सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का
विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होने इंदिरा गांधी की सत्ता को
उखाड़ फेकने के लिये किया था।
लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति
में सात क्रांतियाँ शामिल है - राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक,
सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक
व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।
पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान
में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आहवान किया था। मैदान में उपस्थित
लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का
संकल्प लिया था। उसी मैदान में हजारों-हजार ने अपने जनेऊ तोड़
दिये थे। नारा गूंजा था:
जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो।
समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़
दो।
सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक
थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जय प्रकाश नारायण
जिनकी हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी
सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जेपी के
नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी, आज के सारे
नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।
’’सम्पूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य
समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है |’’
- लोकनायक जय प्रकाश नारायण
- लोकनायक जय प्रकाश नारायण
5 जून, 1974 की विशाल सभा में
जे. पी. ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया। क्रान्ति शब्द नया नहीं था,
लेकिन ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ नया था। गांधी परम्परा में ‘समग्र क्रान्ति’ का प्रयोग होता था।
पांच जून को सांयकाल पटना के गांधी मैदान पर लगभग पांच लाख
लोगों की अति उत्साही भीड़ भरी जनसभा में देश की गिरती हालत, प्रशासनिक भ्रष्टचार, महंगाई, बेरोजगारी,
अनुपयोगी शिक्षा पध्दति और प्रधान मंत्री द्वारा अपने ऊपर लगाये गए
आरोपों का सविस्तार उत्तर देते हुए जयप्रकाश नारायण ने बेहद भावातिरेक में
जनसाधारण का पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के लिये आह्वान किया। जे.पी. ने कहा-
‘यह क्रान्ति है मित्रों! और सम्पूर्ण
क्रान्ति है। विधान सभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का
पत्थर है। हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।’
पांच जून को जे. पी. ने घोषणा की:-
भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में
क्रान्ति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी
नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे
तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए। और, सम्पूर्ण
व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति- ’सम्पूर्ण क्रान्ति’
आवश्यक है। इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह सम्पूर्ण और
बहुमुखी (टोटल ऐण्ड मल्टीडाइमेंशनल) है, इसलिए इसका समाधान
सम्पूर्ण और बहुमुखी ही होगा। व्यक्ति का अपना जीवन बदले, समाज
की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले, तब कहीं बदलाव पूरा होगा; और मनुष्य सुख और शान्ति
का मुक्त जीवन जी सकेगा। … जे.पी. का ‘सम्पूर्ण’ गांधी का ‘समग्र’
है।
जे.पी. ने छात्रें से सम्पूर्ण
क्रान्ति को सफल बनाने के लिए एक वर्ष तक विश्वविद्यालयों और कालेजों को बंद रखने
का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि- ‘केवल मंत्रिमंडल का त्याग पत्र या
