Monday, June 26, 2017
कानपुर की बेटी ने सरकारी स्कूल की पढ़ाई के बूते अमेरिका में खड़ा किया कारोबारी साम्राज्य
शिवाला की तंग गली के एक छोटे से घर में तीन भाई-बहनों का
परिवार। पिता के सामने घर चलाने की चुनौती। सबसे छोटी बेटी को पढ़ाने से इनकार
लेकिन जिद देख पांचवी क्लास में कराया दाखिला। मां-बाप की इच्छा विरुद्ध मनीराम
बगिया के सरकारी स्कूल में उस बच्ची ने बड़ी मुश्किल से एडमिशन लिया और फिर पीछे
मुड़कर नहीं देखा। सरकारी प्राथमिक विद्यालय से निकली उस बेटी का आज अमेरिका में
डंका बज रहा है। अपने दम पर कंपनी स्थापित करने के साथ ही सामाजिक कामकाज में
योगदान कर अमेरिकी मीडिया की सुर्खियों में बनी रहने वाली इस महिला का नाम है पूनम
कृष्ण गुप्ता।
रविवार को गैंजेज क्लब में भारतीय महिला उद्यमी परिषद ने आइका
इंटरप्राइजेज यूएसए की संस्थापक और सीईओ पूनम कृष्ण गुप्ता को सम्मानित किया।
अध्यक्ष पदमा शुक्ला और डॉ. अवध दुबे ने उनका परिचय कराया। महिला उद्यमियों के
सामने अपने बच्चों के साथ आईं पूनम ने खुलकर अपने अनुभव साझा किए। तीन दर्जन से
ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित पूनम ने शहर की महिला उद्यमियों को
सफलता के टिप्स दिए। कार्यक्रम में शशि ठाकुर, भक्ति विजय शुक्ला, हिमानी शुक्ला, जया राजपूत, लता सिंह, आम्रपाली, स्वर्णकांता, सीमा शुक्ला
आदि मौजूद थीं।
कामयाबी के टिप्स
अगर कोई इंसान किसी काम को कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर
सकते। असफलता से निराश न हों।
खुद को अपडेट करते रहें। अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य और
जरूरतों पर जरूर खर्च करें। ये भी निवेश ही है।
फाइनेंशियल प्लानिंग को गंभीरता से लें। बिजनेस को बिजनेस की
तरह करें। शौक की तरह नहीं।
खुद को सम्मान देना सीखें। साथ ही परिवार की भावनाओं को
समझें। परिवार के साथ एडजस्ट करेंगे, तभी खुशहाली रहेगी
गुस्सा आने या असहमत होने पर तत्काल बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया
देना अच्छी बात नहीं हैं। इस आदत पर काबू रखें
अमेरिका तक का सफर
देर से पढ़ाई शुरु करने की वजह से पूनम जल्द से जल्द ज्यादा से
ज्यादा पढ़ना चाहती थीं। आठवी कक्षा तक आते-आते उनकी काबिलियत का अंदाजा मां-बाप
को हो गया। वे उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे लेकिन मेडिकल प्रवेश परीक्षा में उनकी
अच्छी रैंक नहीं आई। आईआईटी की लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने के दौरान उन्होंने
अमेरिकी यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए परीक्षा दी और उनका चयन हो गया। यहीं से
किस्मत से पलटी खाई। वहां इलियोनॉस यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री ली। वर्ष 2000 में उन्होंने
आइका इंडस्ट्रीज के नाम से सॉफ्टवेयर कंपनी की नींव डाली। वाशिंगटन डीसी से शुरू
बिजनेस में वे फाइनेंस, हेल्थकेयर और सरकारी कंपनियों को सेवाएं देती हैं। आज उनका
कारोबार तीन महाद्वीपों में फैला है।
