परचा लीक होने के बाद सीबीएसई को 10वीं और 12वीं के कुछ विषयों के पर्चो को दोबारा कराने का निर्णय लेना पड़ा। घोर धांधली और परचा लीक को लेकर एसएससी परीक्षार्थियों का विरोध प्रदर्शन पहले से ही जारी है। दोषी कौन है, कितना है-इस हो हंगामे के बीच परीक्षार्थी फिर से सफल-असफल होने की अधकचरी मनोदशा के साथ तैयारी में लग गए हैं। बड़ी संख्या में छात्रों को फिर से कोचिंग संस्थानों की ओर लौटना होगा। पूरे लीक प्रकरण में एक अहम बात; जिसपर ज्यादा ध्यान नहीं गया, वह है परचा लीक में कोचिंग संस्थानों की सहभागिता। इस पूरे लीक गैंग में कोचिंग संस्थान बेहद अहम कड़ी हैं। कह सकते हैं कि वो इस साजिश के केंद्रबिंदु हैं। सो, ‘‘सफलता की गारंटी’ देने वाले कोचिंग संस्थानों पर कड़ी निगरानी की जरूरत है। ज्यादा नंबर पाने और नौकरी के लिए परीक्षार्थियों के साथ-साथ अभिभावकों का एक तबका कीमत देने को तैयार है। कोचिंग संस्थान इसमें माध्यम बनते हैं। पूर्ण व्यवसाय बन चुकी कोचिंग संस्थान शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन कर उभरे हैं। आज ऐसे बच्चे दुर्लभ मिलेंगे, जो निजी स्कूल में हों और कोचिंग से दूर हों। अधिकतर मामलों में बच्चों को कोचिंग वही लोग देते हैं जो उन्हें स्कूलों में पढ़ाते हैं। कोचिंग संस्थान स्कूलों द्वारा दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं। कोचिंग का सीधा मतलब है छात्रों को स्कूल में या तो कायदे पढ़ाया नहीं जा रहा या उसकी मानसिकता कोचिंग सेंटर की तरफ ले जाई जा रही है। बचपन से शुरू होने वाली कोचिंग लेने की संस्कृति बड़े होकर नौकरी पाने की जद्दोजेहद तक चलती रहती है। नौकरी पाने में असफल लोगों का इस पेशे में जमावड़ा है। दिल्ली का मुखर्जी नगर हो या राजस्थान का कोटा। कोचिंग संस्थानों के लिए न तो कोई मानक हैं ना इसमें पढ़ाने वालों के लिए कोई विशेष अहर्ता। सरकार को इस संदर्भ में बेहतर नियामक बनने की दिशा में सोचना चाहिए। शिक्षाविदें की ओर से यह बात उठती है कि स्वस्थ परीक्षा पण्राली को कोचिंग प्रभावित करती है। छात्र/परीक्षार्थी का कोई पक्ष विशेष कमजोर हो तो कोचिंग की सहायता लेना तार्किक लगता है, लेकिन कोचिंग लेने की अपरिहार्य संस्कृति मानसिक रूप से बैसाखी से कम नहीं। क्या कोई कोचिंग संस्थान ‘‘सुपर 30’ की तरह अपने आचरण को पारदर्शी और ईमानदार नहीं बना सकता।