Monday, June 25, 2018

आपातकाल के 43 साल : लोकतंत्र सेनानी


आपातकाल के 43 साल बीत गए। किसी भी देश के इतिहास में चार दशक का समय बहुत ज्यादा नहीं तो कुछ कम भी नहीं होता। यूपी में भी इन चार दशकों में बहुत कुछ बदल गया। दोस्त ही नहीं बदले, दोस्ती के मायने भी बदल गए। चार दशक पहले कांग्रेस के विरोध में अलग-अलग लड़ने वाले सियासी दलों ने जनसंघ (आज की भाजपा) से हाथ मिलाया था। उन दलों का मौजूदा नेतृत्व आज भाजपा को हटाने के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाने में गुरेज नहीं कर रहा है।
कांग्रेस विरोधी राजनीतिक धारा से उपजे नेताओं के वंशज आज कांग्रेस के साथ चलने को तैयार दिख रहे हैं। बसपा जैसा जो दल उस समय अस्तित्व में नहीं था। वह आज यूपी में भाजपा विरोधी राजनीतिक धारा की अहम धुरी बन चुका है। बदलाव सिर्फ दलों की दिशा और दशा में नहीं आया है, बल्कि राजनेताओं की भी भूमिका में आया है।

आपातकाल के खिलाफ लड़ने वाले समाजवादियों में तब मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। वे जेल भी गए। सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी भी जेल में रहे। कई और समाजवादी भी जेलों में रहे। समाजवादियों का प्रतिनिधि करने वाली सपा आज अखिलेश यादव के नेतृत्व में कांग्रेस से एक बार हाथ मिला चुकी है और दूसरी बार तैयारी में है।

बसपा की आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन आज उसकी अनदेखी करके यूपी में भाजपा विरोधी मोर्चा बनने की गुंजाइश नहीं दिखती। भगवा टोली को भी उसके समीकरणों की काट निकालने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

इसलिए बदल रही है समर्थकों और विरोधियों की परिभाषा

पूर्व पीएम चंद्रशेखर के सहयोगी रहे भोंडसी आश्रम के ट्रस्टी सूर्य कुमार भी आपातकाल में जेल में रहे। कहते हैं कि राजनीतिक धारा में बदलाव हुआ है। आपातकाल के समय मुद्दा लोकतंत्र बचाने का था। आज लोकतंत्र की रक्षा कोई मुद्दा नहीं है। आज की सियासी लड़ाई तथाकथित राष्ट्रवाद (हिंदुत्व) और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के बीच है। यह लड़ाई कितनी वास्तविक और कौन पक्ष अपने एजेंडे को लेकर कितना ईमानदार है, यह तो बहस का मुद्दा है। लेकिन आज इन्हीं दो शब्दों के आसपास सियासी समीकरण बनाने की कोशिश हो रही है।

इसीलिए चार दशक पहले समाजवादियों को कांग्रेस को हराने के लिए जनसंघ की जरूरत थी तो आज भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस की जरूरत है। तब संघर्ष की जिजीविषा थी आज समझौते की मजबूरी है। तब नौजवान सत्ता के लोकतंत्र विरोधी कामों को चुनौती देने के लिए राजनीति में आते थे आज करोड़पति होने आ रहे हैं। इसलिए समर्थकों और विरोधियों की परिभाषा भी बदल गई है।

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दलों की नीतियों में भी नहीं नेताओं की भूमिका में भी बदलाव आया'
दलों की नीतियों में भी नहीं नेताओं की भूमिका में भी बदलाव आया। कांग्रेस के विरोध में एकजुट राजनीतिक दलों के विलय से बनी जनता पार्टी का संविधान ब्रह्मदत्त ने लिखा था। ब्रह्मदत्त चौधरी चरण सिंह के काफी नजदीकी थे। पर, बाद में वे कांग्रेस में ही शामिल हो गए। आपातकाल के दौरान गोरखपुर और महराजगंज के आसपास हर्षवर्धन का नाम कांग्रेस के धुर विरोधियों में शामिल था, जेल भी गए। पर बाद में वे भी कांग्रेसी हो गए।

मोहन प्रकाश का नाम आज कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में शुमार है। लेकिन प्रकाश भी शुरू से कांग्रेसी नहीं थे। वे भी आपातकाल में जेल गए। सत्यदेव त्रिपाठी इस समय कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख हैं। आपातकाल के दौरान वे भी कांग्रेस के खिलाफ लड़ने वालों में शामिल थे। इमरजेंसी के समय कांग्रेस के खिलाफ लड़ने वालों में रामनरेश यादव भी शामिल थे। जनता पार्टी की सरकार में वे प्रदेश के सीएम भी रहे। लेकिन बाद में वे भी कांग्रेसी हो गए। कांग्रेस ने उन्हें कई जिम्मेदारी सौंपी। मध्यप्र्रदेश का राज्यपाल बनाया।

लोकतंत्र सेनानियों की नजर में कांग्रेस

कांग्रेस मजबूत हुई तो फिर खतरा
राजेंद्र तिवारी का कहना है कि कांग्रेस जो कल थी वही आज भी है। उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। सपा अगर इस समय मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में होती तो कम से कम कांग्रेस के गठबंधन की बात नहीं सोचती। आज अगर सपा, कांग्रेस से हाथ मिलाने में गुरेज नहीं कर रही है तो उसके पीछे पीढ़ियों का बदलाव है।

कांग्रेस पहले क्षमा मांगे
निर्मल सिंह का कहना है कि प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के पिछले दिनों के बयानों से लगता है कि उन्हें आज भी आपातकाल लगाने पर कोई पश्चाताप नहीं है। कांग्रेस आपातकाल लगाने पर माफी मांगे उसके बाद ही उससे गठबंधन पर विचार करना चाहिए।

मुद्दा नहीं, मौकापरस्ती
रमाशंकर त्रिपाठी का कहना है कि कोई दल किसके साथ है, यह उसका अंदरूनी मामला है। लेकिन भाजपा के विरोध के नाम पर अगर सपा, कांग्रेस के साथ खड़ी होती है तो यह मुद्दे की लड़ाई नहीं, बल्कि मौकापरस्ती है।

13
साल की उम्र में हथकड़ी का दर्द वह क्या जानें
अजीत कुमार सिंह ने बताया कि मेरी उम्र 13 साल की थी। मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि गांधीजी की तस्वीर और उनके वाक्य असत्य, अन्याय और हिंसा के आगे झुकना कायरता हैका पोस्टर चिपका रहा था। पुलिस वालों ने पकड़ लिया और हथकड़ी डाल दी। उस वेदना को वही समझ सकता है जिसने उसे सहा है।


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