मोतीलाल
नेहरू
6 मई 1861 – 6 फ़रवरी 1931
मोतीलाल
नेहरू इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता थे। वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। वे भारत के
स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं में से थे। जलियांवाला बाग काण्ड के
बाद 1919 में अमृतसर में हुई कांग्रेस के वे पहली
बार अध्यक्ष बने और फिर 1928 में कलकत्ता में
दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
मोतीलाल
नेहरू का जन्म आगरा में हुआ था।
उनके पिता का नाम गंगाधर था।
वह पश्चिमी ढँग की शिक्षा पाने वाले प्रथम पीढ़ी के गिने-चुने भारतीयों में से थे।
वह इलाहाबाद के म्योर केंद्रीय महाविद्यालय में शिक्षित हुए किन्तु बी०ए० की
अन्तिम परीक्षा नहीं दे पाये। बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज से "बार ऐट
लॉ" की उपाधि ली और अंग्रेजी न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में कार्य
प्रारम्भ किया।
मोतीलाल
नेहरू की पत्नी का नाम स्वरूप रानी था। जवाहरलाल नेहरू उनके एकमात्र पुत्र थे।
उनके दो कन्याएँ भी थीं। उनकी बडी बेटी का नाम विजयलक्ष्मी था, जो
आगे चलकर विजयलक्ष्मी पण्डित के नाम से प्रसिद्ध हुई। उनकी छोटी बेटी का नाम
कृष्णा था। जो बाद में कृष्णा हठीसिंह कहलायीं।
लेकिन
आगे चलकर उन्होंने अपनी वकालत छोडकर भारत के
स्वतन्त्रता संग्राम में कार्य किया था। 1923 में
उन्होने देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काँग्रेस पार्टी से अलग होकर अपनी स्वराज
पार्टी की स्थापना की। 1928 में कोलकाता में हुए
काँग्रेस अधिवेशन के वे अध्यक्ष चुने गये। 1928 में
काँग्रेस द्वारा स्थापित भारतीय संविधान आयोग के भी वे अध्यक्ष बने। इसी आयोग ने
नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
मोतीलाल
नेहरू ने इलाहाबाद में एक अलीशान घर बनवाया और उसका नाम आनंद
भवन रखा। इसके बाद उन्होंने अपना पुराना वाला घर स्वराज
भवन काँग्रेस दल को दे दिया।
मोतीलाल
नेहरू का 1931 में इलाहाबाद में निधन हुआ।
नेहरू
परिवार के दिल्ली में सबसे पहले पूर्वज राज कौल थे।