■ प्रति वर्ष 75 हजार छात्रों को मिलती है कामिल व फाजिल की डिग्री
■ देश के किसी भी विश्वविद्यालय में डिग्री मान्य नहीं
गोरखपुर : मदरसा शिक्षा बोर्ड से कामिल व फाजिल की डिग्री अगर आप स्नातक और परास्नातक मानकर हासिल कर रहे हैं तो जरा ठहरिये। ये डिग्रियां किसी काम की नहीं हैं। मदरसा बोर्ड हर साल हजारों छात्रों को ‘फर्जी’ डिग्री बांट रहा है। बोर्ड मुंशी/मौलवी (हाईस्कूल के समकक्ष), आलिम (इंटर), कामिल (बीए) तथा फाजिल (एमए) की परीक्षा कराता है। मुंशी, मौलवी व आलिम के सर्टिफिकेट की मान्यता है और उस पर डिग्री कालेज या विश्वविद्यालय में एडमीशन हो जाता है लेकिन, कामिल और फाजिल की डिग्री को स्नातक और परास्नातक के समकक्ष मान्यता नहीं है। इस डिग्री पर देश में न कहीं नौकरी मिलेगी और न ही एडमिशन।
प्रदेश में हर वर्ष तकरीबन 75 हजार छात्रों को बोर्ड द्वारा कामिल व फाजिल की डिग्री दी जा रही है। इस वर्ष प्रदेश में 2.95 लाख परीक्षार्थी मदरसा शिक्षा बोर्ड की मुंशी, मौलवी, आलिम, कामिल एवं फाजिल की परीक्षा दे रहे हैं। जबकि पिछले वर्ष 3.71 लाख छात्र परीक्षा में सम्मलित हुए थे। यूपी बोर्ड की तरह मदरसा बोर्ड भी अधिकतम इंटर स्तर तक की परीक्षा आयोजित करा सकता है लेकिन, बोर्ड नियमों की अनदेखी कर 1987 से ही कामिल एवं फाजिल की डिग्री दे रहा है। 87 में ही मदरसा बोर्ड की पहली नियमावली बनी थी। इस डिग्री पर देश के किसी भी कालेज या विश्वविद्यालय में एडमिशन एवं नौकरी नहीं मिलती। यह जरूर है प्रदेश के अनुदानित मदरसों में नौकरी के लिए इसे स्वीकृत कर लिया जाता है।
सपा सरकार में आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद इदरीस बस्तवी एवं राष्ट्रीय सचिव वहीदुल्लाह खान सईदी ने कामिल एवं फाजिल को उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय से संबंद्ध कराने की बहुत कोशिशें की। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मदरसों को रामपुर स्थित मौलाना मोहम्मद जौहर अली विश्वविद्यालय एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के मदरसों को मान्यवर कांशीराम उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय (अब हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू-अरबी-फारसी विश्विद्यालय) से संबंद्ध कर की बात भी रखी, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। वहीं कामिल व फाजिल के छात्रों को पढ़ाने के लिए अधिकांश मदरसों में शिक्षक भी नहीं है।
मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया के प्रधानाचार्य हाफिज नजरे आलम ने बताया कि कामिल व फाजिल की डिग्री की मान्यता को लेकर हमलोग वर्षो से आवाज उठाते आ रहे हैं। मान्यता न होने से दोनों डिग्री किसी काम की नहीं है। रामपुर एवं लखनऊ में उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय है
■ देश के किसी भी विश्वविद्यालय में डिग्री मान्य नहीं
गोरखपुर : मदरसा शिक्षा बोर्ड से कामिल व फाजिल की डिग्री अगर आप स्नातक और परास्नातक मानकर हासिल कर रहे हैं तो जरा ठहरिये। ये डिग्रियां किसी काम की नहीं हैं। मदरसा बोर्ड हर साल हजारों छात्रों को ‘फर्जी’ डिग्री बांट रहा है। बोर्ड मुंशी/मौलवी (हाईस्कूल के समकक्ष), आलिम (इंटर), कामिल (बीए) तथा फाजिल (एमए) की परीक्षा कराता है। मुंशी, मौलवी व आलिम के सर्टिफिकेट की मान्यता है और उस पर डिग्री कालेज या विश्वविद्यालय में एडमीशन हो जाता है लेकिन, कामिल और फाजिल की डिग्री को स्नातक और परास्नातक के समकक्ष मान्यता नहीं है। इस डिग्री पर देश में न कहीं नौकरी मिलेगी और न ही एडमिशन।
प्रदेश में हर वर्ष तकरीबन 75 हजार छात्रों को बोर्ड द्वारा कामिल व फाजिल की डिग्री दी जा रही है। इस वर्ष प्रदेश में 2.95 लाख परीक्षार्थी मदरसा शिक्षा बोर्ड की मुंशी, मौलवी, आलिम, कामिल एवं फाजिल की परीक्षा दे रहे हैं। जबकि पिछले वर्ष 3.71 लाख छात्र परीक्षा में सम्मलित हुए थे। यूपी बोर्ड की तरह मदरसा बोर्ड भी अधिकतम इंटर स्तर तक की परीक्षा आयोजित करा सकता है लेकिन, बोर्ड नियमों की अनदेखी कर 1987 से ही कामिल एवं फाजिल की डिग्री दे रहा है। 87 में ही मदरसा बोर्ड की पहली नियमावली बनी थी। इस डिग्री पर देश के किसी भी कालेज या विश्वविद्यालय में एडमिशन एवं नौकरी नहीं मिलती। यह जरूर है प्रदेश के अनुदानित मदरसों में नौकरी के लिए इसे स्वीकृत कर लिया जाता है।
सपा सरकार में आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद इदरीस बस्तवी एवं राष्ट्रीय सचिव वहीदुल्लाह खान सईदी ने कामिल एवं फाजिल को उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय से संबंद्ध कराने की बहुत कोशिशें की। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मदरसों को रामपुर स्थित मौलाना मोहम्मद जौहर अली विश्वविद्यालय एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के मदरसों को मान्यवर कांशीराम उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय (अब हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू-अरबी-फारसी विश्विद्यालय) से संबंद्ध कर की बात भी रखी, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। वहीं कामिल व फाजिल के छात्रों को पढ़ाने के लिए अधिकांश मदरसों में शिक्षक भी नहीं है।
मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया के प्रधानाचार्य हाफिज नजरे आलम ने बताया कि कामिल व फाजिल की डिग्री की मान्यता को लेकर हमलोग वर्षो से आवाज उठाते आ रहे हैं। मान्यता न होने से दोनों डिग्री किसी काम की नहीं है। रामपुर एवं लखनऊ में उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय है