराज के सामने संधि का नाटक करके उन पर
रात में हमला किया और उस राज्य की राजमाता, बच्चों सहित पूरे
राज्य को उसने तलवार से काट डाला। यही हाल उसने अन्य छोटे राज्यों में किया।
मित्रता संधि की आड़ में अचानक आक्रमण कर कई राजाओं को बंधक बनाया। भोले-भाले
भारतीय राजा उसकी चाल का शिकार होते रहे। अंत में उसने गांधार-तक्षशिला पर हमला
किया।
पोरस का साम्राज्य : पुरुवंशी महान सम्राट
पोरस का साम्राज्य विशालकाय था। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े
भू-भाग के स्वामी थे। पोरस का साम्राज्य जेहलम (झेलम) और चिनाब नदियों के बीच
स्थित था। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में रहने वाले खोखरों ने राजपूत सम्राट
पृथ्वीराज चौहान की हत्या का बदला लेने के लिए मुहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार
दिया था।
‘पोरस अपनी बहादुरी
के लिए विख्यात था। उसने उन सभी के समर्थन से अपने साम्राज्य का निर्माण किया था
जिन्होंने खुखरायनों पर उसके नेतृत्व को स्वीकार कर लिया था। जब सिकंदर हिन्दुस्तान आया और जेहलम (झेलम) के समीप पोरस के
साथ उसका संघर्ष हुआ, तब पोरस को खुखरायनों का भरपूर समर्थन मिला था। इस
तरह पोरस, जो स्वयं सभरवाल उपजाति का था और खुखरायन जाति समूह का एक हिस्सा था, उनका शक्तिशाली
नेता बन गया।’ -आईपी आनंद थापर (ए क्रूसेडर्स सेंचुरी : इन परस्यूट ऑफ एथिकल
वेल्यूज/केडब्ल्यू प्रकाशन से प्रकाशित)
सिन्धु और झेलम : सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।
इतिहासकार मानते हैं कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने सिकंदर को झेलम नदी पार करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी के इस पार आने के बाद सिकंदर बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।
जब सिकंदर ने आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं।
सिन्धु और झेलम : सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा पोरस सिन्ध-पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू-भाग के स्वामी थे। पुरु ने इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि यवन सेना की शक्ति का रहस्य क्या है? यवन सेना का मुख्य बल उसके द्रुतगामी अश्वारोही तथा घोड़ों पर सवार फुर्तीले तीरंदाज थे।
इतिहासकार मानते हैं कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था लेकिन उसने सिकंदर को झेलम नदी पार करने से नहीं रोका और यही उसकी भूल थी। लेकिन इतिहासकार यह नहीं जानते कि झेलम नदी के इस पार आने के बाद सिकंदर बुरी तरह फंस गया था, क्योंकि नदी पार करने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी।
जब सिकंदर ने आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की। आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता स्वीकार नहीं।
जासूसों और धूर्तता के बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध
जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर
सिकंदर ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का
बताते हैं, अपनी शक्तिशाली
गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस
भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे थे।
भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की
हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी
थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार
सैनिकों भी मार गिरा सकता था। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर
टक्कर मिली। सिकंदर की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए। यवनी सरदारों के भयाक्रांत
होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत:
प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय
सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात
बहुत दूर है। राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली)
को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने
अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था।
सिकंदर जमीन पर गिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था। सिकंदर बस पलभर का मेहमान था कि तभी राजा पुरु ठिठक गया। यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहां से भगा ले गए।
सिकंदर की सेना का मनोबल भी इस युद्ध के बाद टूट गया था और उसने नए अभियान के लिए आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था। सेना में विद्रोह की स्थिति पैदा हो रही थी इसलिए सिकंदर ने वापस जाने का फैसला किया। सिकंदर व उसकी सेना सिन्धु नदी के मुहाने पर पहुंची तथा घर की ओर जाने के लिए पश्चिम की ओर मुड़ी। सिकंदर ने सेना को प्रतिरोध से बचने के लिए नए रास्ते से वापस भेजा और खुद सिन्धु नदी के रास्ते गया, जो छोटा व सुरक्षित था।
भारत में शत्रुओं के उत्तर-पश्चिम से घुसने के दो ही रास्ते रहे हैं जिसमें सिन्धु का रास्ता कम खतरनाक माना जाता था।
सिकंदर सनक में आगे तक घुस गया, जहां उसकी पलटन को भारी क्षति उठानी पड़ी। पहले ही भारी क्षति उठाकर यूनानी सेनापति अब समझ गए थे कि अगर युद्ध और चला तो सारे यवनी यहीं नष्ट कर दिए जाएंगे। यह निर्णय पाकर सिकंदर वापस भागा, पर उस रास्ते से नहीं भाग पाया, जहां से आया था और उसे दूसरे खतरनाक रास्ते से गुजरना पड़ा जिस क्षेत्र में प्राचीन क्षात्र या जाट निवास करते थे।
उस क्षेत्र को जिसका पूर्वी हिस्सा आज के हरियाणा में स्थित था और जिसे 'जाट प्रदेश' कहते थे, इस प्रदेश में पहुंचते ही सिकंदर का सामना जाट वीरों से (और पंजाबी वीरों से सांगल क्षेत्र में) हो गया और उसकी अधिकतर पलटन का सफाया जाटों ने कर दिया। भागते हुए सिकंदर पर एक जाट सैनिक ने बरछा फेंका, जो उसके वक्ष कवच को बींधता हुआ पार हो गया। यह घटना आज के सोनीपत नगर के पास हुई थी।
इस हमले में सिकंदर तुरंत नहीं मरा बल्कि आगे जाकर जाट प्रदेश की पश्चिमी सीमा गांधार में जाकर उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। (यवनी इतिहासकारों ने लिखा- सिकंदर बेबीलोन (आधुनिक इराक) में बीमारी से मरा! -326 ई.पू.)
क्या लिखते हैं इतिहासकार : कर्तियास लिखता है कि, 'सिकंदर झेलम के दूसरी ओर पड़ाव डाले हुए था। सिकंदर की सेना का एक भाग झेलम नदी के एक द्वीप में पहुंच गया। पुरु के सैनिक भी उस द्वीप में तैरकर पहुंच गए। उन्होंने यूनानी सैनिकों के अग्रिम दल पर हमला बोल दिया। अनेक यूनानी सैनिकों को मार डाला गया। बचे-खुचे सैनिक नदी में कूद गए और उसी में डूब गए।'
बाकी बची अपनी सेना के साथ सिकंदर रात में नावों द्वारा हरनपुर से 60 किलोमीटर ऊपर की ओर पहुंच गया और वहीं से नदी को पार किया, वहीं पर भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में पुरु का बड़ा पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ।
एरियन लिखता है कि 'भारतीय युवराज ने अकेले ही सिकंदर के घेरे में घुसकर सिकंदर को घायल कर दिया और उसके घोड़े 'बुसे फेलास 'को मार डाला।' यह भी कहा जाता है कि पुरु के हाथी दल-दल में फंस गए थे, तो कर्तियास लिखता है 'कि इन पशुओं ने घोर आतंक पैदा कर दिया था। उनकी भीषण चीत्कार से सिकंदर के घोड़े न केवल डर रहे थे बल्कि बिगड़कर भाग भी रहे थे। अब सिकंदर ऐसे स्थानों की खोज में लग गए, जहां इनको शरण मिल सके।'
सिकंदर ने छोटे शस्त्रों से सुसज्जित सेना को हाथियों से निपटने की आज्ञा दी। इस आक्रमण से चिढ़कर हाथियों ने सिकंदर की सेना को अपने पांवों में कुचलना शुरू कर दिया। वह आगे लिखता है कि 'सर्वाधिक हृदय-विदारक दृश्य यह था कि यह मजबूत कद वाला पशु यूनानी सैनिकों को अपनी सूंड से पकड़ लेता व अपने महावत को सौंप देता और वह उसका सर धड़ से तुरंत अलग कर देता। इसी प्रकार सारा दिन समाप्त हो जाता और युद्ध चलता ही रहता।' इसी प्रकार इतिहासकार दियोदोरस लिखता है कि 'हाथियों में अपार बल था और वे अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुए। अपने पैरों तले उन्होंने बहुत सारे यूनानी सैनिकों को चूर-चूर कर दिया।'
