बंगाल में सत्तारूढ़
दल तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा समेत अन्य हिंदूवादी संगठनों
को देखना नहीं चाहती।
बंगाल में सत्तारूढ़ दल तृणमूल
कांग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा समेत अन्य हिंदूवादी संगठनों को देखना
नहीं चाहती। जहां भी मौका मिलता है, वहां मुख्यमंत्री व तृणमूल
सुप्रीमो ममता बनर्जी से लेकर उनके दल के नेता उनपर निशाना साधने लगते हैं। अब
तृणमूल सरकार को संघ के स्कूलों से परेशानी है। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा
है कि सरकार बंगाल में संघ संचालित स्कूलों को नहीं चलने देगी। राज्य के विभिन्न
भागों, खासकर
उत्तर बंगाल में संघ के 125 स्कूल चल रहे हैं। इसमें से किसी स्कूल ने सरकार से अनापत्ति
प्रमाणपत्र (एनओसी) नहीं लिया है। ऐसे स्कूलों को सरकार चलने नहीं देगी। इस तरह
राज्य के विभिन्न भागों में और 493 स्कूल चल रहे हैं, जिनपर सरकार कड़ी नजर रख रही
है। जांच के बाद इन स्कूलों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। चटर्जी ने मंगलवार को
विधानसभा में यह बातें कही। उन्होंने कहा कि सरकार राज्य में धर्मांधता को बढ़ावा
देने वाली किसी गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगी। जरूरत पडऩे पर सरकार कानूनी लड़ाई
लड़ेगी और सुप्रीम कोर्ट भी जाएगी।
बताते चलें कि अभी कुछ दिन पहले
संघ द्वारा संचालित स्कूलों को बंद करने के लिए नोटिस जारी किया गया था। इसे लेकर
स्कूलों की ओर से कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील की गई। उसपर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट
ने पिछले सप्ताह ही डीआइ के नोटिस को रद कर दिया। बावजूद इसके सरकार कह रही है कि
उन स्कूलों को बंद किया जाएगा। ऐसे में इस मुद्दे पर सियासी पारा चढऩा तय है।
हालांकि, सवाल यह
भी उठ रहा है कि क्या सही में धार्मिक कट्टरता का पाठ उन स्कूलों में पढ़ाया जाता
है? बिना
किसी प्रमाण के कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता। क्या सरकार राज्य के विभिन्न भागों
में चल रहे अवैध मदरसों के खिलाफ भी यही कदम उठाएगी? यह भी सवाल उठ रहे हैं। ऐसा तो
नहीं है कि संघ के स्कूल सिर्फ बंगाल में हैं। देश के अन्य राज्यों में भी स्कूल
हैं, जहां
हजारों की संख्या में बच्चे पढ़ते हैं। वहां की सरकारों को कोई परेशानी नहीं है, फिर बंगाल में ही ऐसा क्यों हो
रहा है? खैर
सरकार के भी अपने तर्क हैं। जो भी हो, यह अवश्य देखा जाना चाहिए कि
संघ के स्कूलों में किस तरह की पढ़ाई व गतिविधियां होती हैं। यदि कानून व देश की
शिक्षा नीतियों के खिलाफ कुछ चल रहा है तो अवश्य कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन अगर
ऐसा नहीं है तो फिर सिर्फ सियासत के लिए स्कूलों को बंद कराने को उचित नहीं कहा जा
सकता है।