केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के बारे में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल 27 जुलाई 1939 को शाही प्रतिनिधि के पुलिस के रूप में अस्तित्व में आया जो 28 दिसंबर 1949 को सीआरपीएफ अधिनियम के लागू होने पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल बन गया । केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल गौरवशाली इतिहास के 80 वर्ष पूरे कर चुका है यह बल 246 वाहिनीयों के साथ (208 कार्यकारी बटालियनों, 6 महिला बटालियनों, 15 आरएएफ बटालियनों, 10 कोबरा बटालियनों, 5 सिग्नल बटालियनों और एक विशेष कार्य समूह, 1 संसद ड्यूटी समूह, 43 समूह केन्द्रों, प्रशिक्षण संस्थानों, 3 CWS, 7 एडब्ल्यूएस, 2 SWS, 1 MWS, 100 बिस्तर के 4 कम्पोजिट अस्पतालों और 50 बिस्तर के 17 कम्पोजिट अस्पतालों सहित) एक बड़ा संगठन बन चुका है |
मिशन
मिशन कि संविधान की सर्वोच्चता को कायम रखने के द्वारा सरकार को राष्ट्रीय अखंडता बनाए रखने और सामाजिक समानता और विकास को बढ़ावा देने के लिए कानून, लोक व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के नियम को प्रभावी ढंग से और कुशलतापूर्वक बनाए रखने में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल का मिशन होगा सक्षम होना होगा।
विजन
सीआरपीएफ द्वारा किए जा रहे व्यापक कर्तव्य हैं:
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भीड़ पर नियंत्रण
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दंगा नियंत्रण
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काउंटर अलगाववाद / उग्रवाद आपरेशन
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वामपंथी उग्रवाद से निपटना
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परेशान क्षेत्रों में चुनाव के संबंध में विशेष रूप से बड़े पैमाने पर सुरक्षा व्यवस्था का समग्र समन्वय।
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युद्ध की स्थिति में दुश्मन से लड़ने
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सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र शांति पालन मिशन में भाग लेना नीति।
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प्राकृतिक आपदाओं और आपदाओं के समय बचाव और राहत कार्य
के. रि. पु. बल का इतिहास
आंतरिक सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलि बल (सीआरपीएफ) भारत संघ का प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है। यह सबसे पुराना केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल (अब केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के रूप में जानते हैं) में से एक है जिसे 1939 में क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के रूप में गठित किया गया था। क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस द्वारा भारत की तत्कालीन रियासतों में आंदोलनों एवं राजनीतिक अशांति तथा साम्राज्यिक नीति के रूप में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में लगातार सहायता करने की इच्छा के मद्देनजर, 1936 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मद्रास संकल्प के मद्देनजर केरिपुबल की स्थापना की गई।
आजादी के बाद 28 दिसम्बर, 1949 को संसद के एक अधिनियम द्वारा इस बल का नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दिया गया था। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने नव स्वतंत्र राष्ट्र की बदलती जरूरतों के अनुसार इस बल के लिए एक बहु आयामी भूमिका की कल्पना की थी।
1950 से पूर्व भुज, तत्कालीन पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (पीईपीएसयू) तथा चंबल के बीहड़ों के सभी इलाकों द्वारा केरिपुबल की सैन्य टुकडि़यों के प्रदर्शन की सराहना की गई। भारत संघ में रियासतों के एकीकरण के दौरान बल ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जूनागढ़ की विद्रोही रियासत और गुजरात में कठियावाड़ की छोटी रियासत जिसने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए मना कर दिया था, को अनुशासित करने में इस बल ने केंद्र सरकार की मदद की।
आजादी के तुरंत बाद कच्छ, राजस्थान और सिंध सीमाओं में घुसपैठ और सीमा पार अपराधों की जांच के लिए केरिपुबल की टुकडि़यों को भेजा गया। तत्पश्चात पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा शुरू किए गए हमलों के बाद इनको जम्मू-कश्मीर की पाकिस्तानी सीमा पर तैनात किया गया। भारत के हॉट स्प्रिंग (लदाख) पर पहली बार 21 अक्तूबर 1959 को चीनी हमले को केरिपुबल ने नाकाम किया। केरिपुबल के एक छोटे से गश्ती दल पर चीन द्वारा घात लगाकर हमला किया जिसमें बल के दस जवानों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी शहादत की याद में देश भर में हर साल 21 अक्तूबर को पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
1962 के चीनी आक्रमण के दौरान एक बार फिर बल ने अरूणाचल प्रदेश में भारतीय सेना को सहायता प्रदान की। इस आक्रमण के दौरान केरिपुबल के 8 जवान शहीद हुए। पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर 1965 और 1971 में भारत पाक युद्ध में भी बल ने भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
भारत में अर्द्ध सैनिक बलों के इतिहास में पहली बार महिलाओं की 1 टुकड़ी सहित केरिपुबल की 13 कंपनियों को आतंवादियों से लड़ने के लिए भारतीय शांति सेना के साथ श्रीलंका में भेजा गया। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के एक अंग के रूप में केरिपुबल के कर्मियों को हैती, नामीबीया, सोमालिय और मालद्वीव के लिए वहां की कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए भेजा गया।
70 के दशक के पश्चात जब उग्रवादी तत्वों द्वारा त्रिपुरा और मणिपुर में शांति भांग की गई तो वहां केरिपुबल बटालियनों को तैनात किया गया था। इसी दौरान ब्रह्मपुत्र घाटी में भी अशांति थी। केरिपुबल की ताकत न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल्कि संचार तंत्र व्यवधान मुक्त रखने के लिए भी शामिल किया गया। पूर्वोत्तर में विद्रोह की स्थिति से निपटने के लिए इस बल की प्रतिबद्धता लगातार उच्च स्तर पर है।
80 के दशक से पहले पंजाब में जब आतंकवाद छाया हुआ था, तब राज्य सरकार ने बड़े स्तर पर के. रि. पु. बल की तैनाती की मांग की थी।