इथोपियाई महाकाव्यों का संपादन करने वाले ईएडब्ल्यू बैज लिखते हैं कि 'झेलम के युद्ध में सिकंदर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया। सिकंदर ने अनुभव किया कि यदि मैं लड़ाई को आगे जारी रखूंगा तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूंगा। अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की। भारतीय परंपरा के अनुसार पुरु ने शत्रु का वध नहीं किया। इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए और सिकंदर ने पुरु को अन्य प्रदेश जीतने में सहायता की।'
सिकंदर जमीन पर गिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था। सिकंदर बस पलभर का मेहमान था कि तभी राजा पुरु ठिठक गया। यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहां से भगा ले गए।
सिकंदर की सेना का मनोबल भी इस युद्ध के बाद टूट गया था और उसने नए अभियान के लिए आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था। सेना में विद्रोह की स्थिति पैदा हो रही थी इसलिए सिकंदर ने वापस जाने का फैसला किया। सिकंदर व उसकी सेना सिन्धु नदी के मुहाने पर पहुंची तथा घर की ओर जाने के लिए पश्चिम की ओर मुड़ी। सिकंदर ने सेना को प्रतिरोध से बचने के लिए नए रास्ते से वापस भेजा और खुद सिन्धु नदी के रास्ते गया, जो छोटा व सुरक्षित था।
भारत में शत्रुओं के उत्तर-पश्चिम से घुसने के दो ही रास्ते रहे हैं जिसमें सिन्धु का रास्ता कम खतरनाक माना जाता था।
सिकंदर सनक में आगे तक घुस गया, जहां उसकी पलटन को भारी क्षति उठानी पड़ी। पहले ही भारी क्षति उठाकर यूनानी सेनापति अब समझ गए थे कि अगर युद्ध और चला तो सारे यवनी यहीं नष्ट कर दिए जाएंगे। यह निर्णय पाकर सिकंदर वापस भागा, पर उस रास्ते से नहीं भाग पाया, जहां से आया था और उसे दूसरे खतरनाक रास्ते से गुजरना पड़ा जिस क्षेत्र में प्राचीन क्षात्र या जाट निवास करते थे।
उस क्षेत्र को जिसका पूर्वी हिस्सा आज के हरियाणा में स्थित था और जिसे 'जाट प्रदेश' कहते थे, इस प्रदेश में पहुंचते ही सिकंदर का सामना जाट वीरों से (और पंजाबी वीरों से सांगल क्षेत्र में) हो गया और उसकी अधिकतर पलटन का सफाया जाटों ने कर दिया। भागते हुए सिकंदर पर एक जाट सैनिक ने बरछा फेंका, जो उसके वक्ष कवच को बींधता हुआ पार हो गया। यह घटना आज के सोनीपत नगर के पास हुई थी।
इस हमले में सिकंदर तुरंत नहीं मरा बल्कि आगे जाकर जाट प्रदेश की पश्चिमी सीमा गांधार में जाकर उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। (यवनी इतिहासकारों ने लिखा- सिकंदर बेबीलोन (आधुनिक इराक) में बीमारी से मरा! -326 ई.पू.)
क्या लिखते हैं इतिहासकार : कर्तियास लिखता है कि, 'सिकंदर झेलम के दूसरी ओर पड़ाव डाले हुए था। सिकंदर की सेना का एक भाग झेलम नदी के एक द्वीप में पहुंच गया। पुरु के सैनिक भी उस द्वीप में तैरकर पहुंच गए। उन्होंने यूनानी सैनिकों के अग्रिम दल पर हमला बोल दिया। अनेक यूनानी सैनिकों को मार डाला गया। बचे-खुचे सैनिक नदी में कूद गए और उसी में डूब गए।'
बाकी बची अपनी सेना के साथ सिकंदर रात में नावों द्वारा हरनपुर से 60 किलोमीटर ऊपर की ओर पहुंच गया और वहीं से नदी को पार किया, वहीं पर भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में पुरु का बड़ा पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ।
