गुलजारीलाल नन्दा
4 जुलाई 1898
- 15 जनवरी 1998
गुलजारीलाल नन्दा एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था। वे १९६४ में
प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्युपश्चात् भारत के
प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार
पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में
कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966
में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनका कार्यकाल दोनों बार उसी
समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया।
नंदाजी के रूप में विख्यात गुलज़ारी
लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट में हुआ था, और यह सेन परिवार से
थे जो अब पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा है। इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा तथा
माता का नाम श्रीमती ईश्वर देवी नंदा था। नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही
सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने लाहौर के 'फ़ोरमैन
क्रिश्चियन कॉलेज' तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन
किया। गुलज़ारी लाल नंदा ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि
प्राप्त की। इनका विवाह 1916 में 18 वर्ष की उम्र में ही लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हो गया था। इनके
परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री सम्मिलित हुए।
गुलज़ारी लाल नंदा का भारत के
स्वाधीनता संग्राम में योगदान रहा। नंदा का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति
समर्पित था। 1921 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग
लिया। नंदा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मुम्बई के नेशनल कॉलेज में
अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। अहमदाबाद की
टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और 1922 से 1946 तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर
गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का
प्रयास करते रहे। 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और
1942-1944 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इन्हें जेल भी
जाना पड़ा।
नंदा बॉम्बे की विधानसभा में 1937 से 1939
तक और 1947 से 1950 तक
विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार मुम्बई सरकार
में रहते हुए देखा। 1947 में 'इंडियन
नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थापना हुई और इसका श्रेय
नंदाजी को जाता है। मुम्बई सरकार में रहने के दौरान गुलज़ारी लाल नंदा की प्रतिभा
को रेखांकित करने के बाद इन्हें कांग्रेस आलाक़मान ने दिल्ली बुला लिया। यह 1950-1951,
1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना
आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। ऐसे में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में इनका काफ़ी
सहयोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने निम्नवत् प्रकार से
केन्द्रीय सरकार को सहयोग प्रदान किया-
गुलज़ारी लाल नंदा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रहे
और स्वतंत्र मंत्रालयों का कार्यभार सम्भाला। नंदाजी ने योजना मंत्रालय का
कार्यभार सितम्बर 1951 से मई 1952 तक
निष्ठापूर्वक सम्भाला। नंदाजी ने योजना आयोग एवं नदी घाटी परियोजनाओं का कार्य मई 1952
से जून 1955 तक देखा। नंदाजी ने योजना,
सिंचाई एवं ऊर्जा के मंत्रालयिक कार्यों को अप्रैल 1957 से 1967 तक देखा। नंदाजी ने श्रम एवं रोज़गार
मंत्रालय का कार्य मार्च 1963 से जनवरी 1964 तक सफलतापूर्वक देखा।
नंदाजी ने मंत्रिमण्डल में वरिष्ठतम
सहयोगी होने के कारण दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सम्भाला। इनका
प्रथम कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक रहा,
जब पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था। दूसरा कार्यकाल 11
जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा, जब
लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में देहान्त हुआ। नंदाजी प्रथम पाँच आम चुनावों में
लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
नंदाजी ने एक लेखक की भूमिका अदा करते
हुए कई पुस्तकों की रचना की। जिनके नाम इस प्रकार हैं- सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु
तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री
ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स, फॉर ए मौरल
रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन।
गुलज़ारीलाल नन्दा को देश का सर्वोच्च
सम्मान भारत रत्न (1997) और दूसरा सर्वश्रेष्ठ
नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया।
नंदा दीर्घायु हुए और 100 वर्ष की अवस्था में इनका निधन 15 जनवरी 1998
को हुआ। इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में
सदैव याद रखा जाएगा।