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भारत में कई राज्य हैं जो किसी विशेष दिन पर अपने राज्य का स्थापना दिवस दिवस
मनाते हैं जैसे राजस्थान स्थापना दिवस, मध्य प्रदेश स्थापना दिवस , बिहार स्थापना
दिवस आदि, इन्ही राज्यों
की तर्ज पर अब उ0प्र0 सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि इस साल-2018 से उ0प्र0 स्थापना दिवस
उत्साह के
साथ मनाया जायेगा. यह दिन विशेष इसलिए भी होता है कि उस राज्य के नागरिक वहां की
संस्कृति और परम्परा के बारे में विस्तार से जानने के अलावा आगामी योजनाओं को भी
इस दिन जानने का अवसर मिलता है.
आखिर 24 जनवरी
को ही क्यों उ0प्र0 स्थापना दिवस मनाया जायेगा-
उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस को प्रत्येक साल 24 जनवरी को मनाये जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि यह दिन एक विशेष दिन होगा, जो उ0प्र0 राज्य को समर्पित होगा. इसके साथ ही एक कारण यह भी है कि 24 जनवरी 1950 से पहले उत्तर प्रदेश को यूनाइटेड प्राविंश ( United Provinces or its
acronym UP ) के नाम से पहचाना जाता था, इस दिन ही उ0प्र0 को उसका नाम मिला था. यह वह दिन था जब उत्तर प्रदेश को अपना नाम मिला था.
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है।
इतिहास
उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब
आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और
उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु
नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र
को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत
आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में
फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं
पर स्थित है। वाराणसी के पास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता
है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और
कुषाण का हिस्सा बन गया। 7वीं
शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का
प्रमुख केन्द्र था।
बौद्ध काल
उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख
स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में
विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी फैजाबाद जिले में स्थित है)
में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर
आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु
के दसम अवतार का कलयुग में
अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के
शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण
रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित
मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर
चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|
सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से
भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद
श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से
सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे
सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में
परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक
उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो
वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य
में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चन्द्रगुप्त प्रथम (शासनकाल
लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त
द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य
प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे।
जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य
प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के कुछ
हिस्सों पर शासन किया।
इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के
स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त
काल (लगभग 320-550) के दौरान
हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में
हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का
धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में
जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में
प्रसिद्ध मन्दिर की
स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का
केन्द्र) मानते हैं।
मुस्लिम काल
इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं
शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद
ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य
प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों
तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन
रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम
लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास
नई शाही राजधानी फ़तेहपुर
सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी
बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव
के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के
महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी
वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के
भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे।
उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई
मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों
को नियुक्त किया था। भारत के विभिन्न मत और इस्लाम के मेल ने
कई नए मतों का विकास किया, जो भारत
की विभिन्न जातियों के बीच साधारण सहमति प्रस्थापित करना चाहते थे। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का
प्रतिपादन था कि, किसी
व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। सभी धर्मों के बीच अनिवार्य एकता की
शिक्षा देने वाले कबीर ने उत्तर प्रदेश में मौजूद धार्मिक असहिष्णुता के विरुद्ध
अपनी लड़ाई केन्द्रित की। 18वीं
शताब्दी में मुग़लों के पतन के साथ ही इस मिश्रित संस्कृति का केन्द्र दिल्ली से
लखनऊ चला गया, जो अवध के नवाब
के अन्तर्गत था और जहाँ साम्प्रदायिक सद्भाव के वातावरण में कला, साहित्य, संगीत और
काव्य का उत्कर्ष हुआ।
ब्रिटिश काल
लगभग 75 वर्ष की
अवधि में उत्तर प्रदेश के क्षेत्र का ईस्ट
इण्डिया कम्पनी (ब्रिटिश व्यापारिक कम्पनी) ने धीरे-धीरे अधिग्रहण किया। विभिन्न