विधान सभा का विघटन काफी नहीं है, आवश्यकता एक बेहतर
राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने की है। छात्रें की सीमित मांगें, जैसे भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी का निराकरण, शिक्षा
में क्रान्तिकारी परिवर्तन आदि बिना सम्पूर्ण क्रान्ति के पूरी नहीं की जा सकती।’
उन्होंने सीमा सुरक्षा बल और बिहार सशस्त्र पुलिस के जवानों से अपील
की कि वे सरकार के अन्यायपूर्ण और गैर कानूनी आदेशों को मानने से इनकार कर दें।
जे.पी. ने सात जून से बिहार विधान सभा
भंग करो अभियान चलाने, मंत्रियों और विधायकों को विधान सभा में प्रवेश करने से
रोकने के लिए सभा के फाटकों पर ध्रना देने, प्रखण्ड से
सचिवालय स्तर तक प्रशासन ठप्प करने, लोकशक्ति को बढ़ाने हेतु
छात्र-युवक एवं जन संगठन बनाने, नैतिक मूल्यों की सदाचरण
द्वारा स्थापना करने तथा गरीब और कमजोर वर्ग की समस्याओं से निपटने के लिए भी
छात्रों और जनसाधारण का आह्वान किया।
सात जून को
जे.पी. का भाषण जब समापन की ओर था तभी
सभास्थल पर गोलियों से घायल लगभग 12 लोग पहुंचे और सभा में तीव्र
उत्तेजना फैल गई। ये राजभवन से लौटने वाली भीड़ के वे लोग थे जो पीछे रह गए थे। इन
लोगों पर बेली रोड स्थित एक मकान से गोली चलाई गई थी। पटना के जिलाधीश विजयशंकर
दुबे के अनुसार- उस मकान में ‘इन्दिरा ब्रिगेड’ नामक संगठन के कार्यकर्ता रहते थे। उनमें छह व्यक्ति गिरफ्तार कर लिए गए
हैं, जिनमें से एक के पास से धुआं निकलती बन्दूक और छह
गोलियां बरामद की गई हैं। सभा में जिलाधीश द्वारा लिखा गया पत्र भी पढ़कर सुनाया
गया, जिसमें पुलिस द्वारा तत्काल कार्रवाई करने तथा
गोलीकाण्ड के बावजूद प्रदर्शनकारियों द्वारा शान्ति और संयम बरतने की सराहना की गई
थी। विशाल जन समूह के लोग गोलीबारी से चोट खाए लोगों को देखकर इस हद तक उद्वेलित
हो उठे थे कि यदि जे.पी. को दिया गया शान्तिपूर्ण रहने का वचन न होता और स्वयं
जे.पी. वहां मौजूद न होते, तो शायद उस शाम इन्दिरा ब्रिगेड
के दफ्तर से लेकर विधान भवन-सचिवालय आदि, सब कुछ जल गया
होता। सभा स्थल पर जे.पी. ने कहा- ‘देखो ऐसा नहीं होना चाहिए
कि आप लोग धारा में बह जाएं, उस स्थान पर जाकर आग लगा दें।
वचन देते हो न कि शान्त रहोगे?’ लाखों ने हाथ उठाकर, सिर हिलाकर और ‘हां’ की जोरदार
आवाज लगाकर जे.पी. को वचन दिया। प्रदर्शनकारियों और आम जनता ने- ’हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा’ के नारे का वस्तुत: पालन करके जे.पी. को दिखा दिया। लोग एकदम शान्त हो गये,
ऐसा था जे.पी. का प्रभाव और उनके नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन का
अनुशासन।
जे.पी. के निकट सहयोगी एवं प्रख्यात्
चिन्तक आचार्य राममूर्ति के
अनुसार- ‘पांच जून के विशाल प्रदर्शन को देखकर ऐसा लगा जैसे
पूरा बिहार खड़ा हो गया है और जनता किसी अज्ञात नियति की ओर बढ़ने को आतुर है।…
सारे संघर्ष ने ‘सत्ता बनाम जनता’ का रूप ले लिया। पांच जून, आन्दोलन में नए मोड़ का
दिन था। वह एक विशेष दिन था जब बूढ़े और बीमार जे.पी. हस्ताक्षरों के बण्डल ट्रक
पर लादकर राज्यपाल के घर गए। इन हस्ताक्षरों में इस बात की घोषणा थी कि प्रचलित
सत्ता में जनता का विश्वास नहीं रहा और इस बात की भी परोक्ष घोषणा थी कि उसे
विश्वास है जे.पी. और उनके आन्दोलन पर।’
बिहार छात्र आन्दोलन का चौथा चरण सात
जून, 1974 से जयप्रकाश नारायण
के इस आह्वान के अनुसार प्रारम्भ हुआ कि ‘हमें सम्पूर्ण
क्रान्ति चाहिए, इससे कम नहीं।’ ‘विधान
सभा भंग करो।’ के स्थान पर ‘विधान सभा
भंग करेंगे’ के नारे के साथ अहिंसक एवं शान्तिपूर्ण ढंग से
सत्याग्रह, ध्रना आदि का कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।
