Sunday, February 25, 2018

नई शिक्षा नीति में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम आधा करने के लिए मोदी सरकार ने कसी कमर

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम आधा करने के साथ-साथ अभिभावकों को भी एक बड़ी राहत दी है।
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्कूली बच्चों के बस्तों का बोझ घटाने के साथ एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम आधा करने की तैयारियों को रेखांकित कर छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों को भी एक बड़ी राहत दी है। अच्छा हो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय यह भी सुनिश्चित करे कि उसकी इस पहल में राज्य सरकारें और खासकर वहां के शिक्षा बोर्ड भी सहभागी बनें। इसका कोई मतलब नहीं कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के स्कूलों का तो पाठ्यक्रम दुरुस्त हो जाए, लेकिन राज्यों के शिक्षा बोर्ड के तहत संचालित स्कूलों में वह पहले जैसा ही बना रहे। एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा है कि स्कूली शिक्षा के स्तर पर देश भर में समान पाठ्यक्रम लागू करने की दिशा में बढ़ा जाना चाहिए, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हो पा रही है।पता नहीं अगले माह आ रही नई शिक्षा नीति में समान पाठ्यक्रम की जरूरत पर बल दिया जाएगा या नहीं, लेकिन हमारे नीति-नियंता इस बारे में गंभीरता से सोचें तो बेहतर कि असमान पाठ्यक्रम एक तरह की असमानता का ही निर्माण कर रहे हैैं। नि:संदेह समान पाठ्यक्रम का यह मतलब नहीं कि देश भर में समस्त स्कूली पाठ्यक्रम एक जैसा ही हो, लेकिन वह 80-90 फीसद तो एक जैसा हो ही सकता है। इसमें अगर कोई कठिनाई है तो केवल विभिन्न राज्य सरकारों के बीच की असहमति। बेहतर हो कि भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए शिक्षा दलगत राजनीति का विषय न बने।यह विचित्र है कि यह साधारण सी बात समझने में इतना समय लग गया कि स्कूली बच्चों के बस्तों का बोझ कम करने की जरूरत है। आखिर इसका क्या औचित्य कि स्कूली पाठ्यक्रम बीए और बीकाम से भी अधिक हो? शिक्षा के ढांचे में जैसी समस्याएं घर कर गई हैैं उन्हें देखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है, लेकिन सुधारों की गति अभी भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में प्रकाश जावड़ेकर ने शैक्षिक ढांचे में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैैं, लेकिन हालात बदलने के लिए बहुत कुछ करना शेष है-न केवल प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर, बल्कि उच्च शिक्षा के स्तर पर भी। इन दिनों विभिन्न राज्यों में दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं हो रही हैैं। कहीं बड़े पैमाने पर नकल हो रही है तो कहीं नकल रोकने को लेकर सख्ती के चलते परीक्षार्थी परीक्षा ही छोड़ दे रहे हैैं। उत्तर प्रदेश में अभी तक दस लाख से अधिक छात्र परीक्षा छोड़ चुके हैैं। इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का परीक्षा छोड़ना शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त खामियों को ही उजागर करता है। यह स्पष्ट है कि ये वही छात्र हैैं जो नकल के जरिये परीक्षा पास करने की सोच रहे थे। यह ठीक है कि प्रकाश जावड़ेकर ने शिक्षकों के खराब स्तर पर चिंता जताई, लेकिन क्या राज्यों के शिक्षा मंत्री भी इसे लेकर चिंतित होंगे? कई राज्यों के रवैये से तो यह लगता है कि शैक्षिक सुधार उनकी प्राथमिकता में ही नहीं। अच्छा हो कि सभी को यह समझ आए कि शैक्षिक सुधारों के मामले में हम समय से पीछे चल रहे हैैं।


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