उत्तर भारतीय वंशों 1775, 1798 और 1801 में नवाबों, 1803 में
सिंधिया और 1816 में गोरखों से छीने गए प्रदेशों
को पहले बंगाल प्रेज़िडेन्सी के अन्तर्गत रखा गया, लेकिन 1833 में इन्हें अलग करके पश्चिमोत्तर प्रान्त (आरम्भ में आगरा
प्रेज़िडेन्सी कहलाता था) गठित किया गया। 1856 ई. में
कम्पनी ने अवध पर अधिकार कर लिया और आगरा एवं अवध संयुक्त प्रान्त (वर्तमान
उत्तर प्रदेश की सीमा के समरूप) के नाम से इसे 1877 ई. में
पश्चिमोत्तर प्रान्त में मिला लिया गया। 1902 ई. में
इसका नाम बदलकर संयुक्त प्रान्त कर दिया गया।
1857-1859 ई. के
बीच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के
विरुद्ध हुआ विद्रोह मुख्यत: पश्चिमोत्तर प्रान्त तक सीमित था। 10 मई 1857 ई. को मेरठ में
सैनिकों के बीच भड़का विद्रोह कुछ ही महीनों में 25 से भी
अधिक शहरों में फैल गया। 18 57 के प्रथम
स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी
लक्ष्मीबाई की
भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और
ब्रिटिश सेना के छक्के छुड़ा दिए। 1858 ई. में
विद्रोह के दमन के बाद पश्चिमोत्तर और शेष ब्रिटिश भारत का प्रशासन ईस्ट इण्डिया
कम्पनी से ब्रिटिश ताज को हस्तान्तरित कर दिया गया। 1880 ई. के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ संयुक्त
प्रान्त स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी रहा। प्रदेश ने भारत को मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन
मालवीय, जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे
महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी राजनीतिक नेता दिए। 1922 में भारत
में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए किया गया महात्मा गांधी का
असहयोग आन्दोलन पूरे संयुक्त प्रान्त में फैल गया, लेकिन चौरी चौरा गाँव
(प्रान्त के पूर्वी भाग में) में हुई हिंसा के कारण महात्मा गांधी ने अस्थायी तौर
पर आन्दोलन को रोक दिया। संयुक्त प्रान्त मुस्लिम
लीग की राजनीति का भी केन्द्र रहा। ब्रिटिश काल के दौरान रेलवे, नहर और
प्रान्त के भीतर ही संचार के साधनों का व्यापक विकास हुआ। अंग्रेज़ों ने यहाँ
आधुनिक शिक्षा को भी बढ़ावा दिया और यहाँ पर लखनऊ
विश्वविद्यालय (1921 में
स्थापित) जैसे विश्वविद्यालय व कई महाविद्यालय स्थापित किए।
प्रथम
स्वतन्त्रता संग्राम
सन 1857 में
अंग्रेजी फौज के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह एक साल तक चला
और अधिकतर उत्तर भारत में फ़ैल गया। इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा
गया। इस विद्रोह का प्रारम्भ मेरठ शहर में हुआ। इस का कारण अंग्रेज़ों द्वारा गाय
और सुअर की चर्बी से युक्त कारतूस देना बताया गया। इस संग्राम का एक प्रमुख कारण डलहौजी की राज्य
हड़पने की नीति भी थी। यह लड़ाई मुख्यतः दिल्ली,लखनऊ,कानपुर,झाँसी और बरेली में लड़ी
गयी। इस लड़ाई में झाँसी की रानी
लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हज़रत महल, बख्त खान, नाना साहेब, मौल्वी
अहमदुल्ला शाह्, राजा बेनी माधव सिंह्, अजीमुल्लाह खान और अनेक देशभक्तों ने भाग लिया।
बीसवीं सदी
सन 1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम
बदल कर यूनाइटेड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में
इसे यूपी कहा गया। सन् 1920 में
प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना
रहा और लखनऊ में उच्च
न्यायालय की एक न्यायपीठ स्थापित की गयी।
स्वतंत्रता पश्चात
का काल
1947 में
संयुक्त प्रान्त नव स्वतंत्र भारतीय गणराज्य की एक प्रशासनिक इकाई बना। दो साल बाद
इसकी सीमा के अन्तर्गत स्थित, टिहरी
गढ़वाल और रामपुर के स्वायत्त राज्यों को संयुक्त प्रान्त में शामिल कर लिया गया। 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ ही 24 जनवरी सन 1950 को इस
संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और यह भारतीय संघ का राज्य बना।
स्वतंत्रता के बाद से भारत में इस राज्य की प्रमुख भूमिका रही है। इसने देश को
जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी सहित कई प्रधानमंत्री, सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक आचार्य नरेन्द्र देव, जैसे प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी (अल्पसंख्यक) दलों के नेता और
भारतीय जनसंघ, बाद में भारतीय जनता पार्टी व
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता दिए हैं। राज्य की राजनीति, हालाँकि विभाजनकारी रही है और कम ही मुख्यमंत्रियों ने पाँच
वर्ष की अवधि पूरी की है। गोविंद
वल्लभ पंत इस
प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर 1963 में सुचेता
कृपलानी उत्तर प्रदेश एवम भारत की प्रथम महिला मुख्य मन्त्री बनीं।
सन 2000 में पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल को मिला कर एक नये राज्य उत्तरांचल का गठन किया गया जिसका नाम बाद में बदल कर 2007 में उत्तराखण्ड कर दिया गया है।
सन 2000 में पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल को मिला कर एक नये राज्य उत्तरांचल का गठन किया गया जिसका नाम बाद में बदल कर 2007 में उत्तराखण्ड कर दिया गया है।
राज्य का विभाजन
उत्तर प्रदेश के गठन के तुरन्त बाद उत्तराखण्ड क्षेत्र
(गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र द्वारा निर्मित) में समस्याएँ उठ खड़ी हुईं। इस
क्षेत्र के लोगों को लगा कि, विशाल
जनसंख्या और वृहद भौगोलिक विस्तार के कारण लखनऊ में बैठी सरकार के लिए उनके हितों की देखरेख करना सम्भव नहीं
है। बेरोज़गारी, गरीबी और सामान्य व्यवस्था व
पीने के पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी और क्षेत्र के अपेक्षाकृत कम विकास ने
लोगों को एक अलग राज्य की माँग करने पर विवश कर दिया। शुरू-शुरू में विरोध कमज़ोर
था, लेकिन 1990 के दशक
में इसने ज़ोर पकड़ा व आन्दोलन तब और भी उग्र हो गया, जब 2 अक्टूबर 1994 को मुज़फ़्फ़रनगर में इस आन्दोलन के एक प्रदर्शन में पुलिस द्वारा की गई
गोलीबारी में 40 लोग मारे गए। अन्तत: नवम्बर, 2000 में उत्तर प्रदेश के पश्चिमोत्तर हिस्से से उत्तरांचल के नए
राज्य का, जिसमें कुमाऊँ और गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र शामिल थे, गठन किया गया।