Saturday, March 14, 2020

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस


विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस . दुनिया भर में हर साल 15 मार्च का यह दिन उपभोक्ता के हक की आवाज़ उठाने और उन्हें अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए जागरुक बनाने के लिए मनाया जाता है. आज से 24 साल पहले 1983 में उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने की शुरूआत कंज्यूमर्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने की थी. इसके पीछे मकसद था कि दुनिया भर के सभी उपभोक्ता यह जानें कि बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए उनके क्या हक हैं. साथ ही सभी देशों की सरकारें उपभोक्ताओं के अधिकारों का ख्याल रखें.
भारत में 24 दिसम्बर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है. सन् 1986 में इसी दिन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक पारित हुआ था. इसके बाद इसअधिनियम में 1991 तथा 1993 में संशोधन किये गए. उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम को अधिकाधिक कार्यरत और प्रयोजनपूर्ण बनाने के लिए दिसम्‍बर 2002 में एक व्‍यापक संशोधन लाया गया और 15 मार्च 2003 से लागू किया गया.
परिणामस्‍वरूप उपभोक्‍ता संरक्षण नियम, 1987 में भी संशोधन किया गया और 5 मार्च 2004 को अधिसूचित किया गया था. भारत सरकार ने 24 दिसम्बर को राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता दिवस घोषित किया है, क्योंकि भारत के राष्‍ट्रपति ने उसी दिन ऐतिहासिक उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अधिनियम को स्वीकारा था. इसके अतिरिक्‍त 15 मार्च को प्रत्‍येक वर्ष विश्‍व उपभोक्‍ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. यह दिन भारतीय ग्राहक आन्दोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरो में लिखा गया है. भारत में यह दिवस पहली बार वर्ष 2000 में मनाया गया. और आगे भी प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है.
ग्राहक संरक्षण कानून से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य यह है की किसी भी शासकीय पक्ष में इस विधेयक को तैयार नहीं किया. अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने प्रथमत: इस विधेयक का मसौदा तैयार किया. 1979 में ग्राहक पंचायत के अर्न्तगत एक कानून समिति का गठन हुआ. ग्राहक संरक्षण कानून समिति के अध्यक्ष गोविन्ददास और सचिव सुरेश बहिराट थे. शंकरराव पाध्ये एड. गोविंदराव आठवले, सौ. स्वाति शहाणे इस समिति के सदस्य थे.
पूर्व में ग्राहक पंचायत द्वारा किये गए प्रयास ग्राहक पंचायत की स्थापना 1947 में हुई. उसी समय से एक बात ध्यान में आने लगी की प्रत्येक क्षेत्र में ग्राहक को ठगा जा रहा है. उसका नुकसान हो रहा है फिर भी उसके पास न्याय मांगने के लिए कोई कानून नहीं था. ग्राहक सहने करने के अलावा कुछ नही कर पा रहा था. सामान्य आर्थिक परिस्थितियों में ग्राहक व्यापारी के अधिक आर्थिक प्रभाव से शोषित होता रहा था. उसकी आवाज़ शासन तक नहीं पहुँचती थी. ग्राहक ने अन्याय के विरुद्ध प्रतिकार किया तो विक्रेता ग्राहक पर लूट मार का आरोप लगाने लगते थे.
इस परिस्थिति से उबरने के लिए ग्राहक पंचायत ने ग्राहक संरक्षण के लिए स्वतंत्र कानून की आवश्यकता प्रतिपादित की. 1977 में लोणावाला में ग्राहक पंचायत के कार्यकर्ताओं ने बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके ऐसे कानून की मांग की. 1978 में ग्राहक पंचायत ने एक मांग पत्र प्रकाशित किया. ग्राहक संरक्षण कानून, ग्राहक मंत्रालय और ग्राहक न्यालय में ये मांगे रखी. पंचायत ने स्वयं इस पर कानून का प्रारूप तैयार करके 1980 में कानून का मसौदा तैयार करना प्रारंभ किया. दिनांक 9 अप्रैल 1980 को कानून समिति की पहली बैठक में कानून का प्रारूप समिति के सामने रखा गया. समिति की चर्चा के बाद व्यवस्थित मौसोदा अनेक कानून विशेषज्ञों के पास भेजा गया. राज्य सरकार के पदस्थ सचिव एवं उच्च न्यालय के पदस्थ न्यायधीश से चर्चा की. देश के अनेक कानून विशेषज्ञों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित कर समिति को अमूल्य योगदान दिया. 1980 में महाराष्ट्र राज्य विधान परिषद् के सदस्य बाबुराव वैद्य ने विधेयक रखने का उत्तरदायित्व स्वीकारा. तब जाकर वर्तमान ग्राहक कानून अस्तित्त्व में आया था.
आज मनाये जा रहे विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस पर - 

जानें ध्यान रखने योग्य कुछ बातें
उपभोक्ताओं की परेशानियां:
- सेहत के लिए नुक़सानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर प़डता है, जैसे दूध से क्रीम निकाल कर बेचना|
- टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के ज़रिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना|
- वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना|
- बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना|
- दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना|
- क़ीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना|
- उत्पाद पर ग़लत या छुपी हुई दरें लिखना|
- वस्तुओं के वज़न और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना|
- थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना|
- अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का ग़लत तौर पर निर्धारण करना|
- एमआरपी से ज़्यादाक़ीमत पर बेचना|
- दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनाधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना|
- कमज़ोर उपभोक्ताएं सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो|
- बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना|
- उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना|
- गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना|
उपभोक्ताओं के अधिकार:
- जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के खिला़फ सुरक्षा का अधिकार|
- सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके|
- जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन|
- उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार|
- अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार|
- सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार|
- अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार|
माप-तोल के नियम:
- हर बाट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए|
- एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन ज़रूरी है|
- पत्थर, धातुओं आदि के टुक़डों का बाट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता|
- फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराज़ू हाथ में पक़ड कर तोलने की अनुमति नहीं है|
- तराज़ू एक हुक या छ़ड की सहायता से लटका होना चाहिए|
- लक़डी और गोल डंडी की तराज़ू का इस्तेमाल दंडनीय है|
- कप़डे मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए|
- तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए|
- मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वज़न शामिल नहीं किया जा सकता|
- पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तोल एवं क़ीमत कर सहित अंकित हो. साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए|
- पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए| (साभार:चौथी दुनिया)

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