चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त राज्य के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। जवाबी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी, जिससे उनके सभी कब्जेधारी मारे गए। इस घटना के कारण तीन नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी। महात्मा गांधी, जो हिंसा के सख्त खिलाफ थे, ने इस घटना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 12 फरवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को रोक दिया था।चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुक़दमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी।
इस घटना के तुरन्त बाद गांधीजी ने
असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधीजी का यह
निर्णय उचित नहीं लगा। विशेषकर क्रांतिकारियों ने
इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। 1922 की गया कांग्रेस में प्रेमकृष्ण
खन्ना व उनके साथियों ने रामप्रसाद
बिस्मिल के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी
का विरोध किया।
चौरी चौरा कांड
चौरी-चौरा
घटना के आज 100 साल पूरे हो गए हैं. ये वो घटना है जिससे 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुक्मरान पूरी तरह हिल गए
थे. वैसे ये वो घटना भी है, जिसकी वजह से गांधीजी ने
असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया. क्या था चौरी चौरा कांड, जिसे
भारतीय आजादी की लड़ाई में हमेशा याद रखा जाएगा.
जब भी असहयोग आंदोलन की बात चलती है, तब
चौरी-चौरा की घटना अमिट तौर पर इसके साथ याद आती है. आज उसी चौरी चौरा कांड के 100
साल पूरे हो गए. इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार सालभर कई प्रोग्राम
करने वाली है. क्या थी ये घटना, जो भारतीय आजादी की लड़ाई
में हमेशा के लिए अंकित हो गई.
दरअसल जब पूरे देश में असहयोग आंदोलन चरम छू रहा था.
अंग्रेज सरकार के पसीने छूटने लगे थे, तब
एक ऐसी घटना हुई, जिससे महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को
वापस ले लिया. ये गोरखपुर के चौरी चौरा गांव में घटित ऐसी घटना थी, जिसने अनजान से एक गांव को चर्चित कर दिया, इस
घटना में वहां के थाना भवन को आग लगा दी गई. जिसमें 24 पुलिस
के लोग जलकर मर गए.
जब गांधीजी ने इस घटना के बाद असहयोग आंदोलन को वापस
लिया तो सुभाष चंंद्र बोस, चितरंजन देशबंधु और मोतीलाल
नेहरू जैसे कई शीर्ष कांग्रेस नेता उनसे नाराज भी हुए. लेकिन ये तय था कि
चौरी-चौरा की घटना में देश को एक अलग तरह से जगाया और अंग्रेजों को डराया.
इस घटना में 4 फरवरी 1922 के दिन 3000 लोगों की नाराज भीड़ ने गोरखपुर
के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी. इसमें पहले ही दिन दारोगा समेत 22
पुलिसकर्मियों की जान गई. इसके बाद आग से झुलस गए दो अन्य पुलिस
वालों की जान उसके अगले दिनों में गई. मारे गए सभी पुलिसकर्मी भारतीय थे. उनमें
कुछ हिंदू और कुछ मुस्लिम थे.
नाराज भीड़ ने घेर लिया था थाना
अंग्रेजों के दस्तावेज के अनुसार इस घटना में तीन
प्रदर्शनकारियों की भी मौत हुई, हालांकि माना जाता है कि
आम जनता की मौत का आंकड़ा और ज्यादा था, जिसे अंग्रेज
हुक्मरानों ने बहुत चालाकी से छिपा लिया. ये घटना इस खबर से शुरू हुई कि चौरी-चौरा
पुलिस स्टेशन के दारोगा ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा
है. ये बात इतनी बढ़ी कि पुलिस को लाठीचार्ज और फिर फायरिंग करनी पड़ी. फिर नाराज
भीड़ ने चारों ओर से थाने को घेर लिया. थाने को आग लगा दी गई.
24 पुलिसकर्मी जलकर मारे गए
जब नाराज भीड़ पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ थाने को
घेर रही थी, तब पुलिसवालों ने थाने के दरवाजे बंद कर लिए.
वो अंदर छिप गए. सुखी लकड़ियां, कैरोसिन आयल की मदद से
प्रदर्शनकारियों ने थाना भवन को आग लगाई. ये घटना दोपहर में करीब 1.30 बजे शुरू हुई और शाम 04.00 बजे तक चलती रही.
गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया
ये खबर कई दिन बाद महात्मा गांधी के पास पहुंची. जब
उन्हें इसकी जानकारी हुई तो वो विचलित हो गए. उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था.
हालांकि जब वो ये फैसला कर रहे थे, तो कांग्रेस के उनके
सहयोगियों ने उन्हें ऐसा नहीं करने को कहा. सहयोगियों में कई शीर्ष नेताओं ने कहा
कि किसी भी बड़े आंदोलन में इस तरह की एकाध घटनाएं होती ही हैं. लेकिन गांधीजी
नहीं माने.
16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध'
में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों
पर भी ऐसी घटनाएं होतीं.
गांधीजी ने भी पुलिस को बताया था कसूरवार
वैसे गांधीजी ने इस घटना के लिए पुलिस वालों को ही
कसूरवार बताया. गांधीजी ने माना कि पुलिस की कार्रवाई बहुत उकसाने वाली थी. इसी की
वजह से लोगों में नाराजगी फैली. हालांकि उन्होंने इस मामले में जिम्मेदार लोगों से
अपील भी की कि वो खुद को पुलिस के हवाले कर दें, क्योंकि
उन्होंने अपराध किया है.
ब्रिटिश सरकार ने राहत की सांस ली
गांधीजी ने जब आंदोलन वापस लेने की घोषणा की तो
अंग्रेज सरकार ने राहत की सांस ली लेकिन स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ रहे
ज्यादातर नेताओं ने कहा कि गांधीजी के इस फैसले ने देश को आजादी से कई साल पीछे कर
दिया. ये आजादी की लड़ाई को बड़ा झटका था
हालांकि अंग्रेजों ने असहयोग आंदोलन करने के चलते
गांधीजी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया. मार्च 1922 में
उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता
अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को
पारित हुआ था. गांधीजी ने तब कहा था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन
किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे.
असहयोग आंदोलन में हर स्तर पर हुआ था बहिष्कार
असहयोग आंदोलन में सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था. ये बहुत हद
तक कामयाब रहा. लोगों ने स्कूल, कॉलेज जाना छोड़ा.
नौकरियां छोड़ीं. बड़े पैमाने पर हर जगह विदेशी सामानों की होली जलाई जाने लगी.