सुचेता कृपलानी
जन्म- 25 जून, 1908
मृत्यु- 1 दिसंबर, 1974
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी,राजनीतिज्ञ एवं उत्तर प्रदेश की चौथी और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थीं
सुचेता कृपलानी अथवा 'सुचेता मज़ूमदार' का जन्म 25 जून, 1908 को भारत के हरियाणा राज्य के अम्बाला शहर में हुआ। उनकी शिक्षा लाहौरऔर दिल्ली में हुई थी। 1963 से 1967 तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। वे बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद क़रीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने बापू के क़रीब रहकर देश की आज़ादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख़ में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे। आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सज़ा हुई। 1946 में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं। 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थीं।
भारत छोड़ो आंदोलन में सुचेता कृपलानी ने लड़कियों को ड्रिल और लाठी चलाना सिखाया। नोआखली के दंगा पीड़ित इलाकों में गांधी जी के साथ चलते हुए पीड़ित महिलाओं की मदद की। 15 अगस्त, 1947 को संविधान सभा में वन्देमातरम् गाया। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया। वे पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं। उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था। एक शख्सीयत कई रूप- आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलें। भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया। ‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा।’ वह भूमिगत हो गईं। उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया। इसके लिए अंडरग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई। लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं। दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की कोशिश हमेशा रहती।
जीवतराम भगवानदास कृपलानी और सुचेता मजूमदार की पहली मुलाकात कहाँ हुई ये कहना मुश्किल है लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय कहीं न कहीं उनके प्यार की धुरी बना था। बाद में महात्मा गांधी के साथ काम करते हुए दोनों नजदीक आते गए, लेकिन गांधीजी यह जानकर हैरान रह गए कि उन्हीं के आश्रम में उन दोनों का प्यार फला-फूला। दोनों कांग्रेस के दिग्गज नेता थे लेकिन आने वाले सालों में उनकी भूमिका ऐसी बदली कि वो विरोधी कैंपों में शामिल हो गए। कृपलानी सिंध के हैदराबाद में पैदा हुए थे। असाधारण तौर पर पढ़ने में बेहद कुशाग्र और कुछ तरह से सोचने वाले शख्स थे। ऐसे शख्स भी जो अपने आप में रहना ज्यादा पसंद करते थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वो बहुत आसानी के साथ अपने प्रिय लोगों से खुद को अलग कर लेते थे। कृपलानी को जो भी जानते हैं वो मानते थे वो बेहद अनुशासित और आदर्शों के पक्के शख्स थे। स्त्रियों से खुद को हमेशा दूर रखने वाले थे। ये माना जाने लगा था कि विवाह उनकी डिक्शनरी में नहीं है। कृपलानी आज़ादी से पहले लंबे समय तक कांग्रेस के महासचिव रहे और 1947 जब देश आज़ाद हो रहा था तब वह इस पार्टी के अध्यक्ष थे। हालांकि आज़ादी के बाद स्थितियां ऐसी बनीं कि कांग्रेस विरोध और विपक्ष की राजनीति करने लगे। आजीवन ऐसा करते रहे। वहीं सुचेता बाद में कांग्रेस में मंत्री भी बनीं और मुख्यमंत्री भी।
