अनुग्रह नारायण सिंह
18 जून ,1887 - 5 जुलाई, 1957
अनुग्रह नारायण सिंह एक भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक तथा राजनीतिज्ञ रहे हैं।उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के साथ चंपारण सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। वे आधुनिक
बिहार के निर्माताओं में से एक थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें बिहार विभूति के रूप में जाना जाता था। उनका सौभ्य, स्निग्ध,
शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन
और दर्पोदीप्त शख़्सियत बिहार के जन गण मन पर अधिकार किए हुए था।वे देश के
स्वाधीनता-संग्राम के महान नायकों में एक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पद चिह्नों पर चलने वाले उनके प्रिय
अनुयायी थे।
बिहार के विकास में डा अनुग्रह नारायण
सिन्हा का योगदान अतुलनीय है। बिहार के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करना का काम
अनुग्रह बाबू ने किया था। प्रभावशाली पद पर होने के बावजूद उन्होंने अपना पूरा
जीवन सादगी से बिताया। बिहार के लिए उन्होंने बहुत से ऐसे काम किये थे, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उनके कार्यकाल में बिहार में उद्योग -धंधे का जाल बिछा। अनुग्रह
बाबू ने 13 वर्षो तक बिहार की अनवरत सेवा की।
डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का जन्म
औरंगाबाद जिले के पोईअवा नामक गांव में 18 जून 1887 को हुआ। उनके पिता ठाकुर
विशेश्वर दयाल सिंह जी अपने इलाके के एक वीर पुरुष थे। पांच बसंत जब वे पार कर गये
तो उनकी शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। सन् 1900 में औरंगाबाद मिडिल स्कूल,1904 में गया जिला स्कूल और १९०८ में पटना कॉलेज में प्रविष्ट हुए। जिस
समय ये पटना कॉलेज में आये उस समय देश के शिक्षित व्यक्तियों के हृदय में
परतंत्रता की वेदना का अनुभव होने लगा था। गुलामी की जंजीर में जक़डी हुई मानवता
का चित्कार अब उन्हें सुनायी प़डने लगा था। वे उस जंजीर को त़ोड फेंकने के लिए
व्याकुल होने लगे थे। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा योगिराज अरविंद ऐसे महान आत्माओं का
प्रादुर्भाव हो चुका था। इन महान आत्माआ के कार्य कलापों तथा व्याख्यानों का
समुचित प्रभाव अनुग्रह बाबू के हृदय पर प़डा। उनका हृदय भी भारतमाता की सेवा के
लिए त़डप उठा और वे उस पावन मार्ग पर अग्रसर हो गये। सर्फूद्दीन के नेतृत्व में ‘बिहारी छात्र
सम्मेलन’ नामक संस्था संगठित की गई, जिसमें देशरत्न राजेन्द्र बाबू और अनुग्रह बाबू, ऐसे
मेधावी छात्रों को कार्य करने तथा नेतृत्व करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध चम्पारण से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।
बिहार-विभूति का भारत की आजादी में सहभागिता रही थी। उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभायी थे। अनुग्रह बाबू आधुनिक बिहार के निर्माता थे। वे देश के उन गिने-चुने
सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से थे जिन्होंने अपने छात्र जीवन से लेकर अंतिम
दिनों तक राष्ट्र और समाज की सेवा की। उन्होंने आधुनिक बिहार के निर्माण के लिए जो
कार्य किया, उसके कारण लोग उन्हें प्यार से बिहार विभूति के नाम से पुकारते हैं।
उन्हें वकालत करते हुए अभी एक वर्ष भी नहीं बीता था कि
चम्पारण में नील आंदोलन उठ ख़डा हुआ। इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी।
चम्पारण के किसानों की तबाही का समाचार जब महात्मा गांधी से सुने तो वे करुणा से विचलित हो उठे। मुजफ्फरपुर के कमिश्नर की राय के
विरुद्ध गांधीजी चम्पारण गये और जांच कार्य प्रारंभ कर दिया। अत्याचारों की जांच
प्रारंभ हुई। इसमें कुछ ऐसे वकीलों की आवश्यकता थी, जो
निर्भीकता पूर्वक कार्य कर सकें और समय आने पर जेल जाने के लिए भी तैयार रहें। इस
विकट कार्य के लिए वृज किशोर बाबू के प्रोत्साहन पर राजेन्द्र बाबू के साथ ही
अनुग्रह बाबू भी तत्पर हो गये। उन्होंने इसकी तनिक भी चिंता नहीं की कि उनका पेशा
नया है और उन्हें भारी क्षति उठानी प़ड सकती है। एक बार जो त्याग के मार्ग पर आगे
ब़ढ चुका है, उसे भला इन तुच्छ चीजों का क्या भय हो सकता है।
चम्पारण का किसान आंदोलन ४५ महीनों तक जोरशोर से चलता रहा। अनुग्रह बाबू बराबर
उसमें काम करते रहे और आखिर तक डटे रहे। स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का पाठ उन्हें
गांधीजी के आश्रम में ही रहकर प़ढने का सुअवसर प्राप्त हुआ। अनुग्रह बाबू ने
चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और
आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार 1917 में पटना आये। बापू के साथ रहने से