एरियन लिखता है कि 'भारतीय युवराज ने अकेले ही सिकंदर के घेरे में घुसकर सिकंदर को घायल कर दिया और उसके घोड़े 'बुसे फेलास 'को मार डाला।' यह भी कहा जाता है कि पुरु के हाथी दल-दल में फंस गए थे, तो कर्तियास लिखता है 'कि इन पशुओं ने घोर आतंक पैदा कर दिया था। उनकी भीषण चीत्कार से सिकंदर के घोड़े न केवल डर रहे थे बल्कि बिगड़कर भाग भी रहे थे। अब सिकंदर ऐसे स्थानों की खोज में लग गए, जहां इनको शरण मिल सके।'
सिकंदर ने छोटे शस्त्रों से सुसज्जित सेना को हाथियों से निपटने की आज्ञा दी। इस आक्रमण से चिढ़कर हाथियों ने सिकंदर की सेना को अपने पांवों में कुचलना शुरू कर दिया। वह आगे लिखता है कि 'सर्वाधिक हृदय-विदारक दृश्य यह था कि यह मजबूत कद वाला पशु यूनानी सैनिकों को अपनी सूंड से पकड़ लेता व अपने महावत को सौंप देता और वह उसका सर धड़ से तुरंत अलग कर देता। इसी प्रकार सारा दिन समाप्त हो जाता और युद्ध चलता ही रहता।' इसी प्रकार इतिहासकार दियोदोरस लिखता है कि 'हाथियों में अपार बल था और वे अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुए। अपने पैरों तले उन्होंने बहुत सारे यूनानी सैनिकों को चूर-चूर कर दिया।'
इथोपियाई महाकाव्यों का संपादन करने वाले ईएडब्ल्यू बैज लिखते हैं कि 'झेलम के युद्ध में सिकंदर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया। सिकंदर ने अनुभव किया कि यदि मैं लड़ाई को आगे जारी रखूंगा तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूंगा। अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की। भारतीय परंपरा के अनुसार पुरु ने शत्रु का वध नहीं किया। इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए और सिकंदर ने पुरु को अन्य प्रदेश जीतने में सहायता की।'
संभव है कि वैज्ञानिकों ने 2000 वर्ष पुरानी पहेली
सुलझा ली है जिससे मकदूनिया के नेता क्रूर सिकंदर की 32 वर्ष की आयु में
रहस्यमय मौत हुई थी।
ओटैगो यूनिवर्सिटी के नेशनल प्वॉइजन सेंटर
के डॉक्टर लियो शेप का मानना है कि हो सकता है कि गैरहानिकर दिखने वाले एक पौधे से
बनी जहरीली शराब से सिकंदर की मौत हुई हो जिसने 323 ईसापूर्व में अपनी
मौत से पहले एक बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया था।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिकंदर की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई जबकि अन्य का मानना है कि उसकी जश्न के दौरान गुप्त तरीके से हत्या कर दी गई थी। शेप गत 10 वर्षों से जहरीले सबूत के बारे में अनुसंधान कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आर्सेनिक और स्ट्रिकनीन के जहर के सिद्धांत हास्यास्पद हैं। अध्ययन के नतीजे ‘क्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
सिकंदर बोला कि 'मेरी पहली इच्छा है कि मेरा इलाज करने वाला हकीम ही मेरे ताबूत को खींचकर कब्र तक ले जाएगा।' 'दूसरी ये कि जब मेरा ताबूत कब्र तक ले जाया जाए तो उस रास्ते में मेरे इकट्ठे किए हुए खजाने में से सोने-चांदी बहुमूल्य पत्थर बिखेरे जाएं' और मेरी तीसरी और आखिरी इच्छा है कि 'मेरे दोनों हाथ ताबूत में से बाहर दिखाई देने चाहिए।'
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिकंदर की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई जबकि अन्य का मानना है कि उसकी जश्न के दौरान गुप्त तरीके से हत्या कर दी गई थी। शेप गत 10 वर्षों से जहरीले सबूत के बारे में अनुसंधान कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आर्सेनिक और स्ट्रिकनीन के जहर के सिद्धांत हास्यास्पद हैं। अध्ययन के नतीजे ‘क्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
सिकंदर बोला कि 'मेरी पहली इच्छा है कि मेरा इलाज करने वाला हकीम ही मेरे ताबूत को खींचकर कब्र तक ले जाएगा।' 'दूसरी ये कि जब मेरा ताबूत कब्र तक ले जाया जाए तो उस रास्ते में मेरे इकट्ठे किए हुए खजाने में से सोने-चांदी बहुमूल्य पत्थर बिखेरे जाएं' और मेरी तीसरी और आखिरी इच्छा है कि 'मेरे दोनों हाथ ताबूत में से बाहर दिखाई देने चाहिए।'