कार्ल हेनरिख मार्क्स
5 मई1818 - 14 मार्च 1883
कार्ल हेनरिख मार्क्स जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और
वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818
को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824
में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात् उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों
में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में
वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में
उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् 1842 में मार्क्स
उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात् संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु
सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा
दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक
दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित
होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया
1848
में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे
जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को
समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी
अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत
वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई।
अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश
जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया।
1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के
निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का
एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने
के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में
पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे
से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल,
हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित
किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स
की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स
के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का
मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी
मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और
राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं।
1864
में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ'
की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की
सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार
किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी
जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर
संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों
में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही।
'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने
पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ
आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी
समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत
हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं।
मेहनतकशों की तहरीक में एक नए तूफ़ान की पेशबीनी करते हुए मार्क्स
ने कोशिश की कि अपनी अर्थशास्त्रीय रचनाएँ करने की रफ़्तार तेज़ कर दे। अठारह माह
की ताख़ीर के बाद जब उस ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन का फिर से आग़ाज़ किया तो उस
ने इस रचना को अज नए सिरे से तर्तीब देने का फ़ैसला किया। और उस को 1859 में प्रकाशित जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन
एकानामी में हिस्से के रूप में ना छापा जाये,
बल्कि ये एक अलग किताब हो। 1862 में उस ने ईल
कजलमीन को मतला किया कि इस का नाम द कैपिटल और तहती नाम राजनीतिक अर्थव्यवस्था की
आलोचनाहोगा। द कैपिटल इंतिहाई मुश्किल हालात में लिखी
गई। अमरीकी ख़ानाजंगी की वजह से मार्क्स अपनी आमदनी का बड़ा ज़रीया खो चुका था। अब
वो न्यूयार्क के रोज़नामा द ट्रिब्यून के लिए नहीं लिख सकता था। उस के बाल बच्चों
के लिए इंतिहाई मुश्किलों का ज़माना फिर आ गया। ऐसी सूरत-ए-हाल में अगर एंगलज़ की
तरफ़ से मुतवातिर और बेग़रज़ माली इमदाद ना मिलती तो मार्क्स कैपिटल की तकमील ना
कर सकता। कैपिटल में कार्ल मार्क्स का प्रस्ताव है कि पूंजीवाद के प्रेरित बल श्रम,
जिसका काम अवैतनिक लाभ और अधिशेष मूल्य के परम स्रोत के शोषण करने
में है।