जैसा कि सर्वविदित है कि शैक्षिक सत्र 2018-19
के माह अगस्त से प्रदेश के समस्त 75 जनपदों में स्वयंसेवी संस्था प्रथम के
निर्देशन में मिशन शिक्षा कायाकल्प के तहत ग्रेडेड लर्निंग कार्यक्रम को संचालित
किया जा रहा है जो दो वर्गों में विभाजित किया गया है कक्षा 1-2 तथा कक्षा 3-5
जिसमे हिंदी व गणित का निर्धारित अवधि में प्रत्येक कार्यदिवस में 1--1 घंटे का
विशेष शिक्षण कार्य किया जाएगा जहां बच्चों को उसके स्तर के अनुसार शिक्षा प्रदान
की जाएगी जिसके लिए प्रत्येक विद्यालय के दो शिक्षको को brc स्तर पर प्रशिक्षित कराया गया है।
प्रारंभ
में प्रथम संस्था का कार्य सर्वे के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा के स्तर को जांचने
के था जिसे असर रिपोर्ट के माध्यम से देशभर में प्राथमिक शिक्षा के गिरते स्तर को
प्रचारित करते थे उसी को आधार बनाकर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के गिरते स्तर को
रोकने के लिए सरकार के सामने सुधार के
प्रस्ताव रखे प्रथमदृष्टया उन सुधारों के सुझाव सरकार को पसंद आ गए और सरकार ने
प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में उनको खुला आमंत्रण देकर उनके द्वार खोल दिये।यदि
बात स्वयंसेवी संस्था द्वारा अपने खर्चे पर सुधार की बात होती तो इसका उद्देश्य सीमित
अवधि में सुधार के लिए होता लेकिन इससे कहीं आगे जाकर सरकार से भारी भरकम बजट इस
मद में आवंटित करा लिया और बेसिक शिक्षा निदेशक के लिए ग्रेडेड लर्निंग कार्यक्रम
एक ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया हालांकि ये वास्तविकता में कितना सफल होगा ये भविष्य के
गर्त में है पर कागजी आंकड़ो में अवश्य सफल होता दिख रहा है जहां शिक्षक अपनी नौकरी
बचाने के लिए संघर्षरत दिख रहा है और कागज़ी आंकड़ो में सुधार कर उनको प्रस्तुत कर
दे रहा है। इन्ही आंकड़ो को कितनी चतुराई से संबंधित शिक्षको से ही जुटाया गया है
और सुधार के संकेत भी इन्ही शिक्षको से ले लिए गए है कि ग्रेडेड लर्निंग के संचालन
मात्र से ही 60 कार्यदिवसों में ही इतना सुधार हो गया है जो पूरे सालभर मेहनत करने
से भी नही हो पाता। अब इसी का लाभ उठाकर प्रथम संस्था ने अपने पैर जमा लिए है और
अपने जिला समन्वयकों के लिए जिला कार्यालय में स्थान तक आवंटित करा लिए है जहां
इनके पैर मजबूती से दिखने लगे गए है।
ग्रेडेड लर्निंग :- वास्तविक सुधार या महज
दिखावा
अगर अनुश्रवण को आधार बनाया जाए तो अधिकांश
स्कूलों में स्थिति जस की तस है जहां कहीं जिला समन्वयक सहित DRP व BRP एक्टिव
रहे है वहां थोड़ा बहुत सुधार ही हो पाया है अन्यथा स्थिति जस की तस है। ज्यादातर
जगह कागजी आंकड़े ही पूरे किए गए हैं। साथ ही इसकी एक सबसे बड़ी खामी ये रही है कि
यदि किसी के द्वारा अप्प में कोई गलत फीडिंग हो गई है तो उसके सुधार के रास्ते बंद
है जिसमे चाहकर भी कोई कुछ नही कर पाता। वहीं भारी भरकम बजट के होते हुए भी DRP व BRP को
कोई भी मानदेय आवंटित नही किया गया है जबकि सरकार हर अलग काम के लिए निर्धारित
मानदेय यथा TA देती है आखिर अनुश्रवण में कोई DRP व BRP कब
तक अपने संसाधन व खर्च पर कार्य करता रहेगा???वहीं
दूसरी और पूरे विद्यालय को मात्र 2 शिक्षको के भरोसे छोड़ दिया गया है यदि छात्र
संख्या ज्यादा है तभी अतिरिक्त शिक्षको को ही प्रशिक्षित कराया गया है अब इस
