सन 1857 में आज ही के दिन भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ पहला विद्रोह हुआ था. इसे सैनिक विद्रोह कहा गया क्योंकि इस दिन सिपाही मंगल पांडे ने बैरकपुर के परेड ग्राउंड में गोली चलाने से इनकार कर विद्रोह का बिगुल बजाया था.
कहानी 29 मार्च, 1857 की
साल 1857 के मार्च महीने की 29 तारीख थी. मंगल पांडेय 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के साथ बैरकपुर में तैनात थे. सिपाहियों में जबरन ईसाई बनाए जाने से लेकर कई तरह की अफवाहें फैल रही थीं.
इनमें से एक अफवाह ये भी थी कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक हिंदुस्तानी सैनिकों को मारने आ रहे हैं.
इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी क़िताब 'द ग्रेट फियर ऑफ 1857 - रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज़ एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइज़िंग' में 29 मार्च की घटना को सिलसिलेवार अंदाज़ में बयां किया है.
वैगनर लिखते हैं, "सिपाहियों के मन में बैठे डर को जानते हुए मेजर जनरल जेबी हिअरसी ने यूरोपीय सैनिकों के हिंदुस्तानी सिपाहियों पर हमला बोलने की बात को अफवाह करार दिया, लेकिन ये संभव है कि हिअरसी ने सिपाहियों तक पहुंच चुकी इन अफवाहों की पुष्टि करते हुए स्थिति को बिगाड़ दिया. मेजर जनरल के इस भाषण से आतंकित होने वाले सिपाही 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के मंगल पांडे भी थे."
खून से रंगी 29 मार्च की शाम
मंगल पांडेय 29 मार्च की शाम 4 बजे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे.
वैगनर लिखते हैं, "शाम के 4 बजे थे. मंगल पांडे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्हें यूरोपीय सैनिकों के बारे में पता चला. सिपाहियों के बीच बेचैनी और भांग के नशे से प्रभावित मंगल पांडेय को घबराहट ने जकड़ लिया. अपनी आधिकारिक जैकेट, टोपी और धोती पहने मंगल पांडेय अपनी तलवार और बंदूक लेकर क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े."
ब्रितानी इतिहासकार रोज़ी लिलवेलन जोन्स ने अपनी किताब "द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857 - 58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में मंगल पांडेय के दो ब्रितानी सैन्य अधिकारियों पर हमला बोलने की घटना को बयां किया है.
जोन्स लिखती हैं, "तलवार और अपनी बंदूक से लैस मंगल पांडेय ने क्वार्टर गार्ड (बिल्डिंग) के सामने घूमते हुए अपनी रेजिमेंट को भड़काना शुरू कर दिया. वह रेजिमेंट के सैनिकों को यूरोपीय सैनिकों द्वारा उनके खात्मे की बात कहकर भड़का रहे थे. सार्जेन्ट मेजर जेम्स ह्वीसन इस सबके बारे में जानने के लिए पैदल ही बाहर निकले. और, इस पूरी घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक पांडेय ने ह्वीसन पर गोली चलाई. लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी."
फ़िर लहराई मंगल पांडेय की तलवार
जोन्स लिखती हैं, "जब अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग को इस बारे में बताया गया तो वह अपने घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और पांडेय को अपनी बंदूक लोड करते हुए देखा. मंगल पांडेय ने फिर एक बार गोली चलाई और फिर एक बार निशाना चूक गया, बाग ने भी अपनी पिस्तौल से पांडेय पर निशाना साधा, लेकिन गोली निशाने पर नहीं लगी."
मंगल पांडेय के बाद एक और सिपाही ईश्वरी प्रसाद पांडेय को फांसी दी गई थी.
इतिहासकार किम ए वैगनर इस सिपाही के बारे में लिखते हैं, "जब सार्जेंट मेजर ह्वीसन ने ईश्वरी पांडेय से मंगल पांडेय को पकड़ने को कहा तो ईश्वरी प्रसाद ने जवाब दिया - "मैं क्या कर सकता हूं, मेरे नायक एडज्युएंट के पास गए हैं, हवलदार फील्ड ऑफिसर के पास गए हैं, क्या मैं अकेले ही उस पर काबू पाऊं?"
जोन्स इस संघर्ष के बारे में आगे लिखती हैं, "मंगल पांडेय ने अपनी तलवार से सार्जेंट मेजर और एडज्युटेंट पर हमला बोल दिया और दोनों को गंभीर रूप से घायल कर दिया. इस दौरान सिर्फ एक हिंदुस्तानी अधिकारी शेख पल्टू ने आकर ब्रितानी सैन्य अधिकारियों का बचाव करने की कोशिश की और पांडेय से वार नहीं करने को कहा, लेकिन पांडेय ने पल्टू पर भी वार किया."
जोन्स के मुताबिक पल्टू ने बताया, "इसके बाद मंगल पांडेय को मैंने कमर से पकड़ लिया."
जोन्स लिखती हैं, "लेकिन इसके बाद जब पल्टू ने जमादार ईश्वरी पांडेय को मंगल पांडेय को पकड़ने के लिए चार सैनिकों को भेजने को कहा तो ईश्वरी प्रसाद ने पल्टू को बंदूक दिखाते हुए कहा कि अगर मंगल पांडेय को भागने नहीं देंगे तो वह गोली चला देगा. पल्टू ने बताया, "घायल होने के कारण मैंने उसे जाने दिया".
फिर मंगल पांडेय ने चलाई अपनी आख़िरी गोली
जोन्स लिखती हैं, "इसके बाद मंगल पांडेय ने अपने साथियों को गालियां देते हुए कहा, "तुम लोगों ने मुझे भड़का दिया और अब तुम ********* मेरे साथ नहीं हो"
जोन्स आगे बताती हैं, "घुड़सवार और कई पैदल सैनिकों ने मंगल पांडेय की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और ये देखकर मंगल पांडेय ने बंदूक की नाल को अपने सीने में लगाया, पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबाया. गोली से उनकी जैकेट और कपड़े जलने लगे और वह घायल होकर जमीन पर गिर पड़े."
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