Friday, April 21, 2017

छोटी सी शुरुआत करके बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है
 एक समय की बात है जब एक छोटे से गांव में कृष्णपाल नामक व्यक्ति रहता था। कृष्णपाल बड़ा होशियार था, उसके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपना जीवन जैसे-तैसे निर्वाह कर रहे थे। अब कृष्णपाल वृद्ध हो चला था। पत्नी के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ती का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये? उसने बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पांच दानें दिए और कहा कि मैं तीरथ पर जा रहा हूं और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा तिजोरी की चाबियां और मेरी सारी संपत्ती उसे ही मिलेगी, इतना कहकर कृष्णपाल वहां से चला गया।
पहले बहु-बेटे ने सोचा बुड्ढा सठिया गया है चार साल तक कौन याद रखता है हम तो बड़े हैं तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है। ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दानें फेक दिये। दूसरे ने सोचा की संभालना तो मुश्किल है यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे और कहे की तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ती हमारी हो जाएगी यह सोचकर उन्होंने वो पांच दानें खा लिये। तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे ठाकुरजी को संभालते हैं, वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।
चौथे बहु-बेटे ने समझदारी से सोचा और पाचों दानों को एक-एक कर जमीन में बो दिया और देखते-देखते वे पौधे बड़े हो गए और कुछ गेहूं ऊग आए फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई।
चार साल बाद जब कृष्णपाल वापस आया तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गया तो बेटा बोला,” पिताजी, आपने जो पांच दाने दिए थे अब वे गेंहूं की पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उनपर आप ही का हक है।यह देख कृष्णपाल ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियां सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मिली हुई जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनो, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों का सही उपयोग करना चाहिए। एक छोटी सी शुरुआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।



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