आजादी के महज 28 साल बाद ही देश को तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले के
कारण आपातकाल के दंश से गुजरना पड़ा। 25-26 जून की रात को आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद
के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया। अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर
इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना कि भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। लेकिन
इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है।
ल्ली के रामलीला मैदान में हुई 25 जून की रैली की खबर पूरे देश में न फैल सके इसके लिए दिल्ली के
बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई।
रात को ही इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आर के धवन के कमरे में बैठ कर संजय गांधी
और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था।
आपातकाल लगाने की वजह
इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया
था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव
परिणाम को चुनौती दी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने
इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा
दिया। और श्रीमती गांधी के चिर प्रतिद्वंदी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी
घोषित कर दिया था।
राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं। इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी। इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था।
सरकार के पास थे असीमित अधिकार
राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं। इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी। इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था।
सरकार के पास थे असीमित अधिकार
आपातकाल के दौरान सत्ताधारी कांग्रेस आम आदमी की आवाज को कुचलने की
निरंकुश कोशिश की। इसका आधार वो प्रावधान था जो धारा-352 के तहत सरकार को असीमित
अधिकार देती थी।
-इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं।
-लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी।
-मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे
-सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी।
मीसा-डीआईआर का कहर
मीसा और डीआईआर के तहत देश में एक लाख से ज्यादा लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। आपातकाल के खिलाफ आंदोलन के नायक जय प्रकाश नारायण की किडनी कैद के दौरान खराब हो गई थी । उस काले दौर में जेल-यातनाओं की दहला देने वाली कहानियां भरी पड़ी हैं। देश के जितने भी बड़े नेता थे, सभी के सभी सलाखों के पीछे डाल दिए गए। एक तरह से जेलें राजनीतिक पाठशाला बन गईं। बड़े नेताओं के साथ जेल में युवा नेताओं को बहुत कुछ सीखने-समझने का मौका मिला।
एक तरफ नेताओं की नई पौध राजनीति सीख रही थी, दूसरी तरफ देश को इंदिरा के बेटे संजय गांधी अपने दोस्त बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ल और ओम मेहता की तिकड़ी के जरिए चला रहे थे। संजय गांधी ने वीसी शुक्ला को नया सूचना प्रसारण मंत्री बनवाया जिन्होंने मीडिया पर सरकार की इजाजत के बिना कुछ भी लिखने-बोलने पर पाबंदी लगा दी, जिसने भी इनकार किया उसे जेलों में डाल दिया गया।।
संजय गांधी ने चलाया था पांच सूत्रीय कार्यक्रम
-इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं।
-लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी।
-मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे
-सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी।
मीसा-डीआईआर का कहर
मीसा और डीआईआर के तहत देश में एक लाख से ज्यादा लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। आपातकाल के खिलाफ आंदोलन के नायक जय प्रकाश नारायण की किडनी कैद के दौरान खराब हो गई थी । उस काले दौर में जेल-यातनाओं की दहला देने वाली कहानियां भरी पड़ी हैं। देश के जितने भी बड़े नेता थे, सभी के सभी सलाखों के पीछे डाल दिए गए। एक तरह से जेलें राजनीतिक पाठशाला बन गईं। बड़े नेताओं के साथ जेल में युवा नेताओं को बहुत कुछ सीखने-समझने का मौका मिला।
एक तरफ नेताओं की नई पौध राजनीति सीख रही थी, दूसरी तरफ देश को इंदिरा के बेटे संजय गांधी अपने दोस्त बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ल और ओम मेहता की तिकड़ी के जरिए चला रहे थे। संजय गांधी ने वीसी शुक्ला को नया सूचना प्रसारण मंत्री बनवाया जिन्होंने मीडिया पर सरकार की इजाजत के बिना कुछ भी लिखने-बोलने पर पाबंदी लगा दी, जिसने भी इनकार किया उसे जेलों में डाल दिया गया।।
संजय गांधी ने चलाया था पांच सूत्रीय कार्यक्रम
बताया जाता है कि सुंदरीकरण के नाम पर संजय गांधी ने एक ही दिन में दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को साफ करवा डाला लेकिन पांच सूत्रीय कार्यक्रम में ज्यादा जोर परिवार नियोजन पर था। लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई। 19 महीने के दौरान देश भर में करीब 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करा दी गई। कहा तो ये भी जाता है कि पुलिस बल गांव के गांव घेर लेते थे और पुरुषों को पकड़कर उनकी नसबंदी करा दी जाती थी।
पहले ही बन चुकी थी आपातकाल की योजना
इमरजेंसी के बहुत बाद एक साक्षात्कार में इंदिरा ने कहा था कि
उन्हें लगता था कि भारत को शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत है। लेकिन, इस शॉक ट्रीटमेंट की योजना 25 जून की रैली से छह महीने
पहले ही बन चुकी थी। 8 जनवरी 1975 को सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को एक चिट्ठी में आपातकाल की पूरी
योजना भेजी थी। चिट्ठी के मुताबिक ये योजना तत्कालीन कानून मंत्री एच आर गोखले, कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ और बांबे कांग्रेस
के अध्यक्ष रजनी पटेल के साथ उनकी बैठक में बनी थी।
आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। संजय गांधी और उनकी तिकड़ी से लेकर सुरक्षा बल और नौकरशाही सभी निरंकुश हो चुके थे। एक बार इंदिरा गांधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे, लेकिन 19 महीने में उन्हें गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हो गया। 18 जनवरी 1977 को उन्होंने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों ही हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।
आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। संजय गांधी और उनकी तिकड़ी से लेकर सुरक्षा बल और नौकरशाही सभी निरंकुश हो चुके थे। एक बार इंदिरा गांधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे, लेकिन 19 महीने में उन्हें गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हो गया। 18 जनवरी 1977 को उन्होंने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों ही हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।