स्वतंत्रता के लिए
भारत के संघर्ष में योगदान की बात करें तो हम हमेशा गांधीजी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि के
केंद्रीय नेतृत्व को याद करते हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि स्वतंत्रता के लिए
भारत का संघर्ष एक जन संघर्ष था जिसमे पूर्वोत्तर से किंवदंतियों की भागीदारी भी
अहम् थी, लेकिन
उत्तर पूर्व भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।
उत्तर पूर्व भारत के स्वतंत्रता सेनानी
1. मनिराम देवान
वह असम के सबसे महान
स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उन्होंने असम का पहला चाय बगान स्थापित किया
था। 1857 के विद्रोह के दौरान उनके खिलाफ साजिश रचने के लिए उन्हें अंग्रेजों
ने फांसी दे दी थी।
2. किआंग नंगबाह
वह मेघालय के एक
मात्र ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनको 30 दिसंबर 1862 को पश्चिम जयंतिया
हिल्स जिले में गॉलवे शहर में इवामुसियांग में सार्वजनिक रूप से ब्रिटिश सरकार ने
फांसी दे दिया था। 2001 में, भारत
सरकार ने पुण्यस्मरण के लिए डाक टिकट जारी किया गया था।
3. तजी मिडरें
वह भारत के उत्तर
पूर्वी क्षेत्र के एलोपियन गाँव से थे। उन्होंने ब्रिटिश के अपवित्र विस्तार का
विरोध करने के लिए एक मिश्मी नेतृत्व की स्थापना की थी।
दिसंबर 1917 में उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उसके बाद असम के तेजपुर ले
जाया गया, जहां
उन्हें फांसी दे दी गई थी।
4. रानी गाइदिन्ल्यु
वह एक रोंग्मी नागा
आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता थीं, जिन्होंने ब्रिटिश प्राधिकरण के
खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध को विद्रोह कर दिया था जिसके कारण उन्हें आजीवन कारावास की
सजा हो गयी थी। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें 'रानी' की उपाधि दी और उसके
बाद वे रानी गाइदिन्ल्यु के नाम से ही मशहूर हो गयी। स्वतंत्रता के बाद, उन्हें रिहा कर दिया
गया और बाद में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
5. कुशल कोंवार
वे असम के निवासी थे
और भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी थे जिन्हें भारत छोड़ो आन्दोलन के अन्तिम चरण (1942-43)
में
अंग्रेजों ने फाँसी दे दी थी।
6. शूरवीर पसल्था
वह पहले मिज़ो
स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1890 में ब्रिटिश
प्राधिकरण के अपवित्र विस्तार का विरोध करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया था।
7. हेम बरुआ (त्यागवीर)
वह असम के सोनितपुर
जिले के के एक मात्र स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें असम में आधुनिक साहित्यिक आंदोलन
के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। स्वतंत्रता के बाद, वह समाजवादी पार्टी
में शामिल हो गए और कई बार गुवाहाटी से लोकसभा के लिए चुने गए थे।
8. यू तिरोत सिंग श्याम
वह 19वीं शताब्दी के खासी
लोगों के नेताओं में से एक थे। उन्होंने अपने वंश को सिमीलीह वंश से जोड़ कर खासी
लोगों को एक जुट कर दिया था। वह खासी पहाड़ियों का हिस्सा, नोंगखलाव का सिमीम
(प्रमुख) थे। उन्होंने खासी पहाड़ियों पर नियंत्रण करने के ब्रिटिश प्रयासों के
खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनकी पुण्यतिथि (17 जुलाई,
1835) को
हर साल मेघालय में राजकीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।
9. भोगेश्वरी फुकनानी
उनका जन्म असम के
नौगांव में हुआ था। भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने के लिए
भारत के विभिन्न हिस्सों से कई महिलाओं को प्रेरित किया और उनमें से एक बड़ा नाम
भोगेश्वरी फुकनानी का था. जब क्रांतिकारियों ने बेरहमपुर में अपने कार्यालयों का
नियंत्रण वापस ले लिया था, तब
उस माहौल में पुलिस ने छापा मार कर आतंक फैला दिया था। उसी समय क्रांतिकारियों की
भीड़ ने मार्च करते हुये “वंदे
मातरम्” के
नारे लगाये। उस भीड़ का नेतृत्व भोगेश्वरी ने किया था। उन्होंने उस वक़्त मौजूद
कप्तान को मारा जो क्रांतिकारियों पर हमला करने आए थे। बाद में कप्तान ने उन्हें
गोली मार दी और वह जख़्मी हालात में ही चल बसी।
10. बीर टिकेन्द्र जीत
सिंह
वह स्वतन्त्र मणिपुर
रियासत के राजकुमार थे। उन्हें वीर टिकेन्द्रजीत और कोइरेंग भी कहते हैं। वे
मणिपुरी सेना के कमाण्डर थे। उन्होने 'महल-क्रान्ति' की, जिसके फलस्वरूप 1891 में अंग्रेज-मणिपुरी
युद्ध शुरू हुआ। अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें पकड़कर
सार्वजनिक रूप से उन्हें फांसी दी थी।
11. कनकलता बरुआ
उनका जन्म असम में 1924 में हुई थी तथा असम
के सबसे महान योद्धाओं में से एक हैं। वह असम से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा
शुरू की गई स्वतंत्रता पहल के लिए “करो या मर” अभियान में शामिल हुई
थी और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान असम में भारतीय झंडा फेहराने के लिये आगे बढ़ते
हुये उनकी मृत्यु हो गई थी।
12. मातमोर जमोह
वह एक क्रांतिकारी
नेता थे जो ब्रिटिश वर्चस्व को पसंद नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने उन ब्रिटिश
अधिकारियों को मारना शुरू कर दिया, जो लोगों के जीवन में
हस्तक्षेप करते थे।
13. चेंगजापो कूकी (डोंगल)
उन्हें डूंगेल कबीले
के ऐसन के प्रमुख के रूप में जाना जाता है। कई ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, वह चेंगजापो कूकी के
रूप में लोकप्रिय है। वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अधीन भारतीय राष्ट्रीय सेना के
सदस्य थे।