स्थिति में कक्षा 1-2 का स्तर एक हो गया है जहां अब डिफिकल्टी लेवल के कोई मायने
नही बचे है वहीं 3-5 का भी एक स्तर हो गया है। यदि बात केवल बुनियादी ज्ञान की
होती (यथा कक्षा 1 व 2 हेतु )तब तक तो ग्रेडेड लर्निंग एक बेहतर विकल्प होता। वहीं
बच्चों में शिक्षा के लिए सबसे जरूरी स्टेप सुबोपलि में लि यानी लिखने के लिए कोई
जगह ही नही दी है वो भी कक्षा 3 से 5 के छात्रों के लिए भी जिनके लिए लिखना बहुत
जरूरी होता। अब यदि कोई बच्चा अपने घर परिवेश में ही प्रारंभिक रूप से तैयार हो
जाता है तो वो कक्षा 2 से 3 तक ही अच्छे ढंग से पढ़ना लिखना सीख जाता है तो उसके
लिए ग्रेडेड लर्निंग का कोई महत्व ही नही बचता। इस ग्रेडेड लर्निंग कार्यक्रम के
संचालन मात्र से ही विद्यालयी पाठ्यक्रम पटरी से पूरी तरह उतर गया है क्योंकि
संबंधित शिक्षक की सारी ऊर्जा इसी में व्यय होती जा रही है अब वो अपना पाठ्यक्रम
कैसे पूरा करा पायेगा??क्या परिषदीय विद्यालयों के छात्र 2
घंटे ग्रेडेड लर्निंग में व्यस्त रहकर बाकी के घंटो में अन्य विषयों के लिए मानसिक
रूप से तैयार हो पाएंगे???अब जो छात्र पहले से ही पढ़ने लिखने का
अच्छा अभ्यस्त है वो अब अपना पाठ्यक्रम भी पूरा नही कर पायेगा क्या उसके साथ न्याय
हो पायेगा???बेहतर होता कि जो छात्र बेसलाइन टेस्ट
में उच्च स्तर पर पाया जाता है उसको ग्रेडेड लर्निंग से ही बाहर रखा जाता और उसका
पाठ्यक्रम पूरा कराने पर ध्यान दिया जाता वहीं कमजोर bachho के लिए ग्रेडेड लर्निंग को उपचारात्मक
शिक्षण के रूप में प्रस्तुत किया जाता तो इसके परिणाम अच्छे नजर आते। वहीं उक्त
कार्यक्रम को शैक्षिक सत्र के शुरू में ही कराया जाना चाहिए था क्योंकि अधिकांश
जिलों में इसे जनुअरी में धरातल पर उतारा गया तब शीतकालीन अवकाश के साथ साथ अन्य
विभागीय प्रशिक्षणों में शिक्षको को व्यस्त रखा गया ऐसे में bachho को सिखाने में निरंतरता नही आ पाती और
फिर दोबारा से नई शुरुआत करनी पड़ती है अब इन्ही को आधार मानकर इनकी सफलता या
असफलता का अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि विभाग ने अन्य विभागीय प्रशिक्षणों पर भी
इतना ध्यान दिया होता जितना आज ग्रेडेड लर्निंग पर ध्यान दे रही है तो आज बेसिक की
दशा व दिशा दोनों बदल गई होती।किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए उसका निरंतर
अनुश्रवण किया जाना बहुत जरूरी होता है और प्रथम संस्था ने सरकार की इसी कमजोर नस
को पकड़कर अपने कदम मजबूती से पसार लिए है अब इसमें कोई संकोच नही जब प्राथमिक
शिक्षा जल्द ही ppp मॉडल पर संचालित होने चलेगी जिसके लिए
बराबर के हम भी जिम्मेदार होंगे और यदि प्राथमिक शिक्षक पहले से ही बेसिक शिक्षा
के प्रति संवेदनशील होते तो शायद ngo के
पैर पसारने की नौबत ही न आती।अब आने वाले दिन बहुत कष्टकर साबित होंगे जिसकी झलक
अभी से दिखने लगी है कि जैसे ही brp व drp ढीले पड़े तुरंत उनको कारण बताओ नोटिस
थमा दिया गया और जवाबदेही ली गई फिर आप अंदाजा लगा सकते है कि जब पूरी प्राथमिक
शिक्षा ही इनके हवाले हो जाएगी तो फिर लापरवाही पर कार्यवाही होना बिल्कुल तय है।
आप सभी
शिक्षकों से गुजारिश है कि आप जो रिपोर्टिंग करते हैं वो सत्य व यथार्थ रूप में
करे। फर्जी रिपोर्टिंग न करें।
सोशल मीडिया से