ठगी का खेल खुला तो फर्जी बोर्ड गुल : वेबसाइट पर प्रचार प्रसार कर विद्यार्थियों को फंसाने वाले की नहीं खुल रही साइट, कार्रवाई की तैयारी
लखनऊ:
विद्यार्थियों को आसानी से पास करवाकर करियर संवारने का झांसा देकर धन उगाही करने
वाले फर्जी बोर्ड की वेबसाइट नहीं खुल रही है। जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआइओएस)
कार्यालय में शिकायत लेकर विद्यार्थियों के पहुंचने के बाद कहीं धरपकड़ न शुरू हो
जाए इसे लेकर आशंकित फर्जी बोर्ड चलाने वाले गायब हो गए हैं। अभी तक राजकीय मुक्त
विद्यालयी शिक्षा संस्थान खुद को अपनी वेबसाइट पर मान्य होने का दावा कर हजारों
स्टूडेंट्स को फर्जी मार्कशीटें बांट चुका है, मगर फर्जीवाड़ा उजागर हुआ तो
रविवार को उसकी वेबसाइट अचानक बंद हो गई। वेबसाइट पर क्लिक करने के बाद वेबसाइट
नॉट फाउंड लिखकर आ रहा है। इस बोर्ड को हुसैनगंज के पास फूलबाग और विकास नगर से
चलाया जा रहा है। फिलहाल इस फर्जी बोर्ड का जाल राजधानी के अलावा प्रदेश भर में
फैले होने की आशंका जताई जा रही है।
राजधानी में इस तरह फर्जीवाड़ा होने का खुलासा एक छात्र द्वारा मार्कशीट के सत्यापन को लेकर हुआ। राजकीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान उप्र लखनऊ द्वारा जारी की गई हाईस्कूल-2016 की मार्कशीट सत्यापन लेकर एक छात्र डीआईओएस कार्यालय पहुंची, जब इसकी जांच की गई तो यह मामला फर्जी निकला। मार्कशीट में सरकारी गजट व लोगो इस तरह लगाया गया है कि इसे देखकर कोई भी आसानी से गुमराह हो सकता है। मार्कशीट पर भी वेबसाइट का जिक्र है। इसके फेर में फंसकर बड़ी संख्या में विद्यार्थी ठगी का शिकार हुए हैं।
इधर जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआइओएस) मुकेश कुमार सिंह का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है और विद्यार्थियों से ठगी कर उनका करियर दांव पर लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।ओपन एवं दूरस्थ शिक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ ओपेन स्कूलिंग (एनआईओएस) अधिकृत संस्था है। इस संस्था की ओर से वेबसाइट पर 47 फर्जी बोर्ड की सूची जारी की गई है। इनमें राजधानी में भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ, बोर्ड ऑफ सेकेंडरी संस्कृत एजूकेशन, बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन दिल्ली तो शहर के दुबग्गा इलाके से संचालित किया जा रहा है। ऑल इंडिया बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन गाजीपुर, उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालयी परिषद, बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन, मध्य भारत ग्वालियर, काउंसिल ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन बोर्ड मोहाली, महात्मा गांधी सेकेंडरी एंड सीनियर सेकेंडरी बोर्ड दिल्ली, डॉ. रामगोपाला चंद्रा संस्कृत महाविद्यालय एटा सहित 47 बोर्ड के नाम शामिल हैं।
राजधानी में इस तरह फर्जीवाड़ा होने का खुलासा एक छात्र द्वारा मार्कशीट के सत्यापन को लेकर हुआ। राजकीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान उप्र लखनऊ द्वारा जारी की गई हाईस्कूल-2016 की मार्कशीट सत्यापन लेकर एक छात्र डीआईओएस कार्यालय पहुंची, जब इसकी जांच की गई तो यह मामला फर्जी निकला। मार्कशीट में सरकारी गजट व लोगो इस तरह लगाया गया है कि इसे देखकर कोई भी आसानी से गुमराह हो सकता है। मार्कशीट पर भी वेबसाइट का जिक्र है। इसके फेर में फंसकर बड़ी संख्या में विद्यार्थी ठगी का शिकार हुए हैं।
इधर जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआइओएस) मुकेश कुमार सिंह का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है और विद्यार्थियों से ठगी कर उनका करियर दांव पर लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।ओपन एवं दूरस्थ शिक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ ओपेन स्कूलिंग (एनआईओएस) अधिकृत संस्था है। इस संस्था की ओर से वेबसाइट पर 47 फर्जी बोर्ड की सूची जारी की गई है। इनमें राजधानी में भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ, बोर्ड ऑफ सेकेंडरी संस्कृत एजूकेशन, बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन दिल्ली तो शहर के दुबग्गा इलाके से संचालित किया जा रहा है। ऑल इंडिया बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन गाजीपुर, उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालयी परिषद, बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन, मध्य भारत ग्वालियर, काउंसिल ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन बोर्ड मोहाली, महात्मा गांधी सेकेंडरी एंड सीनियर सेकेंडरी बोर्ड दिल्ली, डॉ. रामगोपाला चंद्रा संस्कृत महाविद्यालय एटा सहित 47 बोर्ड के नाम शामिल हैं।
क्या स्कूलों से वाकई गायब रहते हैं शिक्षक
जॉली
ग्रांट हवाई अड्डे पर उतरकर करीब पांच घंटे पहाड़ों के बीच से गुजरते हुए हम
चिन्यालीसौड़ पहुंचे। शाम हो चुकी थी। करीब 50 शिक्षकों
का एक समूह इस बहस में उलझा था कि बच्चों को गणित के स्थानीय मान की गुत्थी
सुलझाने में कैसी-कैसी मुश्किलें आती हैं। उन्होंने अपने वे अनुभव भी साझा किए, जो बच्चों को समझाने में कारगर साबित हुए थे। अंत में मुझे
अपनी बात रखने को कहा गया। वे चाहते थे कि मैं ‘टीचर ऐब्सेंस स्टडी’ यानी
शिक्षकों की अनुपस्थिति से जुड़े अध्ययन पर अपनी बात रखूं, जिसे हमने अप्रैल में प्रकाशित किया था।
अध्ययन का लब्बोलुआब यही है कि
स्कूलों में करीब 2.5 फीसदी
शिक्षक ही अनुपस्थित रहते हैं। यह उस धारणा से बिल्कुल उलट है, जो 25 से 50 फीसदी शिक्षकों के नियमित रूप से अनुपस्थित रहने की बात करती
है। इस शोध के लिए कई अन्य रिपोर्टों का भी अध्ययन किया गया, जिसमें विश्व बैंक का वह अध्ययन भी शामिल है, जिसका शीर्षक था, द फिस्कल
कॉस्ट ऑफ वीक गवर्नेंस : एविडेंस फ्रॉम टीचर ऐब्सेंस इन इंडिया। ये सभी
रिपोर्टें स्कूलों में शिक्षकों की महज ढाई से पांच फीसदी अनुपस्थिति की ही बात
करती हैं।
इस अध्ययन का निष्कर्ष शिक्षकों
के बारे में प्रचलित उस धारणा को तोड़ता है, जो
उन्हें बदनाम करती है। किसी गैर-शिक्षक ने इस सच को समझने की शायद ही कोई कोशिश की
हो। एक शिक्षक ने हमें स्थानीय अखबार की एक खबर दिखाई, जिसका शीर्षक था- ‘सब-डिविजनल
मजिस्ट्रेट के निरीक्षण में स्कूलों से गायब मिले 54 शिक्षक’। इस
सनसनीखेज शीर्षक से मेल खाते तमाम तथ्य भी खबर में भरे गए थे, जो दुर्भाग्य से भ्रामक थे। मगर यह बताने की जहमत नहीं उठाई
गई कि 53 शिक्षकों की नामौजूदगी का कारण उन्हें
सरकार द्वारा प्रशिक्षण पर भेजा जाना था। इस मसले पर गढ़वाल का यह अखबार गुणवत्ता
के मामले में द इकोनॉमिस्ट से बहुत अलग नहीं है। ब्रिटिश साप्ताहिक द
इकोनॉमिस्ट ने भारतीय स्कूलों पर एक संपादकीय और इससे जुड़ी एक खबर पिछले ही हफ्ते
प्रकाशित की है। औसत विश्लेषण के साथ ही इसमें बगुला भगत बनने की कोशिश भी की गई
है। इसमें सार्वजनिक शिक्षा को सुधारने की बात तो कहीं नहीं है, लेकिन गारंटी देने वाली निजी शिक्षा-व्यवस्था की वकालत जरूर
है। ऐसा कहते हुए यह भी नहीं सोचा गया कि शिक्षा का अधिकार देकर भारत पहले से ही
गारंटी देने वाला दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम चला रहा है। और यह भी कि पिछले एक
दशक में निजी स्कूलों में दाखिला बढ़ने के बाद भी उनके बच्चों में सीखने के स्तर
में गिरावट आई है। बहरहाल, उस हफ्ते
मैं उत्तरकाशी,
मनेरी, बरकोट, नौगांव
और पुरोला में लगभग 300 शिक्षकों
से मिला। ये वे शिक्षक हैं, जो
नियमित तौर पर आपस में मिलते हैं, ताकि
एक-दूसरे से कुछ नया सीख सकें और स्वयं को और ज्यादा बेहतर शिक्षक के रूप में
प्रस्तुत कर सकें।
अगले हफ्ते ही मैं राजस्थान गया
और वहां करीब 200
शिक्षकों से मिला। उनके साथ
होने वाली बातें भी कमोबेश वैसी ही थीं, जैसी कि
उत्तरकाशी आदि में सुनने को मिली थीं। मेरा मानना है कि देश भर के शिक्षकों का यही
दर्द है। शिक्षक इस बदनामी के साथ जीने को अभिशप्त हैं, जबकि सच यह है कि वे अपने कर्तव्य को पूरा करने में जी जान
लगा देते हैं,
और वह भी अमूमन बहुत कठिन
परिस्थितियों में। कमजोर को निशाना बनाना आसान है, और शिक्षकों के साथ हम यही कर रहे हैं।
शिक्षा में सुधार तभी संभव है, जब हम कक्षाओं में शैक्षणिक अभ्यास को प्रोत्साहित करें और
स्कूली संस्कृति को सुधारें। यह सुधार पूरी तरह से शिक्षकों पर निर्भर है। और यह
काम शर्मसार करके, डराकर या
धमकाकर नहीं हो सकता। भूलना नहीं चाहिए कि शिक्षण एक रचनात्मक कर्म है। हमें
शिक्षकों को उनकी अपनी क्षमताओं के साथ ‘बदलाव को
उत्सुक नेतृत्व’
की भावना पनपने के अवसर देने
होंगे। इसके लिए माहौल बनाने के लिए निवेश के साथ शिक्षकों का सहयोग करना होगा।
देश के करीब 88
लाख शिक्षकों में ज्यादातर इस
भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं, अगर उनसे
सहयोग किया जाए,
तो तस्वीर और बेहतर हो सकती है।
मगर मुश्किल यह है कि हममें से कई लोग धारणाओं में उलझे हुए हैं, जिसे हम बदलना नहीं चाहते।
अनुराग बेहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
(ये लेखक
के अपने विचार हैं)
शिक्षा की तार्किकता पर विचार करने का सही समय
हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट ने कई
शैक्षणिक बोर्डों से कहा कि वे दसवीं के छात्रों के लिए गणित को वैकल्पिक विषय
बनाने पर विचार करें, जिससे
उन्हें बिना गणित के कला और दूसरे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए प्रेरणा मिलेगी।
न्यायालय ने पाया कि दसवीं के बाद गणित और भाषा की परीक्षा में पास न हो पाने की
वजह से बहुत से छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं। मुंबई हाईकोर्ट की सलाह विचारणीय है। इस
सलाह के पीछे, वे प्रश्न भी छिपे हैं, जिन्हें हमने कभी ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की।
गणित और
विज्ञान विषयों को हमारी शिक्षण पद्धति ने बोझ बनाकर रख दिया है। इन विषयों को
बच्चों की बौद्धिक क्षमता से जोड़कर देखना ठीक नहीं होगा। प्राथमिक स्तर पर ही रटंत
विद्या की प्रक्रिया पूरी शिक्षा को नीरस बना देती है। चूंकि गणित और विज्ञान में
तार्किकता का महत्व है, इसलिए इन
विषयों को रुचिकर बनाने के लिए नए शोध और सोच की जरूरत है, परंतु भारतीय शिक्षा पद्धति आज भी ब्लैक बोर्ड से ऊपर नहीं
उठ पाई है। ड्रॉपआउट के मुद्दे पर शिक्षाविद् चिंतित दिखते हैं, पर सच तो यह है कि कागजों पर नामांकित बच्चों में से भी
कितने ही कक्षा से गायब रहते हैं। दरअसल, हमारी
शिक्षा प्रणाली ही नहीं, सामाजिक
पृष्ठभूमि भी पूर्वाग्रही है, जिसमें
विज्ञान, गणित और उसकी विभिन्न शाखाओं से जुड़े विषय प्रतिभा के मानक
माने जाते हैैं और साहित्य, कला, सामाजिक विज्ञान जैसे विषय लेने वाले विद्यार्थी प्रतिभाहीन।
हम यह नहीं समझ पाए हैं कि हर विषय की अपनी उपयोगिता होती है और कोई भी विषय दूसरे
से कमतर नहीं होता। हर विषय की जानकारी जरूरी है, परंतु
किस स्तर तक, यह एक शोध का विषय है। भाषा व
गणित का ज्ञान उस सीमा तक तो जरूरी है, जिससे
रोजमर्रा के कार्य बाधित न हों, परंतु
इससे अधिक पढ़ना या न पढ़ना बच्चे का खुद का चुनाव होना चाहिए। स्वभावगत विषयों का
चुनाव, शिक्षा के प्रति भय को तो कम करता ही है, बच्चे की क्षमताओं का विकास भी करता है।
भारत की स्कूली शिक्षा को किताबों के बोझ से मुक्त करने की
जरूरत है। बच्चों को परीक्षा की फैक्टरी में धकेलने से बेहतर है कि उनकी संचार, कौशल तथा अन्य क्षमताएं विकसित की जाएं। सबसे पहले तो ‘ज्ञान’ देने के
लिए रटने की परंपरा त्यागनी होगी। शिक्षा देने के साधन इतने मनोरंजक बनाने होंगे
कि वे बच्चों के भीतर अधिक से अधिक जिज्ञासा का भाव उत्पन्न कर सकें। इस संदर्भ
में फिनलैंड का उदाहरण ले सकते हैं, जहां
अंग्रेजी सिखाने के लिए बच्चों को अंग्रेजी भाषा के गाने सिखाए जाते हैं। संगीत
में रच-बसकर बच्चे शब्दों के अर्थ, उच्चारण
और उनका प्रयोग करना सीख जाते हैं।
प्रारंभिक
शिक्षा के बाद वोकेशनल स्कूल का विकल्प होता है, जिसके कोर्स बच्चों को आत्मनिर्भर बनाते हैं। इसके लिए हेयर
डिजाइनिंग, कैफेटेरिया सर्विसेज और मैसोन
(राज मिस्त्री) जैसे विषयों में दो साल के कोर्स हैं। इन वैकल्पिक विषयों के प्रति
झुकाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्राथमिक शिक्षा के बाद 40 प्रतिशत लड़कियां और 58 प्रतिशत
लड़के इन वोकेशनल स्कूलों में दाखिला लेते हैं। हम शिक्षा के किसी भी पहलू की बात
करें, उसका मुख्य उद्देश्य आत्मविश्वास पैदा करना और जीविकोपार्जन
के लिए सक्षम बनाना है। और इन दोनों दृष्टियों से हमारी शिक्षा-व्यवस्था
नाकाम रही है। क्या इन परिस्थितियों में यह बेहतर नहीं होगा कि व्यावसायिक या कौशल
प्रशिक्षण को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया जाए। ऐसे कार्यक्रम बच्चों को
शिक्षित करने के साथ उन्हें आर्थिक निर्भरता की ओर भी ले जाएंगे। संभव है कि इस
संदर्भ में तर्क यह दिया जाए कि अल्पायु में बच्चों को किसी रोजगार विशेष की ओर
प्रवृत्त करना गलत होगा। यह पक्ष पूर्णतया अतर्कसंगत नहीं है, पर जब आर्थिक स्वावलंबन व जीविकोपार्जन का प्रश्न हो, तो भारतीय परिप्रेक्ष्य, विशेषकर
ग्रामीण व निर्धन परिवारों के लिए किताबी शिक्षा दोयम हो जाती है। हर देश की अपनी
प्राथमिकताएं और आवश्कताएं होती हैं, उसी के
अनुरूप वहां की शिक्षण व्यवस्था का ढांचा होना चाहिए। वषार्ें से चली आ रही
शिक्षा-पद्धति की उपयोगिता के संबंध में नए सिरे से चर्चा करने का अब समय आ गया
है।
ऋतु सारस्वत, समाजशास्त्री
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
NEP : भारतीय शिक्षा नीति को नये सिरे से गढ़ेगी कस्तूरीरंगन वाली 9 सदस्यीय समिति
नयी शिक्षा नीति ( NEP ) पर काम करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अंतरिक्ष
वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक नई समिति गठित की है। समिति में नौ
सदस्य होंगे।
मंत्रालय ने विभिन्न विशेषज्ञता
और शैक्षणिक योग्यता वाली पृष्ठभूमि के लोगों को इस समिति में शामिल किया है। यह
समिति भारतीय शिक्षा नीति को नये सिरे से गढ़ने का काम करेगी।
जानें इस समिति के सदस्यों के बारे में
सूत्रों ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की कमान संभाल चुके कस्तूरीरंगन के अलावा समिति में पूर्व आईएएस अधिकारी के जे अल्फोंसे कनामथानम भी हैं। उन्होंने बताया कि इस अधिकारी ने केरल के कोटटायम और एनार्कुलम जिलों के पूर्ण साक्षरता दर हासिल करने में अहम भूमिका निभाई है।
मध्य प्रदेश के महू स्थित बाबा
साहेब अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति राम शंकर कुरील भी समिति
का हिस्सा होंगे। उन्हें कृषि विज्ञान और प्रबंधन के क्षेत्र में व्यापक अनुभव है।
सूत्रों ने कहा कि कनार्टक
राज्य नवोन्मेष परिषद के पूर्व सदस्य सचिव डॉ एम के श्रीधर, भाषा संचार के विशेषज्ञ डॉ टी वी कटटीमनी, गुवाहाटी विश्विवद्यालय में फारसी के प्रोफेसर डॉ मजहर आसिफ
और उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा निदेशक कृष्ण मोहन त्रिपाठी को भी इस समिति में
शामिल किया गया है।
इसके अलावा प्रिंसटन
विश्विवद्यालय के गणितज्ञ मंजुल भार्गव और मुंबई की एनएनडीटी विश्वविद्यालय की
पूर्व कुलपति वसुधा कामत भी इस समिति का हिस्सा होंगी।
एक अधिकारी ने कहा, इस समिति का गठन इस बात को ध्यान में रखकर किया गया है कि
सदस्य शिक्षा के विविध क्षेत्रों से जुड़ी विशेषज्ञता लेकर आयेंगे। महत्वपूर्ण रूप
से यह समिति देश की विविधता भी दिखाती है क्योंकि सदस्य विभिन्न वर्गों और
क्षेत्रों से आते हैं।
उन्होंने कहा कि मंत्रालय को
उम्मीद है कि इस विविधता से समिति को ऐसे अहम नीतिगत दस्तावेज तैयार करते वक्त
विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रखने में मदद मिलेगी।
कुछ साल पहले मानव संसाधन विकास
मंत्रालय ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यन की अध्यक्षता में नयी शिक्षा
नीति पर एक समिति बनाई थी। सूत्रों ने कहा कि इस समिति के सुझावों का भी इस्तेमाल
किया जायेगा।
ड्रेस नापने विद्यालय में पहुंचेंगे दर्जी
गोरखपुर:
शासन के दिशा-निर्देश पर परिषदीय विद्यालयों में ड्रेस वितरण को लेकर जिला प्रशासन
ने सख्ती बढ़ा दी है। शिक्षा अधिकारियों के साथ बैठक में जिलाधिकारी राजीव रौतेला
ने कहा कि ड्रेस की गुणवत्ता और वितरण व्यवस्था में किसी भी प्रकार की लापरवाही
बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
जिलाधिकारी
ने कहा कि ड्रेस मानक के अनुसार होना चाहिए। कपड़ा, नाप और
सिलाई के साथ कोई भी समझौता नहीं किया जाएगा। सिलाई के लिए
प्रधानाध्यापक दर्जी को विद्यालय बुलाएंगे और एक-एक छात्र का नाप सुनिश्चित
करेंगे। ड्रेस निर्धारित नाप पर ही सिला जाएगा। ड्रेस की नाप, सिलाई और धुलाई के लिए 28 और 29 जून को जनपद के समस्त ब्लाक संसाधन केंद्रों पर (बीआरसी)
प्रधानाध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इस मौके पर खंड शिक्षा अधिकारी और
एबीआरसी भी मौजूद रहेंगे।
बैठक में
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सुधीर कुमार, जिला समन्वयक
सर्व शिक्षा अभियान विवेक जायसवाल सहित सभी खंड शिक्षा अधिकारी आदि मौजूद थे।
उपचारात्मक शिक्षण देकर कमजोर बच्चें को बनाएंगे दक्ष
गाजीपुर। राजकीय हाईस्कूल एवं इंटर कॉलेजों
में अध्ययन करने वाले कमजोर बच्चों को उपचारात्मक शिक्षा देकर उनकी कमियों को दूर
किया जाएगा। गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी विषयों में कमजोर
बच्चों को ही उपचारात्मक शिक्षण दिया जाएगा। कक्षा नौ में अध्ययन करने वाले बच्चों
को इन विषयों में दक्ष बनाने की यह कवायद 15 जुलाई से 45 दिनों तक विद्यालयों में अभियान के रूप में
संचालित की जाएगी।
अभी तक यह कार्यक्रम सर्व शिक्षा अभियान के
अंतर्गत बेसिक स्तर पर ही संचालित किया जाता रहा है लेकिन अब राष्ट्रीय माध्यमिक
शिक्षा अभियान (रमसा) के तहत कक्षा नौ में प्रवेश करने वाले कमजोर बच्चों को यह
उपचारात्मक शिक्षा देने की कार्ययोजना भारत सरकार की तरफ से तैयार की गई है। यह
कार्यक्रम विद्यालयों में 15 जुलाई से लेकर 30 अक्तूबर के बीच 45 कार्यदिवसों में संचालित होगा। इस संबंध में
राज्य परियोजना के निदेशक संजय अग्रवाल का पत्र सभी जिला विद्यालय निरीक्षकों को
भेजा जा चुका है। इस पत्र के निर्देशों के मुताबिक कार्यक्रम को क्रियान्वित करने
की तैयारी जिला स्तर पर शुरू कर दी गई है। निर्देश में इस बात का उल्लेख है कि
कक्षा नौ में नामांकित 20 प्रतिशत छात्र-छात्राओं को जिनकी दक्षता गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी विषय में कम है, उन्हें चिह्नित कर उपचारात्मक शिक्षा दी जाएगी। अगर संबंधित विद्यालय में
विज्ञान, गणित एवं अंग्रेजी के अध्यापक उपलब्ध नहीं
हैं तो ऐसी स्थिति में पास के उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों या सेवानिवृत्त
शिक्षकों का सहयोग लिया जाएगा। उपचारात्मक शिक्षण के लिए प्रति शिक्षक दो हजार
रुपये मानदेय दिया जाएगा। प्रदेश स्तर पर मास्टर ट्रेनरों का प्रशिक्षण आयोजित
किया जाएगा। यह प्रशिक्षण लेने के लिए प्रत्येक जिले से गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी विषय के एक-एक शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए भेजा जाएगा।
प्रदेश स्तर पर यह प्रशिक्षण तीन चरणों में आयोजित होगा। इसमें अंतिम चरण में
गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, जौनपुर एवं सोनभद्र के शिक्षक प्रशिक्षण
प्राप्त करेंगे। इनका प्रशिक्षण 12 जुलाई को होगा। प्रदेश स्तर पर कुल 28379 छात्र-छात्राओं को उपचारात्मक शिक्षण के लिए
चिह्नित किया गया है। रमसा कार्यालय के माध्यम से जिले में कक्षा नौ में अध्ययनरत 20 प्रतिशत कमजोर छात्र-छात्राओं को चिह्नित किया जा चुका है। 15 जुलाई से प्रशिक्षण को संचालित करने की तैयारी की जा रही है।
स्कूल में मिली गंदगी तो गुनहगार होंगे गुरुजी
गोंडा:
गंदगी को लेकर सरकार की सख्ती को देखते हुए बेसिक शिक्षा विभाग ने भी कमर कस ली
है। स्कूलवार अध्यापकों को साफ-सफाई की जिम्मेदारी स्वयं निभाने का निर्देश दिया
गया है। बर्तन से लेकर रसोई, भवन व
परिसर तक की सफाई अध्यापकों को सौंपी गई है। गंदगी मिलने पर निलंबन की कार्रवाई की
चेतावनी दी गई है।
बेसिक
शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में गंदगी को लेकर मुहिम शुरू की जाएगी।
बीएसए ने खंड शिक्षा
अधिकारियों को एक जुलाई से पहले परिसर को साफ सुथरा कराने का निर्देश दिया है।
इसमें ग्राम पंचायत में तैनात सफाई कर्मी के साथ ही अध्यापक खुद भी गंदगी हटाएंगे।
स्कूल खुलने से पहले ही परिसर में उगी घासों को हटाने समेत सभी प्रकार की गंदगी को
दूर करना है। जिससे स्कूल खुलने पर बच्चों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। सफाई की
पड़ताल करने के लिए बीईओ को एक से 15 जुलाई तक
स्कूलों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया गया है। मिड डे मील में प्रयोग होने
वाले बर्तनों को विशेष रूप से साफ रखने का निर्देश दिया गया। इसके साथ ही हैंडपंप, शौचालय खराब होने की सूचना देने के लिए कहा गया है। जिससे समय
रहते अधिकारियों को सूचित कर व्यवस्था दुरुस्त कराई जा सके। सफाई व्यवस्था में
लापरवाही करने वाले अध्यापकों पर कार्रवाई करने निर्देश दिया है।
-एक जुलाई
से स्कूल खुल रहे हैं। इससे पहले विद्यालय परिसर, कमरे, बर्तन आदि की सफाई करने का निर्देश दिया गया है। ताकि स्कूल
खुलते ही सुचारू रूप से शिक्षण कार्य शुरू हो सके। बीईओ को निरीक्षण करने की
जिम्मेदारी दी गई है। गंदगी मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
-संतोष
कुमार देव पांडेय, बेसिक
शिक्षा अधिकारी गोंडा
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