जे.पी. द्वारा निर्देशित आन्दोलन का कार्यक्रम निम्न प्रकार था:- 1. विधान सभा भंग करने का अभियान चलाना
2. विधान सभा के सभी फाटकों पर सत्याग्रह और ध्रना आयोजित कर सदस्यों को अन्दर न जाने देना।
3. सचिवालय से लेकर ब्लाक स्तर तक प्रशासनिक कामकाज एकदम ठप्प कर देना।
4. अपनी मांगों की पूर्ति के लिए प्रदर्शन, सत्याग्रह कर जेल जाना।
2. विधान सभा के सभी फाटकों पर सत्याग्रह और ध्रना आयोजित कर सदस्यों को अन्दर न जाने देना।
3. सचिवालय से लेकर ब्लाक स्तर तक प्रशासनिक कामकाज एकदम ठप्प कर देना।
4. अपनी मांगों की पूर्ति के लिए प्रदर्शन, सत्याग्रह कर जेल जाना।
छात्र संघर्ष समिति द्वारा विधायकों के
इस्तीफे की मांग
छात्र संघर्ष समिति ने विधान सभा के
समक्ष ध्रना प्रारम्भ करने के पूर्व सभी दलों के विधायकों से त्याग पत्र देने की
मांग की और घोषित किया कि बिहार विधान सभा को भंग करने की मांग को लेकर ध्रने का
कार्यक्रम एक सप्ताह तक चलेगा। यदि तब तक विधायकों ने इस्तीफे नहीं दिये तो 12 जून से उनके घरों का
घेराव किया जाएगा।
बिहार में आन्दोलन नए चरण में पहुंच
गया। सम्पूर्ण प्रदेश की जनता संघर्ष करने की मन:स्थिति में आती जा रही थी। वहीं
इस आन्दोलन में छात्रें के समर्थक गैर-कम्युनिस्ट विपक्षी दलों में वैचारिक, रणनीति संबंधी एवं
संगठनात्मक संकट गंभीर हो गया। हुआ यह कि इन दलों के अनेक विधायकों ने पांच जून की
अंतिम तिथि बीत जाने के बावजूद अपनी पार्टी के नेतृत्व द्वारा दिए गए निर्देश के
बावजूद विधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र नहीं दिया।
विधान सभा के 24 सदस्यीय जनसंघ गुट के
विधायकों में लालमुनि चौबे ने अगुवाई की और उनके सहित 12 विधायकों
ने विधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दिया, पर आठ जनसंघी
विधायकों ने पार्टी के निर्देश को ठुकरा दिया। जनसंघ ने इन आठ विधायकों तथा तीन
अन्य को पार्टी से छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया। शेष एक विधायक ने उसी दिन
त्याग पत्र दे दिया। तेरह सदस्यीय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के 7 विधायकों ने इस्तीफा दिया, अन्य ने नहीं। विधान सभा
अधायक्ष हरिनाथ मिश्र के अनुसार उस समय तक केवल 19 विधायकों
ने इस्तीफे दिए थे, जिन्हें वे स्वीकार कर चुके थे। संगठन
कांग्रेस ने निर्णय किया कि उसके विधायकों के इस्तीफे का प्रश्न 15 व 16 जून को कलकत्ता में हो रही कांग्रेस संगठन ‘महासमिति’ की बैठक तक स्थगित रहेगा तथा इस मामले पर
हाई कमान से विचार किया जाएगा। इस प्रकार कांग्रेस के 23 विधायकों
में से किसी ने इस्तीफा नहीं दिया।
विधान सभा के सामने सत्याग्रह, 53 सत्याग्रही
गिरफ्तार
सात जून को पटना में बिहार विधान सभा
के समक्ष छात्र संघर्ष समिति, सर्वोदय मण्डल तथा गैर-कम्युनिस्ट विपक्षी दलों की ओर से
ध्रना दिया गया। ध्रने के दौरान विधायकों को विधान सभा में जाने से रोकने पर 53
सत्याग्रही गिरफ्तार किए गए, जिनमें सर्वोदय
नेता रामनन्दन सिंह, जन संघ के नेता विजयकुमार मिश्र तथा
छात्र नेता विद्यानन्द तिवारी शामिल थे।
इसी दिन बिहार छात्र संघर्ष समिति की
संचालन समिति ने छात्रें का आह्वान किया कि वे एक वर्ष तक अपनी कक्षाओं का
बहिष्कार करें और श्री जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में शामिल हों। राज्य के
विभिन्न जिलों के छात्रें द्वारा जिलाधीश कार्यालयों, अन्य सरकारी दफ्तरों
से लेकर ब्लाक मुख्यालयों पर ध्रना-प्रदर्शन आदि करने का कार्यक्रम क्रियान्वित
किया गया।
बिहार सरकार के मंत्री दरोगा प्रसाद
राय ने घोषणा की कि विधायकों के निवास स्थान को ‘सुरक्षित क्षेत्र’ घोषित कर वहां पुलिस का पहरा रहेगा। अनाधिकृत व्यक्तियों के जाने पर रोक
लगाई जाएगी और मिलने वालों की पूरी जांच की जाएगी।