कृपलानी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर बनकर आए, हालांकि वह यहां एक ही साल रहे, लेकिन वो एक साल ही उस विश्वविद्यालय पर उनका प्रभाव छोड़ने के लिए काफी था। इसके बाद उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के लिए नौकरी छोड़ दी। इसके कुछ साल बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में सुचेता मजुमदार प्रोफेसर बनकर आईं। उनके कानों में अक्सर आचार्य कृपलानी की बातें सुनाई पड़ती थीं। खासकर उनके जीनियस टीचर होने की और फिर उनके गांधीजी के खास सहयोगी बन जाने की। उन्हीं दिनों कृपलानी जब कभी बनारस आते तो बीएचयू के इतिहास विभाग जरूर जाते। उसी दौरान उनकी मुलाकात सुचेता से हुई, जिनमें एक प्रखरता भी थी और आज़ादी आंदोलन से जुड़ने की तीव्रता भी। कहा जा सकता है कि कृपलानी कहीं न कहीं इस बंगाली युवती से प्रभावित हो गए थे। दोनों में काफी बातें होने लगीं। जब कुछ मुलाकातों के बाद सुचेता ने उनसे गांधीजी से जुड़ने की इच्छा जाहिर की तो कृपलानी इसमें सहायक भी बने। हालांकि वह उन्हें राजनीति में आने से लगातार हतोत्साहित भी करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि महिलाओं को राजनीति में दामन साफ बचाकर रखना मुश्किल होता था। इसलिए वह उनसे लगातार कहते भी थे अपना दामन साफ रखना। आचार्य कृपलानी उनके मार्गदर्शक और विश्वस्त बन गए। समय के साथ जब दोनों का काफी समय एक दूसरे के साथ बीतने लगा तो वो करीब आने लगे, हालांकि किसी को भी अंदाज़ा नहीं था कि कृपलानी जैसे शख्स के जीवन में भी प्रेम दस्तक दे सकता है और दबे पांव उनके मन के घर पर कब्जा कर सकता है। कृपलानी लंबे कद के सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी थे तो सुचेता साधारण कद काठी वाली थीं, लेकिन कुछ तो था उनके व्यक्तित्व में जिसने कृपलानी जैसी शख्सियत को उनके प्यार में बांध लिया था। दोनों जब एक दूसरे के प्यार में पड़े तो उन्हें कभी उम्र का लंबा फासला अपने बीच महसूस नहीं हुआ, हां लेकिन जब उन्होंने आपस में शादी करने की इच्छा अपने परिवारों के सामने जाहिर की तो तूफान आ गया। अपने घरों में उन्हें गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ा।
सुचेता ने अपनी किताब 'सुचेता एन अनफिनिश्ड ऑटोबॉयोग्राफी' में लिखा, गांधीजी ने उनके विवाह का विरोध किया था, उन्हें लगता था कि पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें आज़ादी की लड़ाई से विमुख कर देंगी। गांधी ने कृपलानी से कहा, अगर तुम उससे शादी करोगे तो मेरा दायां हाथ तोड़ दोगे। तब सुचेता ने उनसे कहा, वह ऐसा क्यों सोचते हैं बल्कि उन्हें तो ये सोचना चाहिए कि उन्हें आज़ादी की लड़ाई में एक की बजाए दो कार्यकर्ता मिल जाएंगे। कृपलानी इस बात से नाखुश तो बहुत थे कि गांधी उनके व्यक्तिगत मामलों में दखल दे रहे हैं लेकिन इसके बाद भी उन्होंने उनकी बात करीब-करीब मान ही ली, सुचेता भी इस पर सहमत हो गईं। लेकिन इसके बाद गांधीजी ने जो कुछ किया, उसने उनके आपस मे शादी करने के विचार को मजबूत कर दिया। सुचेता अपनी बॉयोग्राफी में लिखती हैं, गांधी चाहते थे कि वह किसी और से शादी कर लें। उन्होंने इसके लिए दबाव भी डाला। मैने इसे एकसिरे से खारिज कर दिया। मैने उनसे कहा, जो प्रस्ताव वह दे रहे हैं वो अन्यायपूर्ण भी है और अनैतिक भी। सुचेता जो खुशवंत सिंह के कहने पर इलैस्ट्रेटेड वीकली मैगजीन में अपनी आत्मकथा लिखने पर राजी हो गईं थीं। बाद में यही उनकी आत्मकथा के रूप में अहमदाबाद के नवजीवन पब्लिशिंग हाउस ने वर्ष 1978 में प्रकाशित की। इसमें उन्होंने लिखा, जब गांधी ने मेरे सामने ऐसा प्रस्ताव रखा तो मैं उनकी ओर पलटी, उनसे कहा कि जो वो कह रहे हैं वह ग़लत है। गांधी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। हमारी बात वहीं खत्म हो गई। जवाहरलाल नेहरू की सहानुभूति हमारे साथ थी। उन्होंने गांधी से हमारी शादी के बारे में बात की।
1936 में गांधी ने सुचेता और आचार्य कृपलानी को बुलावा भेजा। गांधी ने उनसे कहा कि उन्हें उनकी शादी से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन वह उन्हें आर्शीवाद नहीं दे सकेंगे। गांधी ने कहा कि वह उनके लिए प्रार्थना करेंगे। सुचेता ने अपनी किताब में लिखा, हम उनकी प्रार्थना भर से संतुष्ट थे। अप्रैल 1936 में सुचेता और आचार्य कृपलानी ने शादी कर ली। उस समय कृपलानी 48 साल के थे तो सुचेता मात्र 28 साल की थीं।
बाद में हालात ने ऐसी करवट ली कि दोनों विरोधी दलों में शामिल हो गए। रहते दोनों साथ थे लेकिन एक कांग्रेस में रहा तो दूसरा आजीवन कांग्रेस विरोध की राजनीति करता रहा। आचार्य कृपलानी अक्सर मजाक में कहा करते थे कि कांग्रेसी इतने बदमाश हैं कि वो मेरी पत्नी ही भगा ले गए। बेशक दोनों पति-पत्नी थे लेकिन उनमें दोस्ती का भाव ज्यादा था। सुचेता आज़ादी के आंदोलन में शामिल उन तीन बांग्ला महिलाओं में थीं, जो उच्च शिक्षित थीं और जिन्होंने पूरे जोर-शोर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और तीनों ने अपना कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश को बनाया। तीनों ने धर्म जाति की परवाह नहीं करते हुए अपने जीवनसाथी चुने। आज़ादी के बाद बदले हालात में आचार्य कृपलानी ने जहां कांग्रेस से अलग होकर पहले अपनी किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और फिर राम मनोहर लोहिया के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। सुचेता ने 1950 में दिल्ली से लोकसभा चुनाव किसान मजदूर पार्टी से लड़ा। चुनाव जीता, लेकिन इसके बाद वह कांग्रेस में चली गईं और बाद उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं। 1971 में जब तक वह राजनीति में सक्रिय रहीं तब तक कांग्रेस में शामिल रहीं। वर्ष 1971 में राजनीति से रिटायर होने के बाद वह आचार्य कृपलानी के साथ दिल्ली के अपने बंगले में रहने लगीं। एक पत्नी के नाते उन्होंने अपने पति का पूरा ख्याल रखा।
राजनीतिक सफ़र
- 1939 में नौकरी छोड़कर राजनीति में आईं।
- 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह किया और गिरफ्तार।
- 1941-1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महिला विभाग और विदेश विभाग की मंत्री।
- 1942 से 1944 तक निरन्तर निरन्तर सफल भूमिगत आंदोलन चलाया फिर 1944 में गिरफ्तार किया गया।
- 1946 में केन्द्रीय विधानसभा की सदस्य।
- 1946 में संविधान सभा की सदस्य और फिर इसकी प्रारूप समिति की सदस्य बनीं।
- 1948-1951 तक कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य।
- 1948 में पहली बार विधानसभा के लिए चुनी गईं।
- 1950 से लेकर 1952 तक प्रॉविजनल लोकसभा की सदस्य रहीं।
- 1949 में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की सदस्य के रूप में गईं।
- 1952 और 1957 में नई दिल्ली से लोकसभा के लिए निर्वाचित। इस दौरान लघु उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री रहीं।
- 1962-1967 तक मेंहदावल से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित।
- 2 अक्तूबर, 1963 से 13 मार्च, 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री।
- 1967 में गोण्डा से लोकसभा के लिए चुनी गईं।
स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। 1 दिसंबर, 1974 को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि "सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।"