Sunday, May 17, 2020

महावीर सिंह राठौड़

महावीर सिंह राठौड़
16 सितम्बर 1904 - 17 मई 1933
महावीर सिंह का जन्म 16 सितम्बर 1904 को उत्तर प्रदेश के एटा जिले के शाहपुर टहला नामक एक छोटे से गाँव में उस क्षेत्र के प्रसिद्द वैद्य कुंवर देवी सिंह और उनकी धर्मपरायण पत्नी श्रीमती शारदा देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। राष्ट्र -सम्मान के लिए मर-मिटने की शिक्षा अपने पिता से प्राप्त करने वाले महावीर सिंह में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की भावना बचपन से ही मौजूद थीजिसका पता उनके बचपन में घटी एक घटना से भी मिलता है। हुआ ये कि जनवरी 1922 में एक दिन कासगंज तहसील (वर्तमान में ये अलग जिला बन गया है) के सरकारी अधिकारियों ने अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से अमन सभा का आयोजन कियाजिसमें ज़िलाधीशपुलिस कप्तानस्कूलों के इंस्पेक्टरआस -पड़ोस के अमीर -उमरा आदि जमा हुए। छोटे -छोटे बच्चो को भी जबरदस्ती ले जाकर सभा में बिठाया गयाजिनमें से एक महावीर सिंह भी थे। लोग बारी -बारी उठकर अंग्रेजी हुक़ूमत की तारीफ़ में लम्बे -लम्बे भाषण दे ही रहे थे कि तभी बच्चों के बीच से किसी ने जोर से से नारा लगायामहात्मा गांधी की जय। बाकी लड़कों ने भी समवेत स्वर में ऊँचे कंठ से इसका समर्थन किया और पूरा वातावरण इस नारे से गूँज उठा। देखते -देखते गांधी विरोधियों की वह सभा गांधी की जय जयकार के नारों से गूँज उठीलिहाजा अधिकारी तिलमिला उठे। प्रकरण की जांच के फलस्वरूप महावीर सिंह को विद्रोही बालकों का नेता घोषित कर सजा दी गयी पर इसने उनमें बगावत की भावना को और प्रबल कर दिया।
महावीर सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही प्राप्त करने के बाद एटा के राजकीय इंटर कॉलेज से पढाई करने के बाद आगे की पढाई के लिये कानपुर के DAV कॉलेज में दाखिल लिया। महावीर सिंह जी को घर से ही देशभक्ति की शिक्षा मिली थी। कानपुर में इनको क्रान्तिकारियो का सानिध्य मिला और ये पूरी तरह अंग्रेजो के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष में कूद पड़े। उनके पिता को भी जब इसका पता चला तो उन्होंने कोई विरोध करने की जगह अपने पुत्र को देश के लिये बलिदान होने के लिये आशीर्वाद दिया। भगत सिंह जैसे अनेक क्रांतिकारी अंग्रेज़ो से छिपने के लिये उनके गाँव के घर में ही रुकते थे। भगत सिंह खुद 3 दिन उनके घर रुके थे।
काकोरी कांड और सांडर्स कांड में शामिल होने के बाद वो अंग्रेज़ो के लिये चुनौती बन गए थे। उन्होंने सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को लाहौर से निकालने में सक्रीय भूमिका निभाई थी। अपने खिलाफ अंग्रेज़ो के सक्रिय होने के बाद वो भूमिगत होकर काम करने लगे। अंत में 1929 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 
लाहौर हाईकोर्ट ट्रिब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंहराजगुरुसुखदेव सहित जिन सात क्रांतिकारियों को आजन्म कारावास की सजा सुनाईउसमें महावीर सिंह का नाम भी शामिल था। जिस क्रांतिकारी ने मद्रास की बेलारी जेल में जड़ता और कठोरता का परिचय दिया तो नंगे शरीर पर बैतों की मार के बीच खून के जमीन पर गिरते कतरे और मांस के लोथड़े भी उसकी राह न बदल सके। अंत में अंडमान की काले पानी की सेल्यूलर जेल में पहुंचाया गया। 

बलिदान

जैल में क्रान्तिकारियो के साथ बहुत बुरा बर्ताव होता था। उनको अनेक यातनाऐं दी जाती थीं और बदसलूकी की जाती थी। काफी यातनाए सहने के बाद बन्दियों ने विरोध करने का फैसला लिया और जेल में बदसलूकी और बदइंतेजामी के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू की। अंग्रेज़ो ने भूख हड़ताल को तोड़ने की अनेक कोशिशे की लेकिन सब बेकार रहा। बन्दियों को जबरदस्ती खाना खिलाने का प्रयत्न कियाजिसमे अनेको क्रान्तिकारियो की भूख हड़ताल तुड़वाने में सफल रहे। अंग्रेज़ो ने महावीर सिंह जी की भी भूख हड़ताल तुड़वाने की बहुत कोशिश कीअनेको लालच दिएयातनाए दी लेकिन बलिष्ठ शरीर के स्वामी महावीर सिंह जी की भूख हड़ताल नही तुड़वा पाए। अंग्रेज़ो ने फिर जबरदस्ती करके मुँह में खाना ठूसने की कोशिश कीइसमें भी वो सफल नही हो पाए। इसके बाद अंग्रेजो ने नली को नाक के द्वारा गले में पहुँचाकर उन्हें जबरदस्ती दूध पिलाने की कोशिश की जिसमे उन्हें जमीन पर गिराकर 8 पुलिसवालो ने पकड़ा हुआ था। हठी महावीर सिंह राठौड़ ने पूरी जान लगाकर इसका विरोध किया जिससे दूध उनके फेफड़ो में चला गया जिससे तड़प तड़पकर उनकी 17 मई 1933 को मृत्यु हो गई और उन्होंने शहीदों की श्रेणी में अपना नाम अमर कर दिया। अंग्रेज़ो ने शहीद के घर वालो तक को शव नही ले जाने दिया और शव को पत्थरों से बांधकर समुद्र में फेंक दिया। अंग्रेजों ने जो सितम किया वह इतना दुखद था कि इस देशभक्त को अपनी जमीं पर भी दो गज जमीन न मिली।

दुःख की बात ये है की आज ऐसे बलिदानी महापुरुषोजिनकी वजह से हमे अंग्रेज़ो से स्वतंत्रता नसीब हुई के बारे में बहुत कम लोग जानते हैँ। महावीर सिंह राठौड़ ऐसे ही एक योद्धा थे जिनकी शहादत से बहुत कम लोग परिचित हैँ जबकि ना केवल उन्होंने बल्कि उनके परिवार को भी उनकी राष्ट्रभक्ति की कीमत यातनाओ के साथ चुकानी पड़ी। अंग्रेज़ो की यातनाओ से तंग आकर उनके परिवार को 9 बार घर बदलना पड़ा और आज भी उनके परिवारीजन गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैँ जबकि उस वक्त जेल में मजे से रोटी खाने वाले और अंग्रेज़ो से गलबहियां करने वाले स्वतंत्रता आंदोलन का सारा श्रेय लेकर सांसदमंत्री और प्रधानमन्त्री तक बन गए और उनके परिवारीजन अब भी मौज कर रहे हैँ। ऐसे लोगो की मुर्तिया चौकचौराहो पर लगी हैँइनके नाम पर हजारो इमारतों का नामकरण किया गया है लेकिन महावीर सिंह राठौड़ जी की उनके गृह जिले एटा में भी कोई मूर्ती नही है.