उन्हें जो आत्मिक बल प्राप्त हुआ, वही इनके जीवन का संबल
बना। सन् 1920 के दिसंबर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ,
जिसमें अनुग्रह बाबू ने भी भाग लिया। सन् 1929 के दिसंबर में सरदार
पटेल ने किसान संगठन के सिलसिले में मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया, तब अनुग्रह बाबू सभी जगह उनके साथ थे। 26 जनवरी 1930 को सारे देश में स्वतंत्रता
की घोषणा प़ढी गई। अनुग्रह बाबू को भी कई स्थानों में घोषण पत्र प़ढना प़ढा।
"मेरा परिचय अनुग्रह बाबू से बिहारी
छात्र सम्मेलन में ही पहले पहल हुआ था। मैं उनकी संगठन शक्ति और हाथ में आए हुए
काम में उत्साह देखकर मुग्ध हो गया और वह भावना समय बीतने से कम न होकर अधिक गहरी
होती गई।" देशरत्न डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद
कुछ दिनों के बाद महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर
दिया। उस सिलसिले में उन्हें चम्पारण, मुजफ्फरपुर आदि स्थानों का दौरा करना
प़डा। २६ जनवरी 1933 को जब पटना में घोषणा प़ढ रहे थे, उसी
समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पंद्रह मास की सजा हुई और उन्हें
हजारीबाग जेल भेज दिया गया। जिस समय वे जेल में थे, बिहार
में इतिहास विख्यात प्रलयंकारी भूकंप आया। हृदय विदारक समाचारों को प़ढकर उनका
हृदय दर्द से कराह उठा। चहारदीवारी के अंदर बंद रहने के कारण ये कोई राहत कार्य
नहीं कर सकते थे। लेकिन सरकार ने तीन हफ्तों के बाद इन्हें छ़ोड दिया। छूटते ही
अनुग्रह बाबू राहत कार्य में संलग्न हो गये। राजेन्द्र बाबू के साथ कंधे से कंधा
मिलाकर इन्होंने अथक परिश्रम के साथ पी़डत मानवता की सेवा की। मुजफ्फरपुर, मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया। इसके लिये राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता
में एक कमेटी बनी, जिसके उपाध्यक्ष अनुग्रह बाबू ही चुने गये
तथा खूब लगन के साथ सेवा कार्य किया। सन् 1940 को मार्च महीने में अखिल भारतीय
कांग्रेस का अधिवेशन रामग़ढ में हुआ। अधिवेशन का संपूर्ण भार अनुग्रह बाबू के कंधे
पर था। उसमें जो अपनी तत्परता दिखलाई उसके फलस्वरूप ही कांग्रेस का अधिवेशन सफल
हुआ। देश की परिस्थिति को देखते हुए जब गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह अपनाया तब
उनके प्रिय सहयोगी अनुग्रह बाबू कब चूकने वाले थे। फलस्वरूप 1940 को वह गिरफ्तार कर
लिये गये और अगस्त 1941 में रिहा हुए। गांधीजी का ‘करो या
मरो’ का नारा बुलंद हुआ। 7 अगस्त 1942 को गांधीजी गिरफ्तार
किये गये। सारे देश में एक बार ही बिजली की तरह आंदोलन की आग फैल गई। कांग्रेस
कमिटियां जब्त कर ली गई और कांग्रेस नेता जहां के तहां गिरफ्तार कर लिये गये। 10 अगस्त को अनुग्रह बाबू भी जब अपने मित्रों से मिलने गये, एकाएक
मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये गये। सन् 1944 में जब सारे कांग्रेसी नेता जेल से
मुक्त किये जाने लगे, तो अनुग्रह बाबू भी कारावास की कैद से
आजाद कर दिये गये।
1937 में ही बाबू साहब
बिहार प्रान्त के वित्त मंत्री बने। अनुग्रह बाबू बिहार विधानसभा में 1937 से लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता थे। 1946 में जब
दूसरा मंत्रिमंडल बना तब वित्त और श्रम दोनों विभागों के पहले मंत्री बने और
उन्होंने अपने मंत्रित्व काल में विशेषकर श्रम विभाग में अपनी न्याय प्रियता
लोकतांत्रिक विचारधारा एवं श्रमिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का जो परिचय दिया
वह सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय है। श्रम मंत्री के रूप में अनुग्रह बाबू ने ‘बिहार केन्द्रीय श्रम परामर्श समिति’ के माध्यम से
श्रम प्रशासन तथा श्रमिक समस्याओं के समाधान के लिए जो नियम एवं प्रावधान बनाये वे
आज पूरे देश के लिये मापदंड के रूप में काम करते हैं। तृतीय मंत्रिमंडल में उन्हें
खाद, बीज, मिट्टी, मवेशी में सुधार लाने के लिए शोध कार्य करवाए और पहली बार जापानी ढंग से
धान उपजाने की पद्धति का प्रचार कराया। पूसा का कृषि अनुसंधान फार्म उनकी ही देन
है। इस तेजस्वी महापुरुष का निधन 5 जुलाई 1957 को उनके निवास स्थान पटना में बीमारी के कारण हुआ। उनके सम्मान में
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया, उनके
अन्तिम संस्कार में विशाल जनसमूह उपस्थित था। अनुग्रह बाबू 2
जनवरी 1946 से अपनी मृत्यु तक बिहार के उप मुख्यमंत्री सह
वित्त मंत्री रहे। अनुग्रह बाबू बिहार विधानसभा में 1937 से
लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता थे। प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह एवं उनकी जोड़ी मिसाल मानी जाती है।