Tuesday, June 9, 2020

N. G. Ranga


एन.जी. रंगा
जन्म- 7 नवम्बर1900, मृत्यु- 9 जून1995
गोगिनेनी रंगा नायकुलु, जिसे एनजी रंगा भी कहा जाता है, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, संसद और किसान (किसान) नेता थे। वह किसान दर्शन का एक प्रवक्ता था, और भारतीय किसान आंदोलन के पिता माना जाता था। भारत के स्वतंत्रता सेनानीसांसद तथा प्रसिद्ध किसान नेता थे। ये आरम्भ से ही किसानों की समस्याओं से जुड़े रहे। इन्होंने किसानों के शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा उन्हें संगठित किया। एन.जी. रंगा उन चंद नेताओं में से एक थे, जिन्हें कृषि की समस्याओं का गहन ज्ञान था। साथ ही उन्होंने किसानों के भूमि अधिकार के लिए दो दशकों तक कार्य किया। उन्होंने कांग्रेस में कई महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त किए, लेकिन सहकारी कृषि पर जवाहर लाल नेहरू के साथ विवाद होने के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। एन.जी. रंगा ने 'कृषिकर लोक पार्टी' के नाम से किसानों की एक पार्टी की स्थापना की थी, जिसका बाद में स्वतंत्र पार्टी में विलय हो गया, जिसके वे संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष थे।
प्रसिद्ध समाजवादी और कृषक नेता एन.जी. रंगा का जन्म आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में 7 नवम्बर1900 ई. को हुआ था। इनके बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया था। इनकी विधवा चाची ने उनका पालन-पोषण किया। गुंटूर में स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद एन.जी. रंगा 'आई. सी. एस.' की परीक्षा देने के उद्देश्य से 1920 में इंग्लैण्ड गए, परन्तु 'ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय' में जी. डी. एच. कोल, ब्रेल्सफ़ोर्ड, रेडफ़ोर्ड जैसे समाजवादी विचारकों के प्रभाव में आकर रंगा ने अपने विचार बदल लिए और उन्होंने साहित्य की डिग्री ली।
एन.जी. रंगा जी के ऊपर विपिन चन्द्र पाल तथा अन्य क्रान्तिकारियों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय साहित्यरामायणमहाभारत का भी प्रभाव पड़ा। भारत लौटने पर उन्होंने मद्रास के कॉलेज में अध्यापन का कार्य आरम्भ किया।
शीघ्र ही रंगा जी ने अध्यापन कार्य छोड़ दिया और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वे किसानों को संगठित करने के काम में जुट गए। बाद में वे 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य और 'आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी' के अध्यक्ष बने। एन.जी. रंगा कृषि उत्पादकों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के संस्थापक सदस्य थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें कई बार जेल की सज़ाएँ भी भोगनी पड़ीं। उन्होंने 1927 से 1930 तक मद्रास विश्वविद्यालय में और 1980 में आन्ध्र विश्वविद्यालय में अध्यापन का काम किया था। इससे वे 'प्रोफ़ेसर रंगा' कहलाते थे। राजगोपालाचारी के साथ 1959 में रंगा स्वतंत्र पार्टीमें सम्मिलित हुए और उसके अध्यक्ष बने। वे लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए और वहाँ अपने दल के नेता रहे। 1973 में उन्होंने स्वतंत्र पार्टीछोड़ दी और फिर से कांग्रेस में आ गए।

समाज सुधार

समाज सुधार के क्षेत्र में भी एन.जी. रंगा अग्रणी रहे। 1923 में उन्होंने अपने घर का कुआँ हरिजनों के लिए खोल दिया। महिलाओं को आगे बढ़ाने का सदा समर्थन करते रहे। आन्ध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाने के आन्दोलन के भी वे प्रमुख नेता थे।

विशेष बिन्दु

  • एन.जी. रंगा ने 1931 ई. में आन्ध्र प्रदेश रैयत सभा की स्थापना की।
  • वे कांग्रेस समाजवादी पार्टी से उसकी स्थापना के साथ ही जुड़ गए थे।
  • इन्होंने आन्ध्र प्रदेश के नीदुब्रोलु कस्बे में इण्डियन पेजेण्ट इन्स्टीट्यूटकी स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य किसान कार्यकलापों को प्रशिक्षण देना था।
  • स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् वे लोक सभा के सदस्य बने तथा लगातार आठ बार लोक सभा के लिए चुने गए, जो कीर्तिमान है।
9 जून 1995 को उनकी मृत्यु हो गई

Abbas Tyabji,

अब्बास तैयबजी
जन्म- 1 फ़रवरी, 1854, मृत्यु- 9 जून1936,
अब्बास तैयबजी भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी थे, जो गुजरात से थे। वे 34 वर्षों तक अंग्रेज़ों के अधीन देशी रियासतों की न्यायिक सेवा में विदेशी ठाट-बाट के साथ रहे, परंतु अंत में गांधीजी के प्रभाव से वह सत्याग्रही बन गए और उन्होंने जेल की सजाएं भोगीं।
अब्बास तैयब जी का जन्म 1 फ़रवरी, 1854 को वड़ोदरागुजरात में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उस परिवार ने 1859 में यह सोचकर घर में हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग आरंभ कर दिया था कि आगे चलकर यही भारत की मुख्य भाषा होगी।
11 वर्ष की उम्र में ही अब्बास तैयबजी को इंग्लैंड भेज दिया गया। वहां से वह विदेशी आचार-विचार सीखकर तथा बैरिस्टर बनकर भारत लौटे और वड़ोदरा रियासत की नौकरी आरंभ की। सन 1913 में वह वहां के मुख्य न्यायाधीश बने।
कांग्रेस से अब्बास तैयबजी का संबंध 1885 ई. से ही था, पर वह ब्रिटिश सत्ता के भक्त थे। गांधीजी के संपर्क में आने पर उनका मोहभंग हो गया और 64 वर्ष की उम्र में वे असहयोग आंदोलन के समर्थक बन गए। उन्होंने कांग्रेस की जलियांवाला बाग हत्याकांड जांच समिति में काम किया और अपनी विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर कुर्ता, पायजामा और गांधी टोपी धारण की।
अब्बास तैयबजी गुजरात प्रजामंडल के पदाधिकारी बनेबारदोली सत्याग्रह में भाग लिया और नमक सत्याग्रह में दांडी मार्च के समय गिरफ्तारी दी। 1935 में फिर उन्हें जेल में डाला गया। उल्लेखनीय है कि गांधीजी के सच्चे अनुयायी के रूप में अपनी वृद्धावस्था में अब्बास तैयबजी ने जेल की यातनाओं को सहन किया।
9 जून1936 को अब्बास तैयबजी का निधन हो गया।

Dinesh Chandra Majumadar

दिनेश चंद्र मजूमदार
जन्म-  1907शहादत- 9 जून1934
दिनेश चंद्र मजूमदार भारत के अमर शहीद प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। इस वीर क्रांतिकारी ने अंग्रेज़ पुलिस कमिश्नर टेगार्ट की हत्या का प्रयास किया था, किंतु अपने इस कार्य में वह चूक गए थे। इन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) को अंग्रेज़ों से छीन लेने की भी योजना बनाई, किंतु किसी मुखबिर की सूचना पर पुलिस द्वारा पकड़ लिये गए और इन्हें फ़ाँसी दे दी गई।

  • प्रख्यात क्रांतिकारी दिनेश चंद्र मजूमदार का जन्म मई1907 ई. में बंगाल के 24 परगना ज़िले में हुआ था। उनके बचपन में ही पिता का देहांत हो गया था।
  • संबंधियों की सहायता से उन्होंने क़ानून की शिक्षा पूरी की। फिर उनका संबंध बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारियों से हो गया।
  • 1930 में कोलकाता का पुलिस कमिश्नर टेगार्ट स्वतंत्रता-सेनानियों पर अत्याचार करने के लिए बहुत कुख्यात था।
  • दिनेश चंद्र के सहित चार क्रांतिकारियों ने उसकी कार पर बम फेंक कर टेगार्ट की हत्या करने का प्रयत्न किया। पर वह बच गया। दिनेश चंद्र के एक साथी की मृत्यु हो गई और घायल दिनेश पकड़ लिया गया। मुक़दमा चला, उसे आजीवन कारावास की सज़ा हुई और मिदनापुर की सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया।
  • दिनेश चंद्र दो अन्य क्रांतिकारियों के साथ जेल की दीवार फांदकर कोलकाता जा पहुंचे। वहां वे कुछ दिन तक क्रांतिकारी साथियों के घरों में छिपे रहे। पुलिस को जब इसका पता चला तो फ्रेंच और कोलकाता की पुलिस ने उनके अड्डे को घेर लिया। बच निकलने के बाद से दिनेश चंद्र कुछ काम नहीं कर पा रहे थे।
  • उन्होंने कोलकाता शहर को अंग्रेज़ों के हाथ से छीन लेने की योजना बनाई। हथियार एकत्र करके क्रांतिकारियों का दल अवसर की प्रतीक्षा में एक भवन में रूका हुआ था। इसकी सूचना किसी मुखबिर ने पुलिस को दे दी। भवन घेर लिया गया। जब तक क्रांतिकारियों के कारतूस समाप्त नहीं हो गए दोनों ओर से गोलियां चलती रहीं।
  • एक पुलिस अफ़सर और दिनेश चंद्र मजूमदार तथा उनके साथ जगदानंद घायल हो गए। दोनों को गिरफ्तार करके उन पर मुक़दमा चला।
  • जगदानंद को आजीवन कारावास की सज़ा हुई, पर दिनेश चंद्र को 9 जून1934 को फाँसी पर लटका दिया गया।

Chaudhary Digamber Singh

चौधरी दिगम्बर सिंह
जन्म: 9 जून1913 - मृत्यु: 10 दिसम्बर1995
चौधरी दिगम्बर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और चार बार लोकसभा सांसद रहे। इन्होंने सहकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। किसानों की 'भूमि अधिग्रहण अधिनियम' में संशोधन का सबसे पहला प्रयास इनका ही था। किसानों की बात संसद में कहने के लिए दिगम्बर सिंह प्रसिद्ध थे। राजा महेन्द्र प्रतापमनीराम बागड़ी और राजा मानसिंह जैसे नेताओं को इन्होंने लोकसभा चुनावों में हराया था। लगभग 25 वर्ष ये 'मथुरा ज़िला सहकारी बैंक' के अध्यक्ष रहे। मथुरा में 'आकाशवाणी' की स्थापना करवाने का श्रेय इन्हें ही जाता है।

संक्षिप्त जीवन तिथि-क्रम

  • जन्म- 9 जून 1913, सोमवार, ग्राम कुरसण्डा तहसील सादाबाद ज़िला मथुरा (कुरसण्डा अब हाथरस ज़िले में है) के एक ज़मींदार परिवार में हुआ। लगभग एक वर्ष की आयु में ही माता-पिता का निधन।
  • 1921- 8 वर्ष की उम्र में महात्मा गांधी के दर्शन करने सादाबाद गये।
  • अध्ययन- गीतामहाभारतरामायणपुराण और विश्व के अधिकतर नेताओं की जीवनी। भारतीय, चीनी, यूरोपीय, गांधीवाद, मार्क्सवादआर्यसमाज, देवसमाजब्रह्मसमाजबौद्ध धर्मजैन धर्मसिक्खइस्लामईसाईयहूदी और ताओ धर्म आदि का अध्ययन विशेष रूप से किया।
  • 1935- असेम्बली के चुनावों की सरगर्मी के साथ राजनीति में रुचि, हकीम ब्रजलाल बर्मन से निकटता।
  • 1941- 1 वर्ष की सज़ा 100 रू. जुर्माना 3 माह के कारावास के बाद मथुरा जेल से चुनार जेल स्थानान्तरित किए गए, दिसम्बर 1941 को रिहा किये गये। ग़ैर क़ानूनी हथियार रखने एवं घर पर ही देशी बम बनाने का कार्य, जेल से रिहा होने के बाद और ज़ोर शोर से शुरू कर दिया, एक दिन घर में ही बम फट गया।
  • 1942- में फिर जेल गये।
  • 1945- प्रदेश कांग्रेस कमैटी के सदस्य एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमैटी के सदस्य चुने गये।
  • 1948- 1948 में कांग्रेस से अलग होकर बनी 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' से डिस्ट्रिक्ट बोर्ड (ज़िला परिषद) के अध्यक्ष का चुनाव लड़े। इस चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के सभी उम्मीदवार हार गए। चौधरी साहब भी, कांग्रेस प्रत्याशी हकीम ब्रजलाल वर्मन से ये चुनाव हार गये।
  • 1951- इसके बाद राम मनोहर लोहिया एवं इनकी निकटता बहुत बढ़ गयी लोहिया जी का कार्यक्रम कुरसण्डा में हुआ। 101 बैलों की जोड़ी के रथ का जूलूस सादाबाद में निकाला गया जो मथुरा ज़िले के इतिहास में तब तक का सबसे बड़ा अनुशासित प्रदर्शन था।
  • 1952- कुरसण्डा में पंचायत घर बनवाया। श्रमदान से एक ही दिन में छ: कमरों का स्कूल बनवाया।
  • 1952- जलेसर लोक सभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चौधरी दिगम्बर सिंह 64 हज़ार से भी अधिक मतों से विजयी हुये।
  • 1953- ज़िला सहकारी बैंक के अध्यक्ष हुए और पच्चीस वर्ष तक अध्यक्ष रहे।
  • 1955- श्रमदान से कुरसण्डा रजवाहा बनवाया।
  • 1957- मथुरा लोक सभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ाराजा महेन्द्र प्रताप ने लगभग 27 हज़ार वोटों से इनको को हराया। इसी चुनाव में भूतपूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की ज़मानत ज़ब्त हुई।
  • 1962- मथुरा लोक सभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़कर चौधरी दिगम्बर सिंह ने राजा महेन्द्र प्रताप को 27 हज़ार वोटों से हरा पुन: संसद में प्रवेश किया।
  • 1966- सहकारी किसान निवास चन्दे से बनवाया। ज़िला सहकारी बैंक, ज़िला सहकारी संघ एवं पराग डेरी के भवन बनवाए। आकाशवाणी मथुरा की स्थापना करवाई।
  • 1967- मथुरा लोक सभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय प्रत्याशी भरतपुर के गिरिराज शरण सिंह (राजा बच्चू सिंह) से हार गये।
  • 1969- चौधरी चरण सिंह के द्वारा भारतीय क्रांति दल के गठन के साथ ही इन्होंने भी कांग्रेस छोड़ भारतीय क्रांति दल में आ गये एवं सादाबाद से विधायक का चुनाव लड़ा एवं हार गये।
  • 1970- राजा बच्चू सिंह (गिरिराज शरण सिंह-राजा भरतपुर) की मृत्यु के कारण मथुरा लोक सभा सीट पर उपचुनाव हुआ इस चुनाव में इन्होंने राजा मानसिंह (राजा भरतपुर) एवं मनीराम बागड़ी को हरा चुनाव जीता। इस चुनाव में ये भारतीय क्रांति दल के उम्मीदवार रहे एवं कांग्रेस पार्टी ने भी इनको अपना समर्थन दिया।
  • 1970- लोक सभा में कांग्रेस ने पूर्व राजाओं के दिये जाने वाले प्रिवीपर्स को समाप्त करने के लिये सदन के पटल पर बिल पेश किया। चौधरी चरण सिंह एवं उनकी पार्टी भारतीय क्रांति दल, सदन में पूर्व राजाओं को मिलने वाले प्रिवीपर्स का समर्थन कर रहे थे किन्तु समय की आवश्यकता के देखते हुए इन्होंने प्रिवीपर्स के ख़िलाफ़ सदन में मतदान किया।
  • 1971- उत्तर प्रदेश में भारतीय क्रांति दल एक उम्मीदवार को छोड़ बाक़ी सभी उम्मीदवार चुनाव हार गये, जिसमें चौधरी चरणसिंह भी शामिल थे। मथुरा से ये भी चुनाव हार गये।
  • 1980- लोकदल की टिकट पर मथुरा लोक सभा क्षेत्र से सांसद का चुनाव लड़े एवं कांग्रेस प्रत्याशी को 84 हज़ार मतों के भारी अन्तर से पराजित कर सांसद बने।
  • 1983- भूमि अधिग्रहण अधिनिगम में ऐतिहासिक संशोधन करवाया। रेलवे पुल गैलरी बनवायी।
  • 1994- ब्रज भूमि विकास चॅरिटेबिल ट्रस्ट मथुरा की स्थापना।
  • 10-12-1995 को मथुरा में देहावसान।
  • 11-12-1995 मथुरा में यमुना किनारे, राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार।

Laxman Prasad Dubey

लक्ष्मण प्रसाद दुबे 
जन्म- 9 जून1909मृत्यु- 23 जुलाई1993
लक्ष्मण प्रसाद दुबे  भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। शिक्षकीय कर्तव्य को अपनी साधना मानने वाले लक्ष्मण प्रसाद दुबे का संपूर्ण जीवन एक शिक्षक के रूप में बीता था, जिस कारण उन्हें 'गुरुजी' के रूप में जाना जाता रहा। उन्होंने अपने जीवन में कई लोगों को शिक्षित कर उनके मन में देशभक्ति की भावना को जागृत किया। वहीं कई लोगों को शिक्षक बनने हेतु प्रेरित भी किया। लक्ष्मण प्रसाद जी देश में नारी स्वतंत्रता एवं नारी शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे।
लक्ष्मण प्रसाद दुबे का जन्म छत्तीसगढ़ स्थित दुर्ग ज़िले के दाढी गांव में 9 जून1909 को हुआ था। वे गांव में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बेमेतरा से उच्‍चतर माध्यमिक व शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर शिक्षकीय कार्य में जुट गये। उनकी पहली नियमित पद स्थापना सन 1929 में भिलाई के माध्यमिक स्कूल में हुई थी। उस समय दुर्ग में स्वतंत्रता आंदोलन का ओज फैला हुआ था। ज्योतिष के विद्वान लक्ष्मण प्रसाद दुबे ने यूनानी चिकित्सा व वैद विशारद की परिक्षा भी पास की थी एवं शिक्षा के साथ चिकित्सा कार्य भी किया।
भिलाई में शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए लक्ष्मण प्रसाद दुबे का संपर्क ज़िले के वरिष्ठ सत्याग्रही नरसिंह प्रसाद अग्रवाल से हुआ। उस समय किशोर व युवजन के अग्रवाल जी आदर्श थे। उनके मार्गदर्शन व आदेश से लक्ष्मण प्रसाद जी भिलाई में अपने साथियों एवं छात्रों के साथ मिलकर 'मद्य निषेध आंदोलन' 'विदेशी वस्त्र आंदोलन' को हवा देने लगे। उसी समय उन्होंने भिलाई में विदेशी वस्तुओं के साथ जार्ज पंचम का चित्र भी जलाया। बढ़ते आंदोलन की भनक से अक्टूबर1929 में भिलाई का मिडिल स्कूल बंद कर दिया गया और उनका स्थानांतरण बालोद मिडिल स्कूंल में कर दिया गया। लक्ष्मण प्रसाद दुबे को अपने नेता के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हो गया, क्‍योंकि अग्रवाल जी बालोद के मूल निवासी थे।

जंगल सत्याग्रह का नेतृत्त्व

बालोद के ग्राम पोडी में हुए जंगल सत्याग्रह की पूरी रूपरेखा एवं दस्तावेजी कार्य नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जी ने इन्हें सौंप दिया था। इन दस्ता‍वेजों को दुर्ग पुलिस एवं गुप्तचरों से बचाते हुए जंगल सत्याग्रही व अन्य क्रियाकलापों का विवरण वे एक रजिस्टर में दर्ज करते रहे। अग्रवाल जी के जेल जाने के बाद भी उनके द्वारा जंगल सत्याग्रह को नेतृत्व प्रदान करते हुए कायम रखा गया। वे बतलाते थे कि उस समय सत्याग्रह रैली व सभाओं में 8-10 महिलायें भी आती थीं, जो चरखा लेकर आंदोलन का प्रतिनिधित्व करती थीं।
उन्हीं दिनों सन 1930 में बालोद के सर्किल ऑफीसर नायडू से से लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी की बहस हो गई। तब अग्रवाल परिवार की मध्यस्थता से इनका स्थानांतरण धमधा कर दिया गया। अब इनकी दौड़ बालोद-दुर्ग, धमधा दाढी तक होती रही। वे विश्वनाथ तामस्कर, रघुनंदन प्रसाद सिंगरौल, लक्ष्मण प्रसाद बैद के साथ सत्याग्रह आंदोलन के क्रियाकलापों से जुड़े रहे। नरसिंह प्रसाद अग्रवाल के इस क्षेत्र में दौरे का प्रभार लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी के पास ही होता था। सन 1932 में अग्रवाल जी के दाढी के दौरे में वे रास्ते भर सक्रिय रहे। नरसिंह प्रसाद अग्रवाल युवा सत्याग्रहियों को हमेशा समझाया करते थे कि जोश के साथ होश मत खोना, क्योंकि जोश के कारण सभी बड़े नेता सरकार की हिट लिस्ट में आ गये थे, जिस कारण उनकी गिरफ़्तारी होती रहती थी।
स्वतंत्रता आंदोलन को जीवंत रखने के लिए द्वितीय पंक्ति के सत्याग्रहियों को अपना दायित्व निभाना था, अत: लक्ष्मण प्रसाद दुबे अपने गांधीवादी नरम रवैये से शिक्षकीय कार्य करते रहे। 1942 में लक्ष्मण प्रसाद दुबे का स्थानांतरण डौंडी लोहारा कर दिया गया। जंगल सत्याग्रह की रणनीति में माहिर लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी के लिए यह स्थान बालोद जैसा ही रहा, क्योंकि यह स्थान जंगलों के बीच है, अत: वे वहां अपने मूल कार्य के साथ पैदल गांव-गांव का दौरा कर सत्याग्रह का पाठ पढ़ाते रहे। इस बीच उनको मार्गदर्शन नरसिंह प्रसाद अग्रवाल से मिलता रहा।
1942 में ही जमुना प्रसाद अग्रवाल अपने बडे भाई नरसिंह प्रसाद का संदेश लेकर लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी के पास आये और उन्हें सचेत किया कि आपकी भी गिरफ़्तारी हो सकती है। यहां से वापस लौटते ही जमुना प्रसाद अग्रवाल को बालोद में गिरफ़्तार कर लिया गया और उसी रात लक्ष्मण प्रसाद दुबे को भी गिरफ़्तार करने का आदेश डौंडी में जारी कर दिया गया, जिसे लाल ख़ान सिपाही ने तामील करने के पहले ही लीक कर दिया और लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी स्कूल का त्यागपत्र मित्रों के हाथ सौंपकर फरार हो गये एवं बालोद आ गये। जहां से वे भूमिगत हो गए। रायपुर के प्रमुख सक्रिय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोतीलाल जी त्रिपाठी से पारिवारिक संबंधों का लाभ इन्हें मिलता रहा और लक्ष्मंण प्रसाद दुबे घुर जंगल क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की लौ जलाते रहे। 1942 से 1947 तक ये खानाबदोश जीवन व्यतीत करते रहे। दुर्ग ज़िले के ग्रामीण क्षेत्रों में पैदल घूम-घूम कर सत्या‍ग्रह-शिक्षा का अलख जगाने के कारण ये गिरफ़्तारी से बचे रहे।

लक्ष्मण प्रसाद दुबे शिक्षक जीवन से अवकाश प्राप्त करने के बाद सक्रिय राजनीति में जनपद पंचायत बेमेतरा के सदस्य रहे। उन्होंने दुर्ग ज़िला कांग्रेस की सदस्यता 1930 में ग्रहण की थी। 1942 से 1947 तक ज़िला कांग्रेस के कार्यकारिणी सदस्य के रूप में उन्होंनें कार्य किया। अपनी मृत्यु 23 जुलाई1993 तक वे ज़िला कांग्रेस के सक्रिय सदस्य रहे थे।

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