Sunday, February 23, 2020

28 फ़रवरी : राष्ट्रीय विज्ञान दिवस



राष्ट्रीय विज्ञान दिवस  National Science Day विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में हर साल 28 फरवरी को भारत में मनाया जाता है। 28 फ़रवरी 1928 को रमन प्रभाव की खोज की हुई। इसी उपलक्ष्य में भारत में 1986 से हर वर्ष 28 फ़रवरी 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
उद्देश्य
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना तथा जनसाधारण को विज्ञान एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति सजग बनाना है। इस दिन सभी विज्ञान संस्थानों, जैसे राष्ट्रीय एवं अन्य विज्ञान प्रयोगशालाएँ, विज्ञान अकादमियों, स्कूल और कॉलेज तथा प्रशिक्षण संस्थानों में विभिन्न वैज्ञानिक गतिविधियों से संबंधित प्रोग्राम आयोजित किए जाते हैं। महत्त्वपूर्ण आयोजनों में वैज्ञानिकों के लेक्चर, निबंध, लेखन, विज्ञान प्रश्नोत्तरी, विज्ञान प्रदर्शनी, सेमिनार तथा संगोष्ठी इत्यादि सम्मिलित हैं। विज्ञान की लोकप्रियता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय एवं दूसरे पुरस्कारों की घोषणा भी की जाती है। विज्ञान की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए विशेष पुरस्कार भी रखे गए हैं। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस देश में विज्ञान के निरंतर उन्नति का आह्वान करता है।

सी. वी. रमन द्वारा 'रमन प्रभाव' की खोज

1928 में कोलकाता में भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने इस दिन एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज, जो रमन इफेक्ट/रमन प्रभावके रूप में प्रसिद्ध है, की थी, जिसकी मदद से कणों की आणविक और परमाणविक संरचना का पता लगाया जा सकता है और जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस समय तक भारत या एशिया के किसी व्यक्ति को भौतिकी का नोबल पुरस्कार नहीं मिला था। अवार्ड समारोह में इस प्रभाव का प्रदर्शन करने रमन ने अल्कोहल का इस्तेमाल किया था। बाद में रात के खाने के दौरान जब अल्कोहल पेश की गई तो भारतीय परंपराओं के कारण रमन ने उसे हाथ भी नहीं लगाया।

रमन प्रभाव

रमन प्रभाव के अनुसार एकल तरंग-दैर्ध्य प्रकाश (मोनोकोमेटिक) किरणें जब किसी पारदर्शक माध्यम- ठोसद्रव या गैस में से गुजरती हैं, तब इसकी छितराई हुई किरणों का अध्ययन किया जाए तो उसमें मूल प्रकाश की किरणों के अलावा स्थिर अंतर पर बहुत कमज़ोर तीव्रता की किरणें भी उपस्थित होती हैं। इन किरणों को रमन-किरणें कहते हैं। ये किरणें माध्यम के कणों के कंपन एवं घूर्णन की वजह से मूल प्रकाश की किरणों में ऊर्जा में लाभ या हानि के होने से उत्पन्न होती हैं। रमन प्रभाव रसायनों की आणविक संरचना के अध्ययन में एक प्रभावी साधन है। इसका वैज्ञानिक अनुसंधान की अन्य शाखाओं, जैसे औषधि विज्ञान, जीव विज्ञानभौतिक विज्ञानरासायनिक विज्ञानखगोल विज्ञान तथा दूरसंचार के क्षेत्र में भी बहुत महत्त्व है।

 रमन प्रभाव का प्रयोग



दररअसल रमन प्रभाव की खोज ने आइन्सटाइन के उस सिद्धांत को भी प्रमाणित कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रकाश में तरंग के साथ ही अणुओं के गुण भी कुछ हद तक पाए जाते हैं। इससे पहले न्यूटन ने बताया था कि प्रकाश सिर्फ एक तरंग है और उसमें अणुओं के गुण नहीं पाए जाते। आइन्सटाइन ने इससे विपरीत सिद्धांत दिया और रमन प्रभाव से वह साबित हुआ। आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर सुभाष सिंह ने कहा,‘पदार्थों में मौजूद यौगिकों की आणविक और परमाणविक संरचना का पता चलने के कारण आगे की खोजों के मार्ग प्रशस्त हो सके इसीलिए रमन प्रभाव अपने आप में महत्त्वपूर्ण है।

सर चन्द्रशेखर वेंकटरमन


सर सी वी रमन 
7 नवंबर 1888 - 21 नवंबर 1970
 भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष 1930 में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कारउनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। 1954 ई. में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा 1957 में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया था।
 परिचय
चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जन्म ७ नवम्बर सन् 1888 ई. में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्‍ली नामक स्थान में हुआ था। आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस. पी. जी. कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे। आपकी माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। सन् 1892 ई. मे आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापतनम के श्रीमती ए. वी.एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापक होकर चले गए। उस समय आपकी अवस्था चार वर्ष की थी। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई। वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगति ने आपको विशेष रूप से प्रभावित किया।

शिक्षा
आपने बारह वर्ष की अल्पावस्था में ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। तभी आपको श्रीमती एनी बेसेंट के भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके लेख पढ़ने को मिले। आपने रामायण, महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया। इससे आपके हृदय पर भारतीय गौरव की अमिट छाप पड़ गई। आपके पिता उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने के पक्ष में थे; किन्तु एक ब्रिटिश डॉक्टर ने आपके स्वास्थ्य को देखते हुए विदेश न भेजने का परामर्श दिया। फलत: आपको स्वदेश में ही अध्ययन करना पड़ा। आपने सन् 1903 ई. में चेन्नै के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया। यहाँ के प्राध्यापक आपकी योग्यता से इतने प्रभावित हुए कि आपको अनेक कक्षाओं में उपस्थित होने से छूट मिल गई। आप बी.ए. की परीक्षा में विश्वविद्यालय में अकेले ही प्रथम श्रेणी में आए। आप को भौतिकी में स्वर्णपदक दिया गया। आपको अंग्रेजी निबंध पर भी पुरस्कृत किया गया। आपने 1907 में मद्रास विश्वविद्यालय से गणित में प्रथम श्रेणी में एमए की डिग्री विशेष योग्यता के साथ हासिल की। आपने इस में इतने अंक प्राप्त किए थे, जितने पहले किसी ने नहीं लिए थे

युवा विज्ञानी
आपने शिक्षार्थी के रूप में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए। सन् 1906 ई. में आपका प्रकाश विवर्तन पर पहला शोध पत्र लंदन की फिलसोफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ। उसका शीर्षक था - 'आयताकृत छिद्र के कारण उत्पन्न असीमित विवर्तन पट्टियाँ'। जब प्रकाश की किरणें किसी छिद्र में से अथवा किसी अपारदर्शी वस्तु के किनारे पर से गुजरती हैं तथा किसी पर्दे पर पड़ती हैं, तो किरणों के किनारे पर मद-तीव्र अथवा रंगीन प्रकाश की पट्टियां दिखाई देती है। यह घटना `विवर्तन' कहलाती है। विवर्तन गति का सामान्य लक्षण है। इससे पता चलता है कि प्रकाश तरंग में निर्मित है।

वृत्ति एवं शोध
उन दिनों आपके समान प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी वैज्ञानिक बनने की सुविधा नहीं थी। अत: आप भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठ गए। आप प्रतियोगिता परीक्षा में भी प्रथम आए और जून, 1907 में आप असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनकर कलकत्ते चले गए। उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि आपके जीवन में स्थिरता आ गई है। आप अच्छा वेतन पाएँगे और एकाउँटेंट जनरल बनेंगे। बुढ़ापे में उँची पेंशन प्राप्त करेंगे। पर आप एक दिन कार्यालय से लौट रहे थे कि एक साइन बोर्ड देखा, जिस पर लिखा था 'वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद (इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस)'। मानो आपको बिजली का करेण्ट छू गया हो। तभी आप ट्राम से उतरे और परिषद् कार्यालय में पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा पा ली।
तत्पश्चात् आपका तबादला पहले रंगून को और फिर नागपुर को हुआ। अब आपने घर में ही प्रयोगशाला बना ली थी और समय मिलने पर आप उसी में प्रयोग करते रहते थे। सन् 1911 ई. में आपका तबादला फिर कलकत्ता हो गया, तो यहाँ पर परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने का फिर अवसर मिल गया। आपका यह क्रम सन् 1917 ई. में निर्विघ्न रूप से चलता रहा। इस अवधि के बीच आपके अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र था - ध्वनि के कम्पन और कार्यों का सिद्धान्त। आपका वाद्यों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि सन् 1927 ई. में जर्मनी में प्रकाशित बीस खण्डों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खण्ड के लिए वाद्ययंत्रों की भौतिकी का लेख आपसे तैयार करवाया गया। सम्पूर्ण भौतिकी कोश में आप ही ऐसे लेखक हैं जो जर्मन नहीं है।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में सन् 1917 ई में भौतिकी के प्राध्यापक का पद बना तो वहाँ के कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने उसे स्वीकार करने के लिए आपको आमंत्रित किया। आपने उनका निमंत्रण स्वीकार करके उच्च सरकारी पद से त्याग-पत्र दे दिया।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में आपने कुछ वर्षों में वस्तुओं में प्रकाश के चलने का अध्ययन किया। इनमें किरणों का पूर्ण समूह बिल्कुल सीधा नहीं चलता है। उसका कुछ भाग अपनी राह बदलकर बिखर जाता है। सन् 1921 ई. में आप विश्वविद्यालयों की कांग्रेस में प्रतिनिधि बन गए आक्सफोर्ड गए। वहां जब अन्य प्रतिनिधि लंदन में दर्शनीय वस्तुओं को देख अपना मनोरंजन कर रहे थे, वहाँ आप सेंट पाल के गिरजाघर में उसके फुसफुसाते गलियारों का रहस्य समझने में लगे हुए थे। जब आप जलयान से स्वदेश लौट रहे थे, तो आपने भूमध्य सागर के जल में उसका अनोखा नीला व दूधियापन देखा। कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुँच कर आपने पार्थिव वस्तुओं में प्रकाश के बिखरने का नियमित अध्ययन शुरु कर दिया। इसके माध्यम से लगभग सात वर्ष उपरांत, आप अपनी उस खोज पर पहुँचें, जो 'रामन प्रभाव' के नाम से विख्यात है। आपका ध्यान 1927 ई. में इस बात पर गया कि जब एक्स किरणें प्रकीर्ण होती हैं, तो उनकी तरंग लम्बाइया बदल जाती हैं। तब प्रश्न उठा कि साधारण प्रकाश में भी ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए?
आपने पारद आर्क के प्रकाश का स्पेक्ट्रम  स्पेक्ट्रोस्कोप में निर्मित किया। इन दोनों के मध्य विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ रखे तथा पारद आर्क के प्रकाश को उनमें से गुजार कर स्पेक्ट्रम बनाए। आपने देखा कि हर एक स्पेक्ट्रम में अन्तर पड़ता है। हरएक पदार्थ अपनी-अपनी प्रकार का अन्तर डालता है। तब श्रेष्ठ स्पेक्ट्रम चित्र तैयार किए गए, उन्हें मापकर तथा गणित करके उनकी सैद्धान्तिक व्याख्या की गई। प्रमाणित किया गया कि यह अन्तर पारद प्रकाश की तरगं लम्बाइयों में परिवर्तित होने के कारण पड़ता है। रामन् प्रभाव का उद्घाटन हो गया। आपने इस खोज की घोषणा २९ फ़रवरी सन् 1928 ई. को की।

सम्मान
आप सन् 1924 ई. में अनुसंधानों के लिए रॉयल सोसायटी, लंदन के फैलो बनाए गए। रामन प्रभाव के लिए आपको सन् 1930 ई. मे नोबेल पुरस्कार दिया गया। रामन प्रभाव के अनुसंधान के लिए नया क्षेत्र खुल गया।
1948 में सेवानिवृति के बाद उन्होंने रामन् शोध संस्थान की बैंगलोर में स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे। 1954 ई. में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया। आपको 1954 में लेनिन शान्ति पुरस्कार भी प्रदान किया था।
28 फरवरी 1928 को चन्द्रशेखर वेंकट रामन् ने रामन प्रभाव की खोज की थी जिसकी याद में भारत में इस दिन को प्रत्येक वर्ष 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

संत गाडगे महाराज

पूरा नाम  देवीदास डेबुजी झिंगराजि जानोरकर (Sant Gadge Baba)
जन्म       23 फरवरी, 1876
जन्मस्थान – अँजनगाँव सुरजी, जिला. अमरावती, महाराष्ट्र
पिता       झिंगराजि
माता      – सखुबाई
डेबुजी झिंगराजि जानोरकर साधारणतः संत गाडगे महाराज और गाडगे बाबा के नाम से जाने जाते थे। वे एक समाज सुधारक और घुमक्कड भिक्षुक थे जो महाराष्ट्र में सामाजिक विकास करने हेतु साप्ताहिक उत्सव का आयोजन करते थे।
उन्होंने उस समय भारतीय ग्रामीण भागो का काफी सुधार किया और आज भी उनके कार्यो से कई राजनैतिक दल और सामाजिक संस्थान प्रेरणा ले रहे है।
जीवन:
उनका वास्तविक नाम देवीदास डेबुजी था। महाराज का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अँजनगाँव सुरजी तालुका के शेड्गाओ ग्राम में एक धोबी परिवार में हुआ था। गाडगे महाराज एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे। वे पैरो में फटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर पैदल ही यात्रा किया करते थे। और यही उनकी पहचान थी।
जब वे किसी गाँव में प्रवेश करते थे तो गाडगे महाराज तुरंत ही गटर और रास्तो को साफ़ करने लगते। और काम खत्म होने के बाद वे खुद लोगो को गाँव के साफ़ होने की बधाई भी देते थे।
गाँव के लोग उन्हें पैसे भी देते थे और बाबाजी उन पैसो का उपयोग सामाजिक विकास और समाज का शारीरिक विकास करने में लगाते। लोगो से मिले हुए पैसो से महाराज गाँवो में स्कूल, धर्मशाला, अस्पताल और जानवरो के निवास स्थान बनवाते थे।
गाँवो की सफाई करने के बाद शाम में वे कीर्तन का आयोजन भी करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण का प्रसार करते थे। अपने कीर्तनों के समय वे लोगो को अन्धविश्वास की भावनाओ के विरुद्ध शिक्षित करते थे। अपने कीर्तनों में वे संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे।
संत गाडगे महाराज लोगो को जानवरो पर अत्याचार करने से रोकते थे और वे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नही मानते थे और लोगो के इसके खिलाफ वे जागरूक करते थे। और समाज में वे शराबबंदी करवाना चाहते थे।
गाडगे महाराज लोगो को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे और हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी इसी राह पर चलने को कहा।
महाराज कई बार आध्यात्मिक गुरु मैहर बाबा से भी मिल चुके थे। मैहर बाबा ने भी संत गाडगे महाराज को उनके पसंदीदा संतो में से एक बताया। महाराज ने भी मैहर बाबा को पंढरपुर में आमंत्रित किया और 6 नवंबर 1954 को हज़ारो लोगो ने एकसाथ मैहर बाबा और महाराज के दर्शन लिये।

स्वच्छता अभियान के जनक


यह घटना सन् 1907 के आस-पास की है। अमरावती के पास ऋषमोचन नामक गांव में एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ था। मेले में हजारों लोग आए हुए थे। इस वजह से वहां सफाई का नामोनिशान न था। सभी लोग यह सोच रहे थे कि मेले में इतने लोग हैं और सफाई कोई अकेले उन्हीं की जिम्मेदारी नहीं है। वे भोजन की जूठी पत्तलों, दोनों और मिट्टी के बर्तनों को जहां-तहां फेंके जा रहे थे। गंदगी बढ़ती जा रही थी और किसी का इस ओर ध्यान नहीं था। वहां एक युवा संत गाडगे महाराज भी उपस्थित थे। वह चारों ओर गंदगी देखकर अकेले ही झाड़ू लेकर सार्वजनिक स्थल पर सफाई करने में जुट गए। यह देखकर दर्शनार्थियों के मन में कौतूहल के साथ-साथ उनके प्रति आदर भाव जागृत हुआ और वहां भीड़ लग गई।
भीड़ को एकत्रित देखकर गाडगे महाराज बोले, 'आप मुझे इस तरह हैरत से क्यों देख रहे हैं? मैं कोई अजूबा नहीं हूं, न ही मैं कोई अनोखा काम कर रहा हूं। फर्क इतना है कि जिस सफाई को आप केवल अपने घरों तक सीमित रखना चाहते हैं, उसी सफाई को मैं पूरे देश में फैलाना चाहता हूं। गंदगी के कारण ही महामारी और असंख्य बीमारियां पनपती हैं। इसमें हम सभी का हाथ होता है और बीमारी की चपेट में आने वाले भी हम ही होते हैं। लेकिन हम जागते तभी हैं जब इसकी चपेट में आते हैं। मुझमें और आप में इतना अंतर जरूर है कि मैं पहले ही जागरूक हो गया हूं और यहां सफाई कर रहा हूं।' गाडगे महाराज की बातें सुनकर वहां मौजूद दर्शनार्थियों की नजरें झुक गईं। इसके बाद सभी श्रद्धालु झाड़ू लिए सफाई में जुट गए।

उन्हें सम्मान देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 2000-01 में संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान की शुरुवात की। और जो ग्रामवासी अपने गाँवो को स्वच्छ रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है।
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारको में से वे एक है। वे एक ऐसे संत थे जो लोगो की समस्याओ को समझते थे और गरीबो और जरूरतमंदों के लिये काम करते थे।
भारत सरकार ने भी उनके सम्मान में कई पुरस्कार जारी किये।
इतना ही नही बल्कि अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है। संत गाडगे महाराज भारतीय इतिहास के एक महान संत थे।
संत गाडगे बाबा सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे। महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएँ, गौशालाएँ, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का उन्होंने निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख माँग-माँगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई।
साभार

इतिहास के पन्नों में 24 फरवरी



जो वर्तमान है, वो भविष्य में इतिहास अवश्य बनेगा.
दीवारों पर टंगे कैलेण्डर की हर तारीख़ अपने आप में विशेष है. इसी कड़ी में आज हम 24 फ़रवरी को घटित इतिहास की कुछ ऐसी ही विशेषव प्रसिद्ध घटनाओं पर बात करेंगे
1483 - मुग़ल साम्राज्य के प्रथम शासक बाबर का जन्म हुआ।
1510 - पोप जूलियस द्वितीय ने वेनिस के गणराज्य का बहिष्कार किया
1525 - शाही सेना ने पाविया की लड़ाई में फ्रेंच को हराया
1527 - ऑस्ट्रिया के फर्डिनैंड बोहेमिया को राजा के रूप में ताज पहनाया
1708 - प्रिंस जोहान विलियम फ्रिसो ने ग्रोनिंगन के वायसराय के रूप में शपथ ली
1739 - करनाल में हुए युद्ध में फ़ारस पर सत्तासीन तुर्क नादिरशाह ने मुग़ल शहंशाह आलम की भारतीय सेना को हरा दिया।
1821 - मैक्सिको ने स्पेन से स्वतंत्रता हासिल की।
1822 –
  • दुनिया के पहले स्वामी नारायण मंदिर का अहमदाबाद में उद्घाटन हुआ।
  • संक्रामक बीमारी टीबी की पहचान आज ही के दिन की गई थी

1831 - दा ट्रीटि ऑफ़ डासिंग रेबिट क्रीक वह पहली संधि है जिसे भारतीय रिमूवल एक्ट से हटाने की घोषणा की गयी।
1882 - संक्रामक बीमारी टीबी की पहचान आज ही के दिन की गई थी।
1894 - निकारागुआ ने हाेंडुरास की राजधानी तेगुसिगालपा पर कब्जा किया।
1895 - क्यूबा में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये लड़ाई शुरु हुई।
1918 - एस्टोनिया रूस से स्वतंत्रता की घोषणा की
1924 - ग्रीक संसद गणतंत्र की घोषणा की
1938 - डु पोंट ने नायलॉन टूथब्रश का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया
1942 - सन वॉयस ऑफ अमेरिकामें प्रसारण शुरू होता है
1945 - मिस्र और सीरिया ने नाज़ी-जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की
1946 - जुआन पेरेन सन अर्जेंटीना के राष्ट्रपति चुने गए
1949 - इजरायल और मिस्र ने एक युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किया
1955 - इराक और तुर्की के बीच बगदाद के समझौते पर हस्ताक्षर किए
1961 - एक्सप्लोरर 10” सन पृथ्वी की कक्षा तक पहुंचने में विफल रहता है
1971 - अल्जीरिया फ्रांसीसी तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण हुआ
1976 - अर्जेन्टीना में सेना प्रमुखों द्वारा बलात् सत्ता ग्रहण, राष्ट्रपति श्रीमती पैरों गिरफ्तार एवं संसद भंग
1979 - उत्तर और दक्षिण यमन के बीच युद्ध शुरू
2001 - पाकिस्तान भारत से परमाणु निवारण के लिए वार्ता को तैयार।
2003 - चीन के जिजियांग प्रान्त में भीषण भूकम्प से 257 मरे।
2004 - रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मिखाइल कास्यानोव को उनके पद से हटाया।
2006 - फिलीपींस में तख्तापलट की कोशिश के बाद आपातकाल लागू।
2008 -
  • रिलायंस पावर ने अपने शेयर धारकों की क्षतिपूर्ति के लिए बोनस शेयर जारी करने का फैसला किया।
  • मुम्बई की शगुन साराभाई ने जोहांसवर्ग में मिस इण्डिया वर्ल्ड वाइड का खिताब जीता।

2009 - केन्द्र सरकार ने सेवा कर उत्पाद शुल्क में कटौती की घोषणा की।
2013 - राउल कास्त्रो को दूसरे कार्यकाल के लिये क्यूबा का राष्ट्रपति चुना गया।

इतिहास के पन्नों में 23 फरवरी



देश और दुनिया के इतिहास में आज के दिन कई घटनाएं हुईं, जिनमें ये प्रमुख हैं.
1768 - ब्रिटिश सत्ता को स्वीकार कर चुके हैदराबाद के निजाम के साथ कर्नल स्मिथ ने शांति समझौता किया।
1886 - अमेरिका के रसायनशास्त्री और आविष्कारक मार्टिन हेल ने अलम्यूनियम की खोज की।
1940 - रूसी सेनाओं ने यूनान के समीप स्थित लासी द्वीप पर कब्जा किया।
1945 - 
  • जापान द्वारा नियंत्रित टापू ईवो जीमा पर अमरीका ने अपना झंडा फहराया था
  • जर्मनी के कलकार क्षेत्र पर कनाड़ा की सेनाओं ने कब्जा जमाया

1952 - कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम पारित किया गया।
1967 - अमेरिकी सेनाओं ने वियतनाम युद्ध में बड़ा हमला शुरु किया।
1970 - गयाना देश गणराज्य बना और आज के दिन को इस देश का राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया।
1998 - जैविक एवं रासायनिक हथियारों की जांच को लेकर हुए गतिरोध को समाप्त करने के लिए सं.रा. महासचिव कोफी अन्नान व इराकी उपप्रधानमंत्री तारिक अजीज के बीच ऐतिहासिक समझौता सम्पन्न, विश्व में पहली बार बछड़े की प्रतिकृति क्लोन सं.रा. अमेरिका में तैयार।
2001 - अमेरिकी सीनेट द्वारा सीटीबीटी खारिज, प्रक्षेपास्त्र रक्षा प्रणाली जारी रखने की घोषणा।
2003 - कनाडा के डेविसन ने विश्वकप का सबसे तेज़ शतक लगाकर 1983 में बनाये गये कपिलदेव का रिकार्ड तोड़ा।
2005 - अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई तीन दिवसीय यात्रा पर भारत पहुँचे।
2006 - ईराक में जातीय हिंसा में 159 लोग मारे गये।
2007 - पाकिस्तान ने शाहीन-2 का परीक्षण किया।
2008-
  • 10 साल बाद चुनार सीमेण्ट फैक्ट्री में उत्पादन शुरू हुआ। रक्षामंत्री ए.के. एंटनी ने जेट ट्रेनर हॉक विमान को देश के बेड़े में शामिल करने की औपचारिक घोशणा की।
  • कोलंबो में हुए एक विस्फोट में 18 लोग घायल हुए।

2009- भारतीय तीरंदाज थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में एशियाई ग्रां प्री तीरंदाजी चैम्पियनशिप में टीम स्पर्धा में तीन रजत पदक जीते।
2010-
  • 2962वें वन डे में बनाए गए पहला दोहरा शतक बनाने वाले सचिन की बदौलत भारत ने दक्षिण अफ्रिका से ग्वालियर के कैप्टन रूपसिंह स्टेडियम में खेला गया एकदिवसीय मैच 153 रनों से जीत लिया। 402 रनों के लक्ष्य के जबाब में दक्षिण अफ्रीका की पूरी टीम 43वें ओवर में 248 रन बनाकर आउट हो गई। इसके साथ ही भारत ने तीन मैचों की शृंखला में 2-0 की अजेय बढ़त हासिल कर ली।
  • भारत के मशहूर चित्रकार एम.एफ. हुसैन को कतर की नागरिकता प्रदान कर दी गई।

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