महाभारतकालीन
लाक्षागृह के इतिहास को खंगालने के लिए बरनावा पहुंची एएसआइ की टीम ने खोदाई कार्य
समाप्त कर लिया है। बरनावा और यहां से सटे सिनौली से खुदाई में कई अहम राज एएसआइ
टीम के हाथ लगे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया है, कि बरनावा के टीले के नीचे बहुसांस्कृतिक मानव
सभ्यता थी। महाभारतकालीन लाक्षागृह के यहीं होने के काफी प्रमाण मिले हैं, लेकिन इन वस्तुओं को लैब में जांच के लिए भेजा गया है। सघन जांच के बाद यह साफ
होगा कि खुदाई में बरामद वस्तुएं तथा कंकाल महाभारतकालीन हैं या नहीं। इसके बाद ही
लाक्षागृह की हकीकत से पर्दा हटेगा।
इतिहासकार तथा
बरनावा की खुदाई में सहयोगी डॉ. अमित राय जैन ने बताया कि खोदाई में बरनावा में
बहुसांस्कृतिक मानव सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। ऐसे प्रमाण हस्तिनापुर में 1952 में प्रो. बीबी लाल के निर्देशन में हुई खुदाई में मिले थे। यहां प्राप्त हुए
मृदभांड सामान्य मृदभांड से अलग हैं। बरनावा में चित्रित धूसर मृदभांड बरामद हुए
हैं। यह अपेक्षाकृत पतले तथा चित्रित हैं, ऐसे ही मृदभांड हस्तिनापुर में पाए गए थे। इससे यह
तो साफ हो गया है कि हस्तिनापुर तथा बरनावा का कनेक्शन है।
दोनों में एक ही तरह
की सभ्यता विकसित रही है,
जिसके करीब पांच हजार साल पुराना होने की संभावना जताई जा रही है। महाभारत का
इतिहास भी इतना ही पुराना है। इसलिए बरनावा के महाभारत कालीन होने की संभावनाएं पुख्ता
हो गई हैं। बरनावा में खुदाई में घर, चूल्हे तथा खिलौने बरामद हुए। इससे यह साफ है कि
बरनावा के टीले के नीचे बस्ती रही है। खुदाई में किसी एक सभ्यता ही नहीं बल्कि
महाभारत काल से लेकर मौर्य सभ्यता, तुंग सभ्यता, कुषाण, गुप्त, राजपूत तथा मुगल काल के अवशेष बरामद हुए हैं।
क्या मिला अहम : इतिहासकार डा. जैन बताते हैं कि बरनावा तथा सिनौली की खुदाई में यहां काफी अहम
चीजें मिली हैं। इसमें हजारों साल पुराना प्रतिहार सभ्यता का शवाधान केंद्र मिला
है। ऐसे शवाधान केरल में पाए जाते हैं। इसमें शवों के साथ पशुओं के नरकंकाल बरामद
हुए हैं। मेसोपोटामिया की सभ्यता में ऐसे मृतक के साथ पशुओं को दफनाने का रिवाज
था।
खुदाई में इंसान के
नरकंकाल के साथ स्वर्ण तथा खाने के सामान, घड़े आदि भी मिले हैं। इससे तांम्र युग की सभ्यता
के अवशेष होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। इन सभी अवशेषों को लाल किले ले जाया गया
है। यहां से इसे लैब में भेजकर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। सोमवार को विधिवत रूप से
सिनौली उत्खनन का समापन उत्खनन निदेशक डॉ. संजय मंजुल, डॉ. अरविन मंजुल द्वारा किया गया।
विशेष रूप से
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को आधार बनाकर शोध एवं अनुसंधान कर रहे शहजाद राय शोध
संस्थान के शोध निदेशकों की टीम ने उपस्थित शोधकर्ताओं को सिनौली सभ्यता के बारे
में जानकारी दी। इनमें जिसमें वरिष्ठ इतिहासकार अमित राय जैन, डॉ. केके शर्मा, डॉ. अमित पाठक भी शामिल थे।