विश्व जैव विविधता दिवस अथवा विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस / International Day for Biological Diversity प्रतिवर्ष सम्पूर्ण विश्व में '22 मई' को मनाया जाता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय पर्व है। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रारंभ किया था। जैव विविधता सभी जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता को कहा जाता है। 1992 में ब्राज़ील के रियो डि जेनेरियो में हुए जैव विविधता सम्मेलन के अनुसार जैव विविधता की परिभाषा इस प्रकार हैः- "धरातलीय, महासागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित अथवा उससे संबंधित तंत्रों में पाए जाने वाले जीवों के बीच विभिन्नता जैवविविधता है।"
जीवन में जैव विविधता का काफ़ी महत्व
है। हमें एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव विविधता में समृद्ध,
टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए अवसर प्रदान कर सके। जैव विविधता
के कमी होने से प्राकृतिक आपदा, जैसे- बाढ़, सूखा और तूफ़ान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। अत: हमारे लिए जैव विविधता का
संरक्षण बहुत ज़रूरी है। लाखों विशिष्ट जैविक और कई प्रजातियों के रूप में पृथ्वी पर जीवन उपस्थित है और हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। अत:
पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर, पठार, समुद्र, नदियां इन सभी
प्रकृति की देन का हमें संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि यही
हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए काम आती है।
प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए
रखने में जैव विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय
दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। नैरोबी में 29 दिसंबर, 1992 को हुए जैव विविधता सम्मेलन में यह
निर्णय लिया गया था, किंतु कई देशों द्वारा व्यावहारिक
कठिनाइयां जाहिर करने के कारण इस दिन को 29 मई की
बजाय 22 मई को
मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित
करके जैव विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले खतरों के बारे में जागरूक
करना है।
जैव
विविधता का संरक्षण और उसका टिकाऊ उपयोग, पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ विकास के लिये
महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार के जीवों की अपनी अलग-अलग भूमिका है, जो प्रकृति को संतुलित रखने तथा हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण
करने, तथा सतत् विकास के लिये संसाधन प्रदान करने में अपना
योगदान करती है। जैव विविधता का वाणिज्यिक महत्व, भोजन,
औषधियां, ईंधन, औद्योगिक
कच्चा माल, रेशम,
चमडा, ऊन आदि से हम सब परिचित हैं। इसके
पारिस्थितिकी महत्व के रूप में खाद्य श्रृंखला, मृदा की उर्वरता को बनाये रखना, जैविक रूप से सड़ी-गली चीजों का निपटान, भू-क्षरण को
रोकने, रेगिस्तान का प्रसार रोकने, प्राकृतिक
सौंदर्य को बढ़ाने एवं पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने में के रूप में देखा जा
सकती है। इसके अलावा जैव विविधता का सामाजिक, नैतिक तथा अन्य
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष महत्व है, जो हमारे लिये
महत्वपूर्ण है।
विश्व के समृद्धतम जैव विविधता वाले 17 देशों में भारत भी सम्मिलित है,
जिनमें विश्व की लगभग 70 प्रतिशत जैव विविधता
विद्यमान है। अन्य 16 देश हैं- ऑस्ट्रेलिया, कांगो,
मेडागास्कर, दक्षिण अफ़्रीका, चीन,
इंडोनेशिया, मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी,
फिलीपींस, ब्राज़ील, कोलम्बिया, इक्वेडोर, मेक्सिको, पेरू, अमेरिका और वेनेजुएला।
संपूर्ण विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही भारत में है,
लेकिन यहां विश्व के ज्ञात जीव जंतुओं का लगभग 5 प्रतिशत भाग निवास करता है। 'भारतीय वनस्पति
सर्वेक्षण' एवं 'भारतीय प्राणी
सर्वेक्षण' द्वारा किये गये सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में
लगभग 49,000 वनस्पति प्रजातियाँ एवं 89,000 प्राणी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत विश्व में वनस्पति-विविधता के आधार
पर दसवें, क्षेत्र सीमित प्रजातियों के आधार पर ग्यारहवें और
फसलों के उद्भव तथा विविधता के आधार पर छठवें स्थान पर है।
विश्व के कुल 25 जैव विविधता के सक्रिय केन्द्रों में से दो क्षेत्र पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट, भारत में है। जैव विविधता के
सक्रिय क्षेत्र वह हैं, जहां विभिन्न प्रजातियों की समृद्धता
है और ये प्रजातियां उस क्षेत्र तक सीमित हैं। भारत में 450 प्रजातियों
को संकटग्रस्त अथवा विलुप्त होने की कगार पर दर्ज किया गया है। लगभग 150 स्तनधारी एवं 150 पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है,
और कीटों की अनेक प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। ये आंकड़े जैव विविधता
पर निरंतर बढ़ते खतरे की ओर संकेत करते हैं। यदि यही दर बनी रही तो वर्ष 2050
तक हम एक तिहाई से ज्यादा जैव विविधता खो सकते हैं। जैव विविधता को
कई कारणों से नुकसान हो रहा है। इसमें मुख्य है, आवास की कमी,
आवास विखंडन एवं प्रदूषण, प्राकृतिक एवं
मानवजन्य आपदायें, जलवायु परिवर्तन, आधुनिक
खेती, जनसंख्या वृद्धि, शिकार और
उद्योग एवं शहरों का फैलाव। अन्य कारणों में सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव, भू-उपयोग परिवर्तन, खाद्य श्रृंखला में हो रहे
परिवर्तन, तथा जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी इत्यादि है।
जैव विविधता का संरक्षण करना मानवजीवन के अस्तित्व के लिये आवश्यक है।
जैव विविधता से
प्रकृति में मौजूद जीवों और पारिस्थितिकीय तंत्र के अंतर्संबंधों की जानकारी मिलती
है। जैव विविधता से जीव, प्रजाति एवं उपयोगी पारिस्थितिक तंत्र के बीच आपसी
संबंध हमें कई महत्वपूर्ण उत्पाद देते हैं, क्योंकि जीन,
प्रजातियों के घटक हैं, प्रजातियां
पारिस्थितिक तंत्र की। जैव विविधता तीन प्रकार की होती है-
- एक ही प्रजाति के जीवों
में होने वाली विविधताओं को अनुवांशिक विविधता।
- प्रजाति विविधता,
जिसमें एक ही प्रजाति के जीव एक दूसरे से काफ़ी समानता रखते
हैं।
- पारिस्थितिकी विविधता,
जो आवास एवं जैव समुदाओं के अंतर को प्रदर्शित करती है।
इस तरह जैव विविधता की इकाईयां अनुवांशिक स्तर से किसी क्षेत्र विशेष के समुदाय और बायोम में पाई जाने वाली विविधता तक फैली हुई है। बायोम जीवमंडल की ऐसी सामुदायिक ईकाई है, जो स्थलीय जलवायु द्वारा नियंत्रित होती है तथा जिसमें निश्चित प्रकार के जंतुओं एवं वनस्पतियों की प्रधानता होती है। जैव विविधता का हमारे जीवन में काफ़ी महत्व है। ऐसा पर्यावरण जो जैव विविधता में समृद्ध है, टिकाऊ आर्थिक गतिविधियों के लिए, विकल्पों के सबसे वृहद अवसर प्रदान करती है। जैव विविधता के हृास से प्रायः पारितंत्र की उत्पादकता कम हो जाती है, जिसके कारण विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने संबंधी उनकी क्षमता भी कम हो जाती है। जिनका हम लगातार उपभोग करते हैं। इससे पारितंत्र में अस्थिरता आती है और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और तूफ़ान एवं मानव जनित दबावों जैसे प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है।
विश्व
के बारह चिन्हित मेगा बायोडाइवर्सिटी केन्द्रों में से भारत एक है। विश्व के 18
चिन्हित बायोलाजिकल हाट स्पाट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और
पश्चिमी घाट हैं। भारत सरकार ने देश भर में 18
बायोस्फीयर भंडार स्थापित किये हैं जो जीव जंतुओं के प्राकृतिक
भू-भाग की रक्षा करते हैं और अकसर आर्थिक उपयोगों के लिए स्थापित बफर जोनों के साथ
एक या ज्यादा राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य को संरक्षित रखने का काम करते हैं।
जैवविविधता
अधिनियम, 2002 भारत में जैवविविधता के संरक्षण के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय
कानून है। जो परंपरागत जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों के
समान वितरण के लिए एक तंत्र प्रदान करता है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण
(एनबीए) की स्थापना 2003 में 'जैव विविधता अधिनियम, 2002' को लागू करने के लिए की
गई थी। एनबीए एक सांविधिक, स्वायत संस्था है। यह संस्था
जैविक संसाधनों के साथ-साथ उनके सतत उपयोग से होने वाले लाभ की निष्पक्षता और समान
बटवारे जैसे मुद्दों पर भारत सरकार के लिए सलाहकार और विनियामक की भूमिका निभाती
है।
पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस
प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के
पक्षियों का 14 प्रतिशत है। गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध
शहरों ही नहीं, जंगलों से खत्म हो गए। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया। 1997 में
रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे
ज्यादा 30 हजार मरे। आखिर क्यों मरे रेबीज से, एक प्रश्न उठा। स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन
में पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण हुआ। वहीं दूसरी तरफ
चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि
पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का
प्रकीणन और परागण भी काफ़ी हद तक प्रभावित हुआ। अमेरिका जैसा देश अपने यहाँ
के चमगादड़ों को संरक्षित करने में जुटा पड़ा है। अब हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो
पूरी तरह बेकार हैं। मगर वैज्ञानिक जागरूक करा रहे हैं। चमगादड़ मच्छरों के लार्वा
खाता है। यह रात्रिचर परागण करने वाला प्रमुख पक्षी है। उल्लू से क्या फायदा,
मगर किसान जानते हैं कि वह खेती का मित्र है, जिसका
मुख्य भोजन चूहा है।