सर तेज बहादुर सप्रू
8 दिसम्बर 1875
– 20 जनवरी 1949
सर तेज बहादुर सप्रू प्रसिद्ध वकील, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले की उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाया और आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में भी
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तेज बहादुर सप्रू का जन्म अलीगढ़ में हुआ था। उन्होंने आगरा
कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील के रूप में काम किया जहां पुरुषोत्तम दास
टंडन उनके कनिष्ठ सहयोगी थे। इतिहासकारों के अनुसार
सप्रू एक ओर जहां ब्रिटिश राज के खिलाफ थे वहीं दूसरी ओर वह उसके प्रति नरम भी
दिखते थे। एमके भगत ने लिखा है कि सप्रू ब्रिटिश शासकों से लड़ाई की बजाय उनके साथ
बातचीत के पक्षधर थे। उन्होंने स्वशासन की मांग तो की वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता की
मांग का पुरजोर समर्थन नहीं किया।
सप्रू ने एक ओर जहां महात्मा गांधी के नेतृत्व की आलोचना की वहीं दूसरी ओर गांधी-इरविन समझौते में
उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका निभाई। बतौर राजनीतिक करियर सप्रू 1913 से 1916 तक संयुक्त प्रांत की विधान परिषद के सदस्य रहे। 1920 से 1923 तक वह वायसराय की परिषद के कानूनी सदस्य रहे।
1930
से 1932 तक उन्होंने भारतीय गोलमेज सम्मेलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। 1934 में वह प्रिवी
काउंसिल के सदस्य भी रहे। सप्रू उन अत्यंत महत्वपूर्ण वकीलों में से एक थे
जिन्होंने आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह अंबिका
प्रसाद सप्रू की एकमात्र संतान थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद 20 जनवरी